देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati

सुब्रह्मण्य भारती का जीवन परिचय और रचनाएँ

सुब्रह्मण्य भारती (11 दिसम्बर, 1882 - 11 सितम्बर, 1921) को महाकवि भरतियार के नाम से भी जाना जाता है। भारती तमिल भाषा में सृजन करने वाले भारत के महान कवियों में से एक थे। आपकी देश प्रेम की कविताएँ इतनी उत्कृष्ट हैं कि आपका उपनाम 'भारती'  पड़ गया। 

सुब्रह्मण्य भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को तमिलनाडु के एट्टियपुरम नामक ग्राम में हुआ था। भारती जब केवल पाँच वर्ष के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया।  इसके पश्चात शीघ्र ही पिता का भी निधन हो गया।  11 वर्ष की आयु में उन्हें एक कवि सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, जहाँ उनकी प्रतिभा को देखते हुए सम्मानित किया गया। 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया।  वे अपनी बालावस्था में अपनी बुआ के पास वाराणसी चले गए थे। वाराणसी में उनका परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ।  यहाँ उन्होंने इसका संगीत का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।

महाकवि सुब्रमण्यम भारती 'स्वतंत्रता आंदोलन' में सक्रिय रूप से सम्मिलित थे।  यह उनकी देशभक्ति की रचनाओं का ही प्रभाव था कि दक्षिण भारत में जनसाधारण आज़ादी की लड़ाई में कूदने को प्रेरित हुए।  भारती ऐसे महान कवि थे, जिनकी पकड़ हिंदी, बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी इत्यादि कई भाषाओं पर थी। तमिल उनके लिए सबसे प्रिय और मीठी भाषा थी। भारती का 'गद्य' और 'पद्य' दोनों पर समान अधिकार था।

सुब्रह्मण्य भारती की पत्रकारिता के क्षेत्र में अत्यधिक रुचि रही। वे अनेक समाचार पत्रों के प्रकाशन और संपादन से जुड़े हुए थे, जिनमें तमिल दैनिक 'स्वदेश मित्रम', तमिल साप्ताहिक 'इंडिया' और अंगेज़ी साप्ताहिक 'बाला भारतम' सम्मिलित हैं। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कार्टून प्रकाशित करने आरंभ किए थे। 

दक्षिण के इस सुप्रसिद्ध कवि की प्रारंभिक कविताओं में तमिल राष्ट्रवाद देखने को मिलता है, किन्तु स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के पश्चात उनके जीवन के उत्तरार्ध में लिखी कवितायें भारतीय से प्रभावित हैं और इनमें राष्ट्रवाद का गुणगान है। वे अपनी आत्मकथा में स्वीकार करते हैं कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ।

1905 में काशी में हुए 'कांग्रेस अधिवेशन' में सुप्रसिद्ध गायिका सरला देवी ने जब बंकिम चन्द्र का 'वन्दे मातरम्' गीत गाया, तब भारती भी उस अधिवेशन में गए हुए थे। तभी से बंकिम चन्द्र का 'वन्दे मातरम्' भारती का प्रिय गान बन था।  मद्रास लौटकर भारती ने इस गीत का तमिल में पद्यानुवाद किया, जो आगे चलकर तमिलनाडु के घर-घर में गूँज उठा। सुब्रह्मण्य भारती ने गद्य और पद्य की लगभग 400 रचनाओं का सृजन किया है। 

1918 में पांडिचेरी (पुडुचेरी) से ब्रिटिश भारत में लौटने पर भारती को तुरंत गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें कुछ दिनों तक जेल में रखा गया। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 11 सितंबर, 1921 को मद्रास में उनका निधन हो गया। भारती ने 40 वर्ष से भी कम की आयु पायी और इसी अल्पावधि में उनकी रचनाओं की लोकप्रियता ने उन्हें अमर बना दिया।

-रोहित कुमार हैप्पी
 [भारत-दर्शन संकलन]

 

अर्जुन का संदेह -  सुब्रह्मण्य भारती की कहानी

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अर्जुन का संदेह

हस्तिनापुर मैं गुरु द्रोणाचार्य के पास पांडुपुत्र और दुर्योधन आदि विद्या अध्ययन कर रहे थे, तब की बात है। एक दिन संध्याकालीन बेला में वे लोग शुद्ध वायु का सेवन कर रहे थे तभी अर्जुन ने कर्ण से प्रश्न किया, "हे कर्ण! बताओ, युद्ध श्रैष्ठ है या शांति?"
(यह महाभारत की एक उपकथा है। प्रामाणिक है। कपोल-कल्पित नहीं।)

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सब शत्रुभाव मिट जाएँगे

भारत देश नाम भयहारी, जन-जन इसको गाएँगे।
सब शत्रुभाव मिट जाएँगे।।

विचरण होगा हिमाच्छन्न शीतल प्रदेश में,
पोत संतरण विस्तृत सागर की छाती पर।
होगा नव-निर्माण सब कहीं देवालय का-
पावनतम भारतभू की उदार माटी पर।
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वंदे मातरम्‌

जय भारत, जय वंदे मातरम्‌॥
जय-जय भारत जय-जय भारत, जय-जय भारत, वंदे मातरम्‌।
जय भारत, जय वंदे मातरम्‌।।

एक वाक्य है केवल, जिसको दुहराना है,
आर्यभूमि की आर्य नारियों नर सूर्यों को : वंदे मातरम्‌।
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नमन करें इस देश को

इसी देश में मातु-पिता जनमे पाए आनंद अपार,
और हजारों बरसों तक पूर्वज भी जीते रहे--
अमित भाव फूले-फले जिनके चिंतन में यहीं।
मुक्त कंठ से वंदना और प्रशंसा हम करें--
कहकर वंदे मातरम्, नमन करें इस देश को ॥1॥

इसी देश में जीवन पाया, हमको बौद्धिक शक्ति मिली,
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