देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

बालेश्वर अग्रवाल

बालेश्वर अग्रवाल

बालेश्वर अग्रवाल (17 जुलाई 1921 - 23 मई, 2013)

प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच जो एक विशाल और सुदृढ़ सेतु आज खड़ा है उसके विश्वकर्मा थे ‘बालेश्वर अग्रवाल।‘ उन्होंने अपने तन, मन और धन से प्रवासी भारतीयों की सेवा की। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास जैसी संस्थाओं के माध्यम से विदेश में बसे भारतीयों से सम्पर्क स्थापित किए। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन' का निर्माण करवाया।

पत्रकारिता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) नगर में हुआ था। आपके पिता नारायण प्रसाद अग्रवाल जेल अधीक्षक थे व आपकी माता जी का नाम प्रभादेवी था। चूंकि आपका जन्म बालासोर (बालेश्वर) में हुआ था इसलिए आपका नाम बालेश्वर रखा गया। 

हाई स्कूल तक की शिक्षा बिहार के हजारी बाग में प्राप्त की। यहीं सेंट कोलम्बस से इन्टर मीडियेट पास किया। फिर उच्च शिक्षा पाने के लिए वाराणसी चले गए। बनारस में उन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। 1949 में बी.एससी इंजीनियरिंग की परीक्षा उर्त्तीण की। इसके बाद रोजगार से जुड़ने का प्रयास किया। कुछ समय तक डालमिया नगर की रोहतास इंडस्ट्री में काम किया।

आपकी प्रतिभा घर-गृहस्थी में बंधने के लिए नहीं थी। उनके भाग्य में कुछ और ही निश्चित था। बालेश्वरजी आजीवन अविवाहित रहे और अपना जीवन समाज विशेषत: प्रवासी भारतीयों के नाम कर दिया। समाज और देश ही उनके लिए सर्वोपरि रहा।

यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का संकल्प ले चुके थे। 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र' के सम्पादन का काम दिया गया।

बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार' नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे, बापू राव लेले और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही इससे जुड़ गये।

उल्लेखनीय है कि बालेश्वर अग्रवाल हिन्दुस्थान समाचार (बहुभाषी न्यूज एजेंसी) के 1956 से 1982 तक प्रधान सम्पादक व महा प्रबंधक रहे।

इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार' को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था' बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके।

हिंदुस्तान समाचार से अलग होने के पश्चात उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का काम सँभाला और साथ ही ‘युगवार्ता सेवा' के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े रहे।

वरिष्ठ पत्रकार, ‘डॉ वेदप्रताप वैदिक' कहते हैं, "बहुत कम लोगों को पता होगा कि बालेश्वर जी के प्रयास से ही नागरी लिपि के दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इससे पूर्व केवल अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे।"

तत्कालीन संचार मंत्री जगजीवन राम ने दिल्ली तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया था। भारतीय समाचार जगत में इससे एक नए क्रांतिकारी युग का प्रारम्भ हुआ।

विदेशों से आने वाले प्रवासी भारतीयों की सुविधा के लिए नई दिल्ली में ‘प्रवासी भवन' का निर्माण करके उन्होंने इस क्षेत्र में एक उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार द्वारा 9 जनवरी को आयोजित किए जाने वाले ‘प्रवासी दिवस' की सर्वप्रथम परिकल्पना बालेश्वरजी ने ही की थी। उन्होंने स्वयं भी अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास की स्थापना करके प्रतिवर्ष एक ऐसे भारतवंशी को सम्मानित करने का बीड़ा उठाया जो विदेशों में रहता हुआ भारतीय मूल के लोगों और भारत के मध्य एक सेतु का निर्माण करते हुए उनके कल्याणकारी कार्यों में जुटा रहे।

शीर्षस्थ नेताओं से उनके आत्मीय सम्बंध रहे किन्तु उन्होंने इसका कभी कोई लाभ नहीं उठाया। हाँ, प्रवासी भारतवंशियों के किसी भी काम के लिए वे फोन उठाकर किसी भी नेता या अधिकारी से बातचीत करने में एक पल नहीं लगाते थे। इन पंक्तियों के लेखक का यह व्यक्तिगत अनुभव है, जो अनेक बार प्रत्यक्ष देखा गया।

