देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

डॉ. जगदीश व्योम

डॉ. जगदीश व्योम (Dr. Jagdish Vyom) समकालीन कवि एवं लेखक हैं। डॉ. व्योम का जन्म 1 मई, 1960 को शम्भूनगला, फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपने एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. एड., पीएच. डी. की है।

डॉ. व्योम हिंदी हाइकु, लोक साहित्य एवं नवगीत के क्षेत्र में अपने विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं। आप हिंदी हाइकु की विशेष पत्रिका हाइकु दर्पण के संपादक हैं। इसके अतिरिक्त भारत की लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में इनके शोध लेख, कहानी, बाल कहानी, हाइकु, नवगीत आदि का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी दिल्ली, मथुरा, सूरतगढ़, ग्वालियर, लखनऊ, भोपाल आदि केंद्रों पर आपकी कविता, कहानी तथा वार्ताओं का प्रसारण हुए हैं।

कृतियाँ :
इंद्रधनुष, भोर के स्वर (काव्य-संग्रह), कन्नौजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण (शोध-ग्रंथ), कन्नौजी लोकोक्ति और मुहावरा कोश (कोश), नन्हा बलिदानी, डब्बू की डिबिया (बाल-उपन्यास), सगुनी का सपना (बाल कहानी-संग्रह)।

संपादन :
हाइकु कोश, बाल प्रतिबिंब (बाल-पत्रिका), हाइकु दर्पण (हाइकु पत्रिका), आजादी के पास-पास, कहानियों का कुनबा (कहानी-संग्रह), भारतीय बच्चों के हाइकु, नवगीत-2013

वेब पत्रिका संपादन :
हिंदी साहित्य, हाइकु कोश, हाइकु संसार, हाइकु दर्पण, नवगीत।

शोध कार्य :
लखनऊ विश्वविद्यालय से 'कन्नौजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण' पर।

सम्मान :
प्रकाशिनी हिंदी निधि कन्नौज द्वारा सम्मानित, नन्हा बलिदानी बाल-उपन्यास के लिए पाँच पुरस्कार, 2005 का माइक्रोसॉफ्ट वर्ल्ड पुरस्कार, इंटरनेट पर हिंदी वेबसाइट के लिए अनुभूति पुरस्कार व महाप्राण निराला सम्मान [डलमऊ]।

ईमेल : jagdishvyom@gmail.com

Author's Collection

Total Number Of Record :4

मेरा भी तो मन करता है

मेरा भी तो मन करता है
मैं भी पढ़ने जाऊँ
अच्छे कपड़े पहन
पीठ पर बस्ता भी लटकाऊँ

क्यों अम्मा औरों के घर
झाडू-पोंछा करती है
बर्तन मलती, कपड़े धोती
पानी भी भरती है

अम्मा कहती रोज
‘बीनकर कूड़ा-कचरा लाओ'
...

More...

बचपन से दूर हुए हम

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया
कपड़ों को अपने बदलना न आया
लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम

अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना
...

More...

सो गई है मनुजता की संवेदना

सो गई है मनुजता की संवेदना
गीत के रूप में भैरवी गाइए
गा न पाओ अगर जागरण के लिए
कारवाँ छोड़कर अपने घर जाइए

झूठ की चाशनी में पगी जिन्दगी
आजकल स्वाद में कुछ खटाने लगी
सत्य सुनने की आदी नहीं है हवा
...

More...

माँ

माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रुबाई-सी

माँ वेदों की मूल चेतना
माँ गीता की वाणी-सी
माँ त्रिपिटक के सिद्ध सुत्त-सी
लोकोत्तर कल्याणी-सी

माँ द्वारे की तुलसी जैसी
...

More...
Total Number Of Record :4

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश