देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

विनोदशंकर व्यास

विनोदशंकर व्यास (Vinod Shankar Vyas) का जन्म 1903 में प्राचीन नगरी काशी में हुआ था। आपका परिवार एक प्रसिद्ध साहित्यिक परिवार था।

आपके पिता कालीशंकर व्यास अपने समय के अच्छे कवि थे और दादा रामशंकर व्यास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के मित्र थे। अपनी मंडली के साथ स्वयं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इनके यहाँ होली खेलने आते थे। रंग और अबीर से गली में कोच हो जाती थी। विनोदशंकर व्यास जब तीन-चार वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहान्त हो गया था।

आपके दादा ने बड़े लाड़-प्यार से आपका पालन-पोषण किया। जब विनोदशंकर युवावस्था में प्रवेश कर रहे थे, तभी दादा का भी स्वर्गवास हो गया। पतंग और कबूतरों के प्रेमी विनोदशंकर का लालन-पालन एक रईस के लड़के की तरह हुआ था।

असहयोग आन्दोलन में युवक विनोदशंकर ने दादा की कीमती कामदार टोपी जला दी थी।  'उग्र' के साथ गाँवों में किसानों के बीच भाषण दिये, गणेशशंकर विद्यार्थी के 'प्रताप' से राजनीति का पाठ पढ़ा।

निराला कलकत्ते से आकर जब शिवपूजन सहाय के यहाँ ठहरे तो विनोदशंकर उनसे मिलने गये। शिवपूजन सहाय ने उन्हें पहली बार देखा और देखकर मुग्ध हो गये।

बाद में निराला जब अस्वस्थ थे और जयशंकर प्रसाद के यहाँ ठहरे हुए थे तो विनोदशंकर व्यास निराला को प्रसाद के यहाँ से अपने गंगातट वाले आलीशान भवन में ले लाये थे। निराला कुछ समय विनोदशंकर व्यास के यहाँ रहे।

 

साहित्यिक कृतियाँ

कहानी संग्रह:

‘नवपल्लव' आपका पहला कहानी संग्रह था। इसके बाद तूलिका, भूली बात, धूपदान, इकतालीस कहानियाँ, उसकी कहानी, मणिदीप (1945), पचास कहानिया, नक्षत्रलोक (1950), अस्सी कहानियाँ (1960) इत्यादि आपके कहानी संग्रह हैं। विनोदशंकर

उपन्यास:

अशान्त

 

जीवनियाँ

योरोपीय साहित्यकार - इस पुस्तक में होमर (Homer) से मार्सेल प्राउस्ट (Marcel Proust) तक की जीवनियाँ हैं। यह पुस्तक अपने आप में एक अनूठा प्रयास था। लेखक स्वयं इसकी भूमिका में लिखता है, "'योरोपीय साहित्यकार' को प्रस्तुत करने में लगभग 7-8 सौ अँग्रेजी पुस्तकों का मुझे अध्ययन करना पड़ा है।"

 

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी' 

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विधाता

चीनी के खिलौने, पैसे में दो; खेल लो, खिला लो, टूट जाए तो खा लो--पैसे में दो।

सुरीली आवाज में यह कहता हुआ खिलौनेवाला एक छोटी-सी घंटी बजा रहा था।

उसको आवाज सुनते ही त्रिवेणी बोल, उठी-- माँ, पैसा दो, खिलौना लूँगी।

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