देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

रामविलास शर्मा

रामविलास शर्मा का जन्म 10 अक्टूबर 1912 को उच्चगाँव सानी (जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और फिर पी-एच.डी. की 1938 में उपाधि प्राप्त की।

1938 से आप अध्यापन क्षेत्र में आ गए। कुछ समय तक लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में अध्यापन किया।डॉ रामविलास शर्मा ने 1943 से 1974 तक 'बलवंत राजपूत कालेज', आगरा में अंग्रेज़ी विभाग में कार्य किया और अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे। इसके बाद कुछ समय तक 'कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी विद्यापीठ', आगरा में निदेशक पद पर भी रहे।

जीवन के अंतिम वर्षों में वे दिल्ली में रहकर साहित्य समाज और इतिहास से संबंधित चिंतन और लेखन करते रहे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद डॉ. रामविलास शर्मा ही एक ऐसे आलोचक के रूप में स्थापित होते हैं, जो भाषा, साहित्य और समाज को एक साथ रखकर मूल्यांकन करते हैं। उनकी आलोचना प्रक्रिया में केवल साहित्य ही नहीं होता, बल्कि वे समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास को एक साथ लेकर साहित्य का मूल्यांकन करते हैं। अन्य आलोचकों की तरह उन्होंने किसी रचनाकार का मूल्यांकन केवल लेखकीय कौशल को जाँचने के लिए नहीं किया है, बल्कि उनके मूल्यांकन की कसौटी यह होती है कि उस रचनाकार ने अपने समय के साथ कितना न्याय किया है। इतिहास की समस्याओं से जूझना मानो उनकी पहली प्रतिज्ञा हो। वे भारतीय इतिहास की हर समस्या का निदान खोजने में जुटे रहे। उन्होंने जब यह कहा कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं, तब इसका विरोध हुआ था। उन्होंने कहा कि आर्य पश्चिम एशिया या किसी दूसरे स्थान से भारत में नहीं आए हैं, बल्कि सच यह है कि वे भारत से पश्चिम एशिया की ओर गए हैं। वे लिखते हैं -

‘‘दूसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व बड़े-बड़े जन अभियानों की सहस्त्राब्दी है।"

 

निधन: 30 मई 2000 को आपका निधन हो गया।  


कृतियाँ
अपनी लंबी लेखन यात्रा में आपने लगभग 100 महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का सृजन किया, जिनमें ‘गाँधी, आंबेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ', ‘भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश', ‘निराला की साहित्य साधना', ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नव-जागरण', ‘पश्चिमी एशिया और ऋग्‍वेद', ‘भारत में अँग्रेजी राज्य और मार्क्सवाद', ‘भारतीय साहित्य और हिन्दी जाति के साहित्य की अवधारणा', ‘भारतेंदु युग', ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी' जैसी कालजयी रचनाएँ सम्मिलित हैं।


डॉ शर्मा की समीक्षा कृतियों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं-

'प्रेमचन्द और उनका युग'
'निराला'
'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र'
'प्रगति और परम्परा'
'भाषा साहित्य और संस्कृति'
'भाषा और समाज'
'निराला की साहित्य साधना'

काव्य
डॉ रामविलास शर्मा ने यद्यपि कविताएँ अधिक नहीं लिखीं, पर हिन्दी के प्रयोगवादी काव्य-आन्दोलन के साथ वे घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे हैं। 'अज्ञेय' द्वारा सम्पादित 'तारसप्तक' (1943) के एक कवि रूप में इनकी रचनाएँ चर्चित हुई हैं।

निबंध
आस्था और सौन्दर्य व विराम चिह्न उनके निबंध साहित्य के
चुने हुए उदाहरण हैं।


सम्मान
रामविलास शर्मा जी वर्ष 1986-87 में हिन्दी अकादमी के प्रथम सर्वोच्च सम्मान शलाका सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। इसके अतिरिक्त 1991 में इन्हें प्रथम व्यास सम्मान से भी सम्मानित किया गया।

 

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यह कवि अपराजेय निराला | कविता

यह कवि अपराजेय निराला,
जिसको मिला गरल का प्याला;
ढहा और तन टूट चुका है,
पर जिसका माथा न झुका है;
शिथिल त्वचा ढल-ढल है छाती,
लेकिन अभी संभाले थाती,
और उठाए विजय पताका-
यह कवि है अपनी जनता का!

-डॉ रामविलास शर्मा

 


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