देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

फादर कामिल बुल्के

फादर कामिल बुल्के (1 सितम्बर 1909 - 17 अगस्त 1982)

फादर कामिल बुल्के हिंदी के एक ऐसे समर्पित सेवक रहे, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। उनका जन्म 1 सितम्बर 1909 को बेल्जियम के रामस्कापले गाँव में हुआ था। अपने युवा दिनों में उन्होंने सन्यासी बनने का फैसला लिया और भारत की तरफ रुख किया। यहां वह रांची में आकर एक स्कूल में पढ़ाने लगे। खुद इंजिनियरिंग के स्टूडेंट रहे कामिल बुल्के भारत की बोली-बानी में ऐसे रमे कि न सिर्फ हिंदी, बल्कि ब्रज, अवधी और संस्कृत भी सीखी।

बुल्के भारत आने से पहले इंजीनियरिंग में स्नातक थे। आपने कोलकाता से संस्कृत में एम.ए किया तथा इलाहाबाद से हिंदी में एम.ए किया। 'रामकथा उत्पत्ति एवं विकास' पर इलाहाबाद विश्व विद्यालय से पीएच डी की। फिर राँची में रहकर अपना सम्पूर्ण जीवन हिंदी सेवा में लगा दिया। 1974 में पद्मभूषण से अलंकृत 'बुल्के' भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में रामकथा के विषय-विशेषज्ञ के रूप में जाने गए।

'राम कथा की उत्पत्ति' पर उनका शोध सर्वाधिक प्रामाणिक शोध माना जाता हकाई। आप सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची में हिंदी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष भी रहे।

कामिल बुल्के के हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश से तो सभी परिचित हैं। यह उनका परिश्रम और लगन ही था कि उस शब्दकोश में 40 हजार से अधिक शब्द आए। कामिल बुल्के की अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओं के ज्ञान का हिंदी को लाभ मिला और यह शब्दकोश इतना प्रामाणिक बन गया कि आज भी किसी शब्द पर विवाद होने पर लोग कामिल बुल्के की डिक्शनरी देखते हैं। भारत जैसे धर्मबहुल देश में उन्होंने बाइबल का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने लिखा है, 'ईश्वर का धन्यवाद, जिसने मुझे भारत भेजा और भारत के प्रति धन्यवाद, जिसने मुझे इतने प्रेम से अपनाया।'

17 अगस्त, 1982 को फादर बुल्के का निधन हो गया। हिंदी सेवा के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया गया।

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