देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

प्रीता व्यास का जन्म भारत में हुआ था। आप न्यूज़ीलैंड की नागरिक हैं। आपने भारत से एम.एससी (रसायन), अँग्रेजी साहित्य में एम.ए एवं बी.एम.सी की है।

लम्बे समय तक रेडियो में रहने के पश्चात लोकमत समाचार, नागपुर में काम किया। उसके पश्चात मेरी सहेली, मुंबई में कम किया। संपादक के रूप में एक लम्बी पारी खेलने के बाद न्यूज़ीलैंड में भी एक बार फिर हिंदी रेडिओ के समाचार विभाग में कार्य किया।

भारत की कई पत्रिकाओं के विशेषांकों का संपादन, न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित होने वाली त्रि-भाषाई पत्रिका 'धनक' की पूर्व हिंदी एडीटर. द्विभाषाई वेब पत्रिका "संगम" (हिंदी और उर्दू) की हिंदी एडिटर रहीं। 

1970 से भारत के सभी प्रमुख पत्र - पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कवितायेँ आदि सतत प्रकाशित होते रहे।

प्रकाशित कृतियां: 

हिंदी में - पत्रकारिता परिचय और विश्लेषण, इंडोनेशिया की लोक कथाएं, दादी कहो कहानी, बाल सागर क्या बनेगा, जंगल टाइम्स, कौन चलेगा चाँद पे रहने, लफ़्फ़ाज़ी नहीं है कविता, जलधि समाना बूंद में, पहाड़ों का झगड़ा (माओरी लोक कथाएं)।

खुरचन (प्रकाशनाधीन), इश्क़ इबारत (प्रकाशनाधीन), कथा संग्रह 'भवानीदीन' (प्रकाशनाधीन)।

अंग्रेजी में - 175 पुस्तकें प्रकाशित (6 से 12 साल के बच्चों के लिए), पांच (प्रकाशनाधीन)। 

द्वी भाषाई पुस्तकें - "परचाकापान सेहारी हारी"(दैनिक वार्तालाप), "टाटा बहासा हिंदी" (हिंदी व्याकरण), और "हिंदी सेहारी - हारी।" किसी भारतीय लेखक द्वारा पहली बार हिंदी और भाषा इंडोनेशिया में प्रकाशित।

त्रि भाषाई शब्दकोष (प्रकाशनाधीन)।

विशेष:

पहली भारतीय लेखक जिसने इंडोनेशियन भाषा में हिंदी उपलब्ध करवाई। "परचाकापान सेहारी हारी" (दैनिक वार्तालाप।


पहली भारतीय लेखक जिसने इंडोनेशियन भाषा में हिंदी व्याकरण पर पुस्तक लिखी। "टाटा बहासा हिंदी" (हिंदी व्याकरण)।

पहली भारतीय लेखक जिसने इंडोनेशियन लोक कथाओं का हिंदी में अनुवाद किया। "नैने- चूचू" (इंडोनेशिया की लोक कथाएं)।

पहली भारतीय लेखक जिसने माओरी लोक कथाओं का हिंदी में अनुवाद किया। पहाड़ों का झगड़ा (माओरी लोक कथाएं)।

Author's Collection

1 | 2 [Next] [Last]

Total Number Of Record :14

सहेजे हैं शब्द

शौकिया जैसे सहेजते हैं लोग
रंगीन, सुंदर, मृत तितलियाँ
सहेजे हैं वैसे ही मैंने
भाव भीगे, प्रेम पगे शब्द।

शब्द, जो कभी
चंपा के फूल की तरह
तुम्हारे होंठों से झरे थे।
शब्द, जो कभी
गुलाब की महक से
तुम्हारे पत्रों में बसे थे।
...

More...

