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दिव्या माथुर
दिव्या माथुर ब्रिटेन मे बसी भारतीय मूल की हिंदी साहित्यकार हैं। आपका जन्म 23 मई 1949 को दिल्ली में हुआ। आप कविता, कहानी व उपन्यास विधाओं में साहित्य-सृजन करती हैं।
देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ और कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। आप पर अनेक शोध-पत्र किए जा चुके हैं। आप रॉयल सोसाइटी की फ़ेलो (Royal Society, Fellow) हैं। हिंदी के अतिरिक्त पंजाबी पर भी आपकी सशक्त पकड़ है।
विशिष्ट संगीतज्ञ राधिका चोपड़ा, रीना भारद्वाज, कविता सेठ, वसुधा सक्सेना और सतनाम सिंह द्वारा आपके गीतों और ग़ज़लों की संगीतबद्ध प्रस्तुतियाँ हुई हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी की शृंखलाओं, ‘इस माह के लेखक’ के अंतर्गत कार्यक्रम प्रसारित हुए। आपकी कहानी, 'सांप सीढी' पर दूरदर्शन द्वारा टेली-फिल्म का निर्माण हुआ है।
शिक्षा
आपने बी.ए. (अंग्रेज़ी; इतिहास और हिंदी-वैकल्पिक); एम.ए. (अँग्रेज़ी) के अतिरिक्त दिल्ली एवं ग्लास्गो से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया। इसके अतिरिक्त चिकित्सा-आशुलिपि का स्वतंत्र अध्ययन किया।
साहित्यिक कृतियाँ
उपन्यास
शाम भर बातें
कविता संग्रह
अंतःसलिला, ख़याल तेरा, रेत का लिखा, 11 सितम्बर: सपनों की राख तले, चंदन पानी, झूठ, झूठ और झूठ
कहानी संग्रह
मेड-इन-इंडिया और अन्य कहानियां, हिंदी@स्वर्ग.इन, 2050 और अन्य कहानियां, पंगा और अन्य कहानियां, आक्रोश, हा जीवन हा मृत्यु
अँग्रेज़ी में संपादन
औडिस्सी (Odyssey) Stories by Indian Women Writers Settled Abroad, आशा (Asha-Odyssey II) Short Stories by Indian Women Writers, देसी गर्ल्स (Desi-Girls) यूके में बसी भारतीय लेखिकाओं की कहानियां
सम्मान
आर्ट्स अचीवर, आर्टस काउन्सिल ऑफ इंग्लैण्ड का अवार्ड, परमानन्द साहित्य एवं संस्कृति सेवा सम्मान, प्रवासी साहित्य सम्मान, संस्कृति सेवा सम्मान, हरिवंशराय बच्चन लेखन सम्मान
Author's Collection
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ऋचा की आँखों में उच्च वर्ग का सा इस्पात उतर आया, एकबारगी उसे लगा कि वह भी इस्पात में ढल सकती है। गँवार लोग ही रोते हैं, उच्च वर्ग के लोगों के सपाट चेहरों पर कभी देखा है किसी ने कोई उल्लास या उदासी! ये लौह युग है, यंत्रों और तंत्रों से संचालित। यहाँ भावनाओं का क्या काम? कितने लोग बचे हैं जो ज़रा ज़रा सी बात पर उद्वेलित हो जाते हैं, जिनकी भावनाएं उछल-उछल कर छलक उठती हैं। ऋचा को अपनी भावुकता पर नियंत्रण रख्रना होगा किंतु अगले ही पल इस्पात तरल होकर बहने लगता। वह अपने को सम्भाल तक नहीं पाती।
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एडम और ईव
बात ज़रा सी थी; एक झन्नाटेदार थप्पड़ ईव के गाल पर पड़ा। वह संभल नहीं पाई, कुर्सी और मेज़ से टकराती हुई ज़मीन पर जा गिरी। उसका बायां हाथ स्वतः गाल पर चला गया, लगा कि जैसे उसका चेहरा ऊबड़-खाबड़ हो गया हो। जबाड़े की हड्डियां एक दूसरे पर चढ़ गयी थीं और दर्द के मारे उसका बुरा हाल था उसने उठने की कोशिश की, उसकी आँखों के आगे तारे घूम गए।
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सांप-सीढ़ी
सिनेमाघर के घुप्प अंधेरे में भी राहुल की आंखें बरबस खन्ना-अंकल के उस हाथ पर थीं जो उसकी मम्मी के कंधों और कमर पर बार-बार बहक रहा था। मम्मी के अनुसार खन्ना-अंकल ने यह फिल्म इसलिए चुनी थी कि चार्ली- चैपलिन राहुल का चहेता कमीडियन था।
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अंतिम तीन दिन
अपने ही घर में माया चूहे सी चुपचाप घुसी और सीधे अपने शयनकक्ष में जाकर बिस्तर पर बैठ गई; स्तब्ध। जीवन में आज पहली बार मानो सोच के घोड़ों की लगाम उसके हाथ से छूट गई थी। आराम का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था; अब समय ही कहाँ बचा था कि वह सदा की भाँति सोफे पर बैठकर टेलिविजन पर कोई रहस्यपूर्ण टीवी धारावाहिक देखते हुए चाय की चुस्कियाँ लेती? हर पल कीमती था; तीन दिन के अंदर भला कोई अपने जीवन को कैसे समेट सकता है? पचपन वर्षों के संबंध, जी जान से बनाया यह घर, ये सारा ताम झाम, और बस केवल तीन दिन? मजाक है क्या? वह झल्ला उठी किंतु समय व्यर्थ करने का क्या लाभ? डॉक्टर ने उसे केवल तीन दिन की मोहलत दी थी; ढाई या सीढ़े तीन दिन की क्यों नहीं? उसने तो यह भी नहीं पूछा। माया प्रश्न नहीं पूछती, बस जुट जाती है तन मन धन से किसी भी आयोजन की तैयारी में; युद्ध स्तर पर।
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पंगा
एक नई नवेली दुल्हन सी एक बीएमडब्ल्यू पन्ना के पीछे लहराती हुई सी चली आ रही थी, जैसे दुनिया से बेख़बर एक शराबी अपनी ही धुन में चला जा रहा हो या कि जीवन से ऊब कर किसी चालक ने स्टीरिंग-व्हील को उसकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया हो। उसकी कार का नंबर था आर-4-जी-एच-यू जो पढ़ने में 'रघु' जैसा दिखता था। 'स्टुपिड इडियट' कहते हुए पन्ना चौकन्नी हो गई कि यह 'रघु' साहब कहीं उसका राम नाम ही न सत्य कर दें। दुर्घटना की संभावना को कम करने के लिये पन्ना ने अपनी कार की गति बढ़ा ली और अपने और उसके बीच के फासले को बढ़ा लिया।
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फ़ौसफ़र
बिन्नी बुआ का सही नाम बिनीता है पर सब उन्हें प्यार से बिन्नी कहते हैं। बिन्नी बुआ के पालतु बिल्ले का नाम फ़ौसफ़र है और फ़ौसफ़र के नाम के पीछे भी एक मज़ेदार कहानी है। जब बिन्नी बुआ उसे पहली बार घर में लाईं थीं तो उसके चमकते हुए सफ़ेद और काले कोट को देख कर ईशा ने चहकते हुए कहा था।
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