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मोहनलाल महतो वियोगी
मोहनलाल महतो वियोगी का जन्म 1902 में हुआ था।
\r\nआप दशकों तक अपनी प्रखर प्रतिभा से हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं को निष्ठापूर्वक समृद्ध करते रहे । आपने अनेक मौलिक एवं अविस्मरणीय उल्लेखनीय पुस्तकें लिखी हैं । वियोगी जी का काव्य राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत है । आपका गद्य-लेखन अत्यन्त विशाल और समृद्ध है । आप कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार और संस्मरणकार थे । आप एक विचारक भी थे । आपकी गद्य-रचनाओं में सूक्तियों के असंख्य मोती हैं । आपकी सैकड़ों रचनाएँ दशकों से हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में असंकलित विखरी हुई हैं ।
\r\nवियोगी जी के संपूर्ण साहित्य का मूल स्वर है-एक दुनिया एक सपना ।
\r\n1990 में आपका निधन हो गया ।
Author's Collection
Total Number Of Record :1काठ का घोड़ा
चलता नहीं काठ का घोड़ा!
माँ चिंतित होंगी, ले चल घर, देख बचा दिन थोड़ा
सोने की थी बनी अटारी,
हाय! लगाई थी फुलवारी,
फूल रही थी क्यारी-क्यारी,
फल से लदे वृक्ष थे पर मैंने न एक भी तोड़ा ।
छोड़ दिया सुख-दुख क्षण भर में,
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