देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

बालमुकुन्द गुप्त

आपका जन्म 14 नवंबर 1865 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गांव गुड़ियानी में हुआ था। आपके पिता का नाम लाला पूरणमल था ।  आपने अपना पूरा जीवन अध्ययन, लेखन एवं संपादन में लागाया व जीवन भर  स्वतंत्रता की अलख जगाए रखी।

भाषा: हिंदी

विधाएँ: निबंध, कविता

मुख्य कृतियाँ: शिवशंभु के चिट्ठे, उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी, हरिदास, खिलौना, खेलतमाशा, स्फुट कविता, बालमुकुंद गुप्त निबंधावली

संपादन: अखबारे चुनार, कोहेनूर (दोनों उर्दू अखबार), भारत प्रताप (उर्दू मासिक), भारतमित्र, बंगवासी

अनुवाद: मडेल भगिनी (बाँग्ला उपन्यास), रत्नावली (हर्षकृत नाटिका)

निधन: 18 सितंबर 1907

 

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माई लार्ड

माई लार्ड! लड़कपन में इस बूढ़े भंगड़ को बुलबुल का बड़ा चाव था। गांव में कितने ही शौकीन बुलबुलबाज थे। वह बुलबुलें पकड़ते थे, पालते थे और लड़ाते थे, बालक शिवशम्भु शर्मा बुलबुलें लड़ाने का चाव नहीं रखता था। केवल एक बुलबुल को हाथ पर बिठाकर ही प्रसन्न होना चाहता था। पर ब्राह्मणकुमार को बुलबुल कैसे मिले? पिता को यह भय कि बालक को बुलबुल दी तो वह मार देगा, हत्या होगी। अथवा उसके हाथ से बिल्ली छीन लेगी तो पाप होगा। बहुत अनुरोध से यदि पिता ने किसी मित्र की बुलबुल किसी दिन ला भी दी तो वह एक घण्टे से अधिक नहीं रहने पाती थी। वह भी पिता की निगरानी में।

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पेट-महिमा

साधो पेट बड़ा हम जाना।
यह तो पागल किये जमाना॥
मात पिता दादा दादी घरवाली नानी नाना।
सारे बने पैट की खातिर वाकी फकत बहाना॥
पेट हमारा हुण्डी पुर्जा पेटहि माल खजाना।
जबसे जन्मे सिवा पेट के और न कुछ पहचाना॥
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