देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

कृष्ण बलदेव वैद

कृष्ण बलदेव वैद

कृष्ण बलदेव वैद का जन्म 27 जुलाई 1927 को पंजाब में हुआ था। आप निर्मल वर्मा के समकालीन थे। आपने हाॅवर्ड विश्विद्यालय से अंग्रेजी में पीएचडी करने के बाद न्यूयार्क स्टेट यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया और वहीं बस गए। बाद में आप भारत लौट आये और दिल्ली में रहे। कृष्ण बलदेव वैद ने 'उसका बचपन', 'बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां', 'तसरीन', 'दूसरा न कोई', 'दर्द ला दवा', 'गुज़रा हुआ ज़माना', 'काला कोलाज', 'नर नारी', 'माया लोक', 'एक नौकरानी की डायरी' जैसे उपन्यासों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।

आपके कहानी-संग्रहों में - 'बीच का दरवाज़ा', 'मेरा दुश्मन', 'दूसरे किनारे से', 'लापता', 'उसके बयान', 'मेरी प्रिय कहानियां', 'वह और मैं', 'ख़ामोशी', 'अलाप', 'प्रतिनिधि कहानियां', 'लीला', 'चर्चित कहानियां', 'पिता की परछाइयां', 'दस प्रतिनिधि कहानियां', 'बोधिसत्त्व की बीवी', 'बदचलन बीवियों का द्वीप', 'संपूर्ण कहानियां', 'मेरा दुश्मन', 'रात की सैर' इत्यादि सम्मिलित हैं।

'वैद' कथा साहित्य में नए प्रयोग के लिए जाने जाते थे। 2007 में कृष्ण बलदेव वैद के 80 वर्षीय होने पर अशोक वाजपेयी और उदयन वाजपेयी ने उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का एक संचयन प्रकाशित किया था। इसमें ऐसी सामग्री संकलित की गई जिसमें कृष्ण बलदेव वैद की दृष्टि, शैलियों और कथ्यों की बहुलता के वितान से परिचय होता है।

आपका पहला और छोटा उपन्यास, 'उसका बचपन' उत्कृष्ट श्रेणी में आता है। आपका नाटक, 'भूख की आग' भी बहुत चर्चित रहा है।

हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर कृष्ण बलदेव वैद हिंदी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में से एक गिने जाते हैं।

[भारत-दर्शन समाचार] 

 

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मेरा दुश्मन

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज मिला दी थी कि खाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस पर कोई खास असर नहीं होता। आँखों में लाल डोर-से झूलने लगते हैं, माथे की शिकनें पसीने में भीग कर दमक उठती हैं, होंठों का जहर और उजागर हो जाता है, और बस - होशोहवास बदस्‍तूर कायम रहते हैं।

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