देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

देवेन्द्र सत्यार्थी

देवेन्द्र सत्यार्थी  (Devendra Satyarthi ) का जन्म 28 मई 1908 को पटियाला के भदौड़ ग्राम (अब जिला संगरूर) में हुआ था। आप मंटो के समकालिक कहानीकार थे।

आप हिन्दी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं के विद्वान तथा साहित्यकार हैं। आपका मूल नाम देवइंडर बत्ता है। आपने देश के कोने-कोने की यात्रा कर वहां के लोकजीवन, गीतों और परंपराओं को आत्मसात किया और उन्हें पुस्तकों और वार्ताओं में संग्रहीत किया जिसके लिए  आप 'लोकयात्री' के रूप में जाने जाते हैं। सन्यासी का रूप धरण कर पूरे देश में प्रचलित लोकगीतों को संकलित करने के लिए आप विशेषत: विख्यात हैं।

'क्या गोरी क्या साँवली' तथा 'रेखाएँ बोल उठीं' सत्यार्थी के संस्मरणों के अनूठे संग्रह हैं।

1977 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित।

28 फरवरी 2003 को आपका निधन हो गया।

 

कृतियाँ

उपन्यास : रथ के पहिए, कठपुतली, दूध गाछ, ब्रह्‌मपुत्र, कथा कहो, उर्वशी, तेरी कसम सतलुज।

संस्मरण : क्या गोरी क्या साँवली, रेखाएँ बोल उठीं।

संपादन : हिन्दी : एक युग, एक प्रतीक, रेखाएं बोल उठीं, क्या गोरी क्या सांवरी, कला के हस्ताक्षर।

आत्मकथात्मक लेखन : चांद-सूरज के वीरन, नीलयक्षिणी, सफरनामा पाकिस्तान।

अन्य : चट्टान से पूछ लो, चाय का रंग, नए धान से पहले, सड़क नहीं बंदूक, धरती गाती है, बेला फूले आधी रात, बाजत आवे ढोल, चित्रों में लोटियां।

 

 

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जन्मभूमि

गाड़ी हरबंसपुरा के स्टेशन पर खड़ी थी। इसे यहाँ रुके पचास घंटे से ऊपर हो चुके थे। पानी का भाव पाँच रुपये गिलास से एकदम पचास रुपये गिलास तक चढ गया और पचास रुपये हिसाब से पानी खरीदते समय लोगों को बडी नरमी से बात करनी पडती थी । वे डरते थे कि पानी का भाव और न चढ जाएे । कुछ लोग अपने दिल को तसल्ली दे रहे थे कि जो इधर हिन्दुओं पर बीत रही है वही उधर मुसलमानों पर भी बीत रही होगी, उन्हें पानी इससे सस्ते भाव पर नहीं मिल रहा होगा, उन्हें भी नानी याद आ रही होगी।

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