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लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी का जीवन परिचय - लक्ष्मीशंकर वाजपेयी (Laxmi Shankar Bajpai) हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। लक्ष्मी शंकर वाजपेयी का जन्म 10 जनवरी 1955 को कानपुर (उत्तर प्रदेश) के सुजगवाँ गाँव में हुआ। आपने छात्र काल में ही लेखन आरंभ कर दिया लेकिन नियमित लेखन 1974 से आरंभ किया। आप विज्ञान के छात्र रहे हैं और आप भौतिक विज्ञान में एम. एससी हैं।
प्रारंभ में व्यंग्य कविता आपकी मुख्य विधा रही, 1976 से ग़ज़ल से जुड़े। ग़ज़ल के अतिरिक्त छंदमुक्त कविताएं तथा बाल-कविताएं भी लिखते हैं। इनके अतिरिक्त लघुकथाएँ, व्यंग्य लेख, बाल-कहानियाँ और रेडियो धारावाहिक भी प्रकाशित हुए हैं।
साहित्य के अतिरिक्त आप पत्रकारिता, संगीत, अध्यात्म व समाज-सेवा में भी गहन रुचि रखते हैं। आप लंबे समय तक आकाशवाणी से जुड़े रहे हैं।
विधाएँ
ग़ज़ल के साथ-साथ हाइकु, लेख, व्यंग्य व बालसाहित्य की विधाओं में सृजन।
प्रकाशन
गज़ल-संग्रह 'खुशबू तो बचा ली जाए', 'बेज़ुबान दर्द' आपके ग़ज़ल संग्रह हैं।
'मच्छर मामा समझ गया हूँ' आपकी चुनिन्दा बाल-कविताओं का संग्रह है।
आपकी अनेक रचनाओं का तमिल, पंजाबी, डोगरी, उर्दू, अंग्रेज़ी जापानी, आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। देश-विदेश में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं और आपको अनेक सम्मान प्राप्त हैं।
Author's Collection
Total Number Of Record :5सैलाब | लघुकथा
पिता की मृत्यु के बाद के सारे कार्य संपन्न हो चुके थे। अब तेरहवीं होनी थी और अगले दिन मुझे नौकरी पर वापस ग्वालियर रवाना हो जाना था.. बस एक ही डर बार बार मुझे बुरी तरह परेशान कर रहा था और उस दृश्य की कल्पना मात्र से सहम उठता था मैं.. और ये दृश्य था मेरी इस बार की विदाई का ..जब दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो..हर बार ग्वालियर रवाना होने के वक्त माँ फूटफूटकर रोने लगती थीं.. और मैं दो तीन दिन अवसाद मे रहता था..मोबाइल भी नहीं थे उन दिनों..। यूं भी कोई भी रिश्तेदार आता तो बातचीत के दौरान माँ के आँसू ज़रूर निकलते।
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सोनू की बंदूक
सोनू की बंदूक उस तरह की बंदूक नहीं थी जैसी घर घर में बच्चे प्लास्टिक या लोहे की बंदूक से खेलते रहते हैं..। दरअसल सोनू अपनी दोनों हथेलियों को आपस मे गूंथकर दो उंगलियां बंदूक की नाल की तरह सामने रखकर जब ठॉंय करता तो देखने वाला उसकी इस अदा को देखता ही रह जाता..। उसकी इसी प्यारी अदा को देखने के लिए उसके चाचा और दूसरे घरवाले सोनू को जानबूझकर छेड़ते ताकि सोनू अपनी बंदूक से ठायँ करे। जब ठायँ करने पर सामने वाला अपने सीने या पेट पर हाथ रखकर हाय करता या लड़खड़ाता तो सोनू अपनी जीत पर खूब खिलखिलाकर हँसता। सोनू की बंदूक की प्रतिष्ठा अड़ोस पड़ोस और मोहल्ले मे भी पहुंच गयी थी। सोनू चबूतरे पर होता तो मोहल्ले वाले भी उसे छेड़ कर ठॉयँ का मज़ा लेते और लड़खड़ाकर गिरने का नाटक करते। अब सोनू को अपनी बंदूक की मारक क्षमता पर पूरा भरोसा हो गया था।
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अपील
दुनिया भर की सारी धार्मिक किताबों ने,
एक सामूहिक अपील जारी की है…
कि हम आपकी श्रद्धा और सम्मान के लिए
हृदय से आभारी हैं…
लेकिन काश आप हमें पूजने की बजाय
पढ़ लेते!
पढ़ने के साथ-साथ समझ लेते…
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दहशत
सुबह-सुबह जब पढ़ रहा होता हूँ अख़बार
पीठ पर आकर लद जाती है बेटी
और अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरी गर्दन को लपेट कर
झूला सा झूलते हुए
अक्षर सीख लेने के नये-नये जोश में
ज़ोर-ज़ोर से पढ़ती है
अखबार की सुर्खियाँ
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संकेतों की भाषा
वे चार पांच के समूह में…
बातें करते हैं संकेतों की भाषा में…
देखते बनती है उनके हाथों और उँगलियों के संचालन की मुद्राएं और उनकी गति भी…
वे बहुत गहरे डूबे हैं अपने वार्तालाप में
तरह-तरह के भाव उभरते हैं उनके चेहरों पर…
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