देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

डॉ रामकुमार वर्मा

डॉ रामकुमार वर्मा (Dr Ramkumar Verma) का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में 15 सितम्बर, 1905 को हुआ था। डॉ वर्मा को हिंदी एकांकी का जनक माना जाता है और आपको 'एकांकी सम्राट' कहा जाता है।

शिक्षा

आपकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। आपकी उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से हुई। स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद आप वहीं हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए और बाद में विभागाध्यक्ष पदोन्नत हुए।

नाटककार और कवि के साथ-साथ आपने समीक्षक, अध्यापक तथा हिंदी साहित्येतिहास लेखक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आप गर्व के साथ कहते थे, 'ऐतिहासिक एकांकियों में भारतीय संस्कृति का मेरुदंड-नैतिक मूल्यों में आस्था और विश्वास का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।' आपके काव्य में रहस्यवाद और छायावाद की झलक है।

डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने इतिहास प्रसिद्ध नाटकों में राष्ट्रनायकों के चरित्रों के सहारे प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को जीवंत करके दर्शकों तथा पाठकों के हृदय में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने का प्रयास किया। उनके नाटकों के नायक प्राय: अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की बलि देने को सदा तैयार रहते हैं |


कृतियाँ

एकांकी संग्रह
पृथ्वीराज की आंखें, रेशमी टाई, चारुमित्रा, विभूति, सप्तकिरण, रूपरंग, रजतरश्मि, ऋतुराज, दीपदान, रिमझिम, इन्द्रधनुष, पांचजन्य, कौमुदी महोत्सव, मयूर पंख, खट्टे-मीठे एकांकी, ललित एकांकी, कैलेण्डर का आखिरी पन्ना, जूही के फूल।

नाटक
विजय पर्व, कला और कृपाण, नाना फड़नवीस, सत्य का स्वप्न।

काव्य
चित्ररेखा, चन्द्रकिरण, अंजलि, अभिशाप, रूपराशि, संकेत, एकलव्य, वीर हम्मीर, निशीथ, नूरजहां, जौहर, आकाशगंगा, उत्तरायण, कृतिका।

आलोचना एवं साहित्येतिहास
कबीर का रहस्यवाद, इतिहास के स्वर, साहित्य समालोचना, साहित्यशास्त्र, अनुशीलन, समालोचना समुच्चय, हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास।

सम्पादन
हिंदी साहित्य का सक्षप्त इतिहास।

निधन:  5 अक्टूबर 1990 में डॉ रामकुमार वर्मा का निधन हो गया हुआ।

[भारत-दर्शन]

 

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ये गजरे तारों वाले

इस सोते संसार बीच,
जग कर सज कर रजनी वाले !
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले ?

मोल करेगा कौन,
सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी ।
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी ॥

निर्झर के निर्मल जल में,
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बापू की विदा

आज बापू की विदा है!
अब तुम्हारी संगिनी यमुना, त्रिवेणी, नर्मदा है!

तुम समाए प्राण में पर
प्राण तुमको रख न पाए
तुम सदा संगी रहे पर
हम तुम्हीं को छोड़ आए
यह हमारे पाप का विष ही हमारे उर भिदा है!
आज बापू की विदा है!

सो गए तुम किंतु तुमने
...

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