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त्रिलोक सिंह ठकुरेला
त्रिलोक सिंह ठकुरेला (Trilok Singh Thakurela) के पिता का नाम श्री खमानी सिंह एवं माता का नाम श्रीमती देवी है। आपका जन्म 1 अक्टूबर 1966 को उत्तर प्रदेश में हाथरस के निकट नगला मिश्रिया गाँव में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला, बसगोई में और माध्यमिक शिक्षा विजय विद्यालय इंटर कालेज, तोछीगढ़ में हुई।
आपके पिता जी शिक्षक थे। बचपन में शिक्षक पिता इन्हें प्रेरक बाल-कवितायें सुनाते थे, यही से कविता के प्रति आपकी अभिरुचि अंकुरित हुई। आपकी अनेक छंदों पर अच्छी पकड़ है। ठकुरेला जी ने कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है। उनकी कुछ कुण्डलिया देखें:
मोती बन जीवन जियो, या बन जाओ सीप।
जीवन उसका ही भला, जो जीता बन दीप॥
जो जीता बन दीप, जगत को जगमग करता।
मोती सी मुस्कान, सभी के मन मे भरता।
‘ठकुरेला’ कविराय, गुणों की पूजा होती॥
बनो गुणों की खान, फूल, दीपक या मोती॥
चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव।
मिल जाता है सब उसे, हो जिसके मन चाव॥
हो जिसके मन चाव, कोशिशें सफल करातीं।
लगे रहो अविराम, सभी निधि दौड़ी आतीं।
‘ठकुरेला’ कविराय, आलसी निज कर मलते।
पा लेते गंतव्य, सुधीजन चलते चलते॥
अन्य छंदों में आप दोहे भी खूब लिखते हैं--
जब उसके दिल से जुडे़, मेरे दिल के तार।
यही समझ में आ सका, प्रेम जगत का सार॥
आपने खुसरो और भारतेन्दु बाबू की मुकरियाँ तो पढ़ी होंगी! आज यह लुप्तप्राय विधा है लेकिन ठकुरेला जी का सृजन इस विधा में भी देखने को मिलता है--
मुझे देखकर लाड़ लड़ाये।
मेरी बातों को दोहराये।
मन में मीठे सपने बोता।
क्या सखि साजन ? ना सखि तोता।
हाइकु की बात करें तो एक हाइकु देखिए--
वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन युद्ध।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने अनेक विधाओं जिनमें बाल साहित्य, लघुकथाएँ और काव्य की अनेक विधाएँ सम्मिलित है, में साहित्य-सृजन किया है। आप छांदस कविताओं के पक्षधर हैं।
बाल-साहित्य सृजन के लिए इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार (2012 -13) से सम्मानित किया गया है। 'नया सवेरा', 'काव्यगन्धा' इनकी चर्चित कृतियाँ हैं। कुण्डलिया छंद के उन्नयन के लिए इन्होंने रचनाकारों को प्रेरित कर 'कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर' और 'कुण्डलिया-कानन' का सम्पादन किया। 'आधुनिक हिन्दी लघुकथाएँ ' लघुकथा संकलन का सम्पादन किया।
रेलवे में अभियंता (इंजीनियर) त्रिलोक सिंह ठकुरेला को इनके साहित्यिक अवदान के लिए अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
प्रकाशित कृतियाँ
नया सवेरा ( बाल साहित्य )
काव्यगंधा ( कुण्डलिया संग्रह )
समय की पगडंडियों पर ( गीत संग्रह )
आनन्द मंजरी ( मुकरी संग्रह)
सम्पादन
आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ
कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर
कुण्डलिया कानन
कुण्डलिया संचयन
समसामयिक हिंदी लघुकथाएँ
कुण्डलिया छंद के नये शिखर
सम्मान / पुरस्कार
राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार '
पंजाब कला , साहित्य अकादमी ,जालंधर ( पंजाब ) द्वारा ' विशेष अकादमी सम्मान '
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ , गांधीनगर ( बिहार ) द्वारा 'विद्या- वाचस्पति'
हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा 'वाग्विदाम्वर सम्मान '
राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट ( भारत ) गाज़ियाबाद द्वारा ' बाल साहित्य भूषण '
निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान , बस्ती ( उ. प्र. ) द्वारा 'राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान'
हिंदी साहित्य परिषद , खगड़िया ( बिहार ) द्वारा स्वर्ण सम्मान
प्रसारण
आकाशवाणी और रेडियो मधुवन से रचनाओं का प्रसारण
आपकी अनेक रचनाएँ विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित हैं।
संपर्क
बंगला संख्या- 99 ,
रेलवे चिकित्सालय के सामने,
आबू रोड -307026 जिला - सिरोही ( राजस्थान )
मोबाइल : 09460714267
Author's Collection
Total Number Of Record :9ऐसा वर दो
भगवन् हमको ऐसा वर दो।
जग के सारे सद्गुण भर दो॥
हम फूलों जैसे मुस्कायें,
सब पर प्रेम सुगंध लुटायें,
हम परहित कर खुशी मनायें,
ऐसे भाव हृदय में भर दो।
भगवन् हमको ऐसा वर दो॥
दीपक बनें, लड़े हम तम से,
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कठपुतली
ठुमक-ठुमक नाचे कठपुतली
सबके मन को मोहे।
रंग बिरंगे सुन्दर कपड़े
उसके तन पर सोहे॥
हाथ नचाती, पैर नचाती,
रह रह कमर घुमाती।
नये नये करतब दिखलाकर
सबका मन बहलाती॥
उसे थिरककर नचा रहे हैं
आशाओं के धागे।
सपनों के नव पंख लगाकर
बढ़ती जाती आगे॥
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पापा, मुझे पतंग दिला दो
पापा, मुझे पतंग दिला दो,
भैया रोज उड़ाते हैं।
मुझे नहीं छूने देते हैं,
दिखला जीभ, चिढ़ाते हैं॥
एक नहीं लेने वाली मैं,
मुझको कई दिलाना जी।
छोटी सी चकरी दिलवाना,
मांझा बड़ा दिलाना जी॥
नारंगी और नीली, पीली
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
जब भी देखूं, आतप हरता।
मेरे मन में सपने भरता।
जादूगर है, डाले फंदा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, चंदा।
लंबा कद है, चिकनी काया।
उसने सब पर रौब जमाया।
पहलवान भी पड़ता ठंडा।
क्या सखि, साजन? ना सखि, डंडा।
उससे सटकर, मैं सुख पाती।
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया
कुण्डलिया
मोती बन जीवन जियो, या बन जाओ सीप।
जीवन उसका ही भला, जो जीता बन दीप।।
जो जीता बन दीप, जगत को जगमग करता।
मोती सी मुस्कान, सभी के मन मे भरता।
‘ठकुरेला’ कविराय, गुणों की पूजा होती।।
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चिड़िया
घर में आती जाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
तिनके लेकर नीड़ बनाती ,
अपना घर परिवार सजाती ,
दाने चुन चुन लाती चिड़िया ।
सबके मन को भाती चिड़िया ।।
सुबह सुबह जल्दी जग जाती ,
मीठे स्वर में गाना गाती ,
...
जीवन में नव रंग भरो
सीना ताने खड़ा हिमालय,
कहता कभी न झुकना तुम।
झर झर झर झर बहता निर्झर,
कहता कभी न रुकना तुम॥
नीलगगन में उड़ते पक्षी,
कहते नभ को छूलो तुम।
लगनशील को ही फल मिलता,
इतना कभी न भूलो तुम॥
सन सन चलती हवा झूमकर,
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नई सदी के बच्चे
नई सदी के बच्चे हैं हम
मिलकर साथ चलेंगे।
प्रगति के रथ को हम मिलकर
नई दिशाएं देंगे।
जल, थल, नभ में काम करेंगे
जो चाहें पायेंगे।
सदा राष्ट्र की विजय पताका
मिलकर फहरायेंगे॥
हर कुरीति, हर आडम्बर को
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प्यारे बादल
देखो, माँ! नभ में आ पहुँचे,
ये घनघोर सुघड़ बादल।
इन्हें देखकर इतराई, झूमी,
हवा हुई कितनी चंचल॥
उड़े जा रहे आसमान में,
बादल अपनी मस्ती में।
पता नहीं ये उड़ते उड़ते
जायेंगे किस बस्ती में॥
...