जीवन में ऐसे बहुत कम लोग मिलेंगे जिनकी वाणी और कर्म में सामंजस्य हो, बालेश्वर अग्रवाल एक ऐसे ही महा मानव थे जिनकी वाणी और कर्म में अंतर न था। वे कर्मठ थे और किसी तपस्वी से कम नहीं थे। अपनी निजी संपत्ति तक समाज को दे चुके थे और अपना संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित कर दिया। उन्होंने विश्व भर में बसे भारतवंशियों को एक सूत्र में पिरोया। आज भी विश्व भर में उनके अनगिनत चाहने वाले लोग मिल जाएंगे।

1997 में बालेश्वर जी के नेतृत्व में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद का शिष्टमंडल न्यूज़ीलैंड के दौरे पर आया था। इस शिष्टमंडल में 'भानुप्रताप शुक्ल' भी उनके साथ आए थे।   

उल्लेखनीय है कि हिन्दी भाषा के विश्व में प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार ने हिन्द महासागर द्वीप के मॉरीशस में 'विश्व हिन्दी सचिवालय' स्थापित किया है। फरवरी, 2008 में शुरू हुआ विश्व हिन्दी सचिवालय अब एक भव्य परिसर का रूप ले चुका है। अपने स्थापना वर्ष से सचिवालय लगातार अपनी वैश्विक गतिविधियों द्वारा हिंदी को विश्व भाषा बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

अगस्त, 2018 में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दूकन ने विश्व हिंदी सचिवालय के अंतर्गत ग्रंथालय को श्री बालेश्वर अग्रवाल के नाम पर समर्पित किया था।

प्रारम्भ से ही बालेश्वर अग्रवाल ने अपना सर्वस्व समाज को अर्पित कर दिया था। ‘वासुधैव कुटुम्बकम' के सिद्धांत में अडिग विश्वास रखने वाले डॉ. अग्रवाल ने इसे अपने जीवन के पल-पल में उतारा था।

हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित डॉ. बालेश्वर अग्रवाल का लंबी बीमारी के बाद आज 23 मई 2013 को नई दिल्ली में निधन हो गया। 

बालेश्वर जी अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। हर कार्य ठीक समय पर करने के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी अनुशासनात्मक और नियमबद्ध कार्य करने की प्रणाली के कारण उनके व्यवहार में कठोरता और कभी-कभी रूखापन तक आ जाना स्वाभाविक था।  ऐसा कोई अवसर नहीं होता था जब बालेश्वर जी निर्धारित समय पर कोई कार्यक्रम प्रारम्भ न करवा पायें अथवा नियत समय पर वहाँ न पहुँचे हों। निर्धारित समय में होने वाला तनिक सा विलम्ब भी उन्हें बर्दाश्त नहीं था।

बालेश्वर अग्रवाल का 23 मई, 2013 को निधन हो गया था।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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आत्मकथ्य : बालेश्वर अग्रवाल

जीवन के नब्बे वर्ष पूरे हो रहे हैं आज जब मैं यह सोच रहा हूँ, तो ध्यान में राष्ट्रकवि स्व. श्री माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता 'पुष्प की अभिलाषा' की पक्तियां याद आ रही है।

चाह नहीं में सुरबाला के, गहनों में गुथा जाऊँ!
चाह नहीं प्रेमी माला में, विंध, प्यारी को ललचाऊँ!!
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक!
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक!!

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कलयुग के ब्रह्म-ऋषि

यह कविता अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद् के भूतपूर्व उपाध्यक्ष, 'बी एल गौड़' ने बालेश्वर जी के जन्मदिवस पर लिखी थी।  

कलयुग के इस ब्रह्म-ऋषि को
कोटि-कोटि हे नमन मेरा
दशकों पहले जन्म हुआ, तो
श्री बालेश्वर नाम धरा।

यों तो लोग यहाँ आते हैं
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समय के झरोखे से बालेश्वर अग्रवाल

17 जुलाई 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) नगर में बालेश्वर अग्रवाल का जन्म हुआ।

1939 में मैट्रिकुलेशन परीक्षा पास की।

1945 से 1948 तक डालमिया नगर (बिहार) में इंजीनियर के पद पर नियुक्त रहे।

1948 में संघ के सत्याग्रह के अवसर पर भूमिगत।

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