देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

महात्मा गांधी

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। सम्पूर्ण भारतवर्ष आपको प्‍यार से बापू पुकारता है।

आपका जन्म 2 अक्‍टूबर को पोरबंदर में हुआ था। देश की स्वतंत्रता में आपकी विशेष भूमिका रही है।

गांधीजी के पिता करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। आपकी माता का नाम पुतलीबाई था। वह धार्मिक विचारों वाली महिला थीं।

आपने स्वतंत्रता के लिए सदैव सत्‍य और अहिंसा का मार्ग चुना और आंदोलन किए। गांधीजी ने वकालत की शिक्षा इंग्‍लैंड में ली थी। वहां से लौटने के बाद आपने बंबई में वकालत शुरू की। महात्‍मा गांधी सत्‍य और अहिंसा के पुजारी थे।

गांधीजी की 30 जनवरी को प्रार्थना सभा में नाथूराम विनायक गोडसे ने गोली मारकर हत्‍या कर दी। महात्‍मा गांधी की समाधि दिल्ली के राजघाट में है।

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गांधी जी को बहुत प्रिय थे ये दो भजन

वैष्णव जन तो तेने कहिये

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीड परायी जाणे रे।
पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे।
सकळ लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे केनी रे,
वाच काछ मन निश्चळ राखे, धन धन जननी तेनी रे।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे,
जिह्वा थकी असत्य न बोले, परधन नव झाले हाथ रे।
मोह-माया व्यापे नहिं जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मन मां रे,
रामनाम शुं ताळी रे लागी, सकळ तीरथ तेना तन मां रे।
वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे।
भणे ‘नरसैयो' तैनु दरसन करतां, कुळ एकोतेर तार्या रे।

--नरसी मेहता


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रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम।
सीता राम सीता राम
भज प्यारे तू सीता राम।।
रघुपति...

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान।।
रघुपति...

रात को निंदिया दिन तो काम
कभी भजोगे प्रभु का नाम।।
रघुपति...

करते रहिए अपने काम
लेते रहिए हरि का नाम।।
रघुपति राघव राजा राम
रघुपति राघव राजा राम।।

[ भारत-दर्शन संकलन ]

 

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गांधीजी के जीवन के विशेष घटनाक्रम

(2 अक्तूबर, 1869 - 30 जनवरी, 1948)

1869: जन्म 2 अक्तूबर, पोरबन्दर, काठियावाड़ में - माता पुतलीबाई, पिता करमचन्द गांधी।

1876: परिवार राजकोट आ गया, प्राइमरी स्कूल में अध्ययन, कस्तूरबाई से सगाई।

1881: राजकोट हाईस्कूल में पढ़ाई।

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गांधीजी का जंतर

Gandhi ji Ka Jantar

तुम्हें एक जंतर देता हूँ। जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम पर हावी होने लगे, तो यह कसौटी आज़माओ :

जो सबसे गरीब और कमज़ोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा, क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुँचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है?

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