मैं कवि हूँ

मैं डॉक्टर नहीं हूँ
मैं तुम्हारी बीमारी के लिए
दवा नहीं दे सकती
तुम्हारी कमज़ोरी के लिए
टॉनिक नहीं दे सकती
मैं कवि हूँ
मैं सिर्फ दे सकती हूँ तुम्हें
दिल की गहराई से निकली कविता 
इसे रख लो
शायद फ़र्क़ पड़े
शायद ढाढस मिले
कभी-कभी
शब्द चमत्कार कर जाते हैं।

...

More...

मुझे देखा ही नहीं

देखतीं है आँखें बहुत कुछ
ज़मीं, आसमान, सड़कें, पुल, मकान
पेड़, पौधे, इंसान
हाथ, पैर, मुहं, आँख, कान
आँसू, मुस्कान
मगर खुली आँखों भी
अनदेखा रह जाता है बहुत कुछ
पैरों तले की घंसती ज़मीन
सर पर टूटता आसमान
...

More...

तुम्हारे रक्त में बहूं मैं

मेरी ख़ामोशी का
ये अर्थ नहीं
कि मै बस राख हूँ
गौर से देखो
राख की परतों तले
सुलगती आग भी है
अगर तुम्हें जलने का डर ना हो
तो ये आग उठाकर
अपने दिल में रख लो
मै चाहती हूँ
कि तुम्हारी नसों में
बहते रक्त के साथ
...

More...

कौन है वो?

कोई है
जिसके पैरों कि आहट से
चौंक उठते हैं कान
कोई है
जिसकी याद
भुला देती है सारे काम
कोई है
जिसकी चाह
कभी बनती है कमजोरी
कभी बनती है शक्ति
कोई है
जो कंदील सा टिमटिमाता है
मन के सूने गलियारों में
कोई है
...

More...

कोई नहीं होगा साक्षी

पत्थर के नहीं हैं
ये मेरे- तुम्हारे रिश्ते
की चोट सह लें
किरच-किरच हो जायेंगे
देखो, कांच के रिश्ते हैं ये
खुद को सम्हालो
कहीं टूट जाये
और कोई टुकड़ा
पाँव तले आ गया
तो फर्श लाल हो जायेगा
और तुम्हारी
इस तकलीफ का साक्षी
...

More...

हममें फ़र्क़ है

तुम्हारा नजरिया भले ही समान हो
मेरे और अख़बार के प्रति,
मगर हममें फ़र्क़ है
सामयिक सूचनाओं से भरा
पहला पेज नहीं हूँ मै
जो समय के साथ रद्दी हो जायेगा
मै तो वो विशिष्ट परिशिष्ट हूँ
जो समय के साथ
संग्रहणीय होता जायेगा
...

More...

अपनों की बातें

बातें उन बातों की हैं
जिनमें अनगिन घातें थीं,
बातें सब अपनों की थीं।

अपनों की थीं सो चुभती थीं,
चुभती थीं सो दुखती थीं,
दुखती थीं पर सहनी थीं,
सहना ही तो मुश्किल था।

मुश्किल से पार उतरना था
जीवन था और जीना था।

जीना था सो ठान लिया
...

More...

तुझे पाती हूं तो जी जाती हूं

बादल ही क्यों ना फट जाएँ
तेरे पीछे मे रोती भी नहीं
मेरे आंसुओं को भी
तेरी ही
उँगलियों से पुंछने की आदत है।

तुझे पाकर ही छलकता है भरा मन
तुझे पाकर ही टूटता है बाँध
तुझे पाकर ही लौटती है होंठों पर गुनगुनाहट
...

More...

दादी कहती दाँत में | बाल कविता

दादी कहती दाँत में मंजन नित कर नित कर नित कर 
साफ़-सफाई दाँत जीभ की नितकर नित कर नित कर। 
 
सुन्दर दांत सभी को भाते 
आकर्षित कर जाते, 
खूब मिठाई खाओ अगर तो 
कीड़े इनमें लग जाते, 
दोनों समय नियम से मंजन नित कर नित कर नित कर 
...

More...
1 | 2 [Next] [Last]

Total Number Of Record :14

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश