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शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह (Shamsher Bahadur Singh) का जन्म देहरादून में 13 जनवरी, 1911 को हुआ।
आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई और हाईस्कूल-इंटर की परीक्षा गोंडा से दी। बी.ए. इलाहाबाद से किया, किन्हीं कारणों से एम.ए. फाइनल न कर सके। 1935-36 में चित्रकला सीखी।
1929 में 18 वर्ष की अवस्था में शमशेर बहादुर सिंह का विवाह धर्मवती के साथ हुआ, लेकिन 6 वर्ष के बाद ही 1935 में उनकी पत्नी धर्मवती की टीबी के कारण मृत्यु हो गई। 24 वर्ष के शमशेर को मिला जीवन का यह अभाव कविता में विभाव बनकर हमेशा उनके साथ रहा।
उर्दू की ग़ज़ल से प्रभावित होने पर भी उन्होंने काव्य-शिल्प के नवीनतम रूपों को अपनाया है। प्रयोगवाद और नयी कविता में वे अग्रणी हैं।
'निराला' शमशेर बहादुर सिंह के प्रिय कवि थे। उन्हें याद करते हुए शमशेर बहादुर सिंह ने लिखा था-
"भूल कर जब राह, जब-जब राह.. भटका मैं
तुम्हीं झलके हे महाकवि,
सघन तम की आंख बन मेरे लिए।"
शमशेर बहादुर सिंह उन कवियों में से थे, जिनके लिए मार्क्सवाद की क्रांतिकारी आस्था और भारत की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा में विरोध नहीं था।
कृतियाँ
कविता संग्रह : कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं, चुका भी हूँ मैं नहीं, इतने पास अपने, उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, सुकून की तलाश, शमशेर की ग़ज़लें,
आलोचना : कुछ गद्य रचनाएँ, कुछ और गद्य रचनाएँ
कहानी व स्केच : प्लाट का मोर्चा, शमशेर की डायरी
निबंध : दोआब
संपादन :
'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियां' आदि में संपादन सहयोग। उर्दू-हिन्दी कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे। दूसरा तार सप्तक के कवि हैं।
अनुवाद
सरशार के उर्दू उपन्यास 'कामिनी', हुशू, पी कहां'
एज़ाज़ हुसैन द्वारा लिखित उर्दू साहित्य का इतिहास
'षडयंत्र' (सोवियत संघ-विरोधी गतिविधियों का इतिहास)
'वान्दावासिलवास्का' (रूसी) के उपन्यास 'पृथ्वी और आकाश'
'आश्चर्य लोक में एलिस'।
सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार (मध्यप्रदेश साहित्य परिषद), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार (मध्यप्रदेश सरकार), कबीर सम्मान
निधन: 12 मई, 1993 को शमशेर बहादुर सिंह का निधन हो गया
Author's Collection
Total Number Of Record :1मैं आपसे कहने को ही था | ग़ज़ल
मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया खयाल एकायक
कुछ बातें समझना दिल की, होती हैं मोहाल एकायक
साहिल पे वो लहरों का शोर, लहरों में वो कुछ दूर की गूँज
कल आपके पहलू में जो था, होता है निढाल एकायक
जब बादलों में घुल गयी थी कुछ चाँदनी-सी शाम के बाद
क्यों आया मुझे याद अपना वो माहे-जमाल एकायक
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