देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

आशीष मिश्रा | इंग्लैंड

आशीष मिश्रा हिंदी कविताएँ व कहानियाँ लिखते हैं। आप गत 12 वर्षों से लंदन, इंग्लैंड में रहते हैं और एक सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट  हैं। 

आपका एक काव्य संग्रह 'मेरी कविता मेरे भाव' 2019 में प्रकाशित हो चुका है। उनके काव्य लेखन को 2017, 2018 में भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा सम्मानित किया गया है। आशीष मिश्रा मंच और ऑनलाइन गोष्ठियों में इंग्लैंड के युवा कवि के रूप में काफी सराहे जा रहे हैं। 

विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'हिंदी प्रज्ञा' सम्मान, साहित्य सेतु परिषद द्वारा 'साहित्य श्री', 'काव्य वैभव' सम्मान।

Author's Collection

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राम 

  लिखने को कुछ और चला था
                   स्वतः कलम ने राम लिखा
    र पर आ की एक मात्रा
                   म मिल कर निष्काम लिखा

    अक्षर दोनों नाच रहे थे 
                 ख़ुद को अव्वल आँक रहे
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काश! मुझे कविता आती

काश! मुझे कविता आती
                लिख देता उनको पुस्तक-सा
  प्रेम भरा दोहा लिखता 
                लिख देता उनको मुक्तक-सा।

  काश! मुझे कविता आती
                 कनखी भरता हर शब्दों में
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हिंद को सलाम करें, शान के  लिये

तीन रंग से बना है, ध्वज यहाँ खड़ा
                शौर्य और शूरता से भव्य है बड़ा
और जिसे देखकर वीर कह उठा
              सलाम हिंद केसरी, श्वेत और हरा
आरती और अर्चना, सम्मान के लिये
देश की आराधना और मान के लिये
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ये बिछा लो आँचल में

भर कर लाया फूल हथेली, प्रिये बिछा लो आँचल में
कुछ गुथने को तत्पर हैं, कुछ उगने को आँगन में।

लाल रंग के फूल चार हैं, चार गुलाबी वाले हैं
एक बैंगनी चूड़ी जैसा, दो पीली डाली वाले हैं
कुछ में बूँदें बसी हुई हैं, पाई थीं जो सावन में
...

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