देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

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सपनों को संदेसे भेजो - बृज राज किशोर 'राहगीर'

सपनों को संदेसे भेजो,
ख़ुशियों को चिट्ठी लिखवाओ।
उनकी आवभगत करनी है,
मुस्कानों को घर बुलवाओ॥

 
भाग्य विधाता - मोहित नेगी मुंतज़िर 

कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं,
भाग्य विधाता लोकतंत्र के सड़कों पर रात बिताते हैं।

 

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