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गोपालदास ‘नीरज’
गोपालदास ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1924 को इटावा (उत्तर प्रदेश) में हुआ। हिन्दी गीतों का पर्यायवाची बन चुके नीरज महाविद्यालय में प्राध्यापक रह चुके हैं।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उन्हें हिन्दी की वीणा का नाम दिया था।
नीरज जब मंच पर झूम कर काव्यपाठ करते हैं तो श्रोताओं मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
भारत सरकार के पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे अलंकरणों से अलंकृत गोपालदास ‘नीरज’ हिन्दी काव्य जगत् की गरिमा हैं।
गीतकार व कवि गोपालदास 'नीरज' का 19 जुलाई की सांय दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में देहांत हो गया। 'नीरज' 93 वर्ष के थे।
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बदन पे जिसके...
बदन पे जिसके शराफत का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा
खरीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा
मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख्मी
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा
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गोपालदास नीरज के गीत | जलाओ दीये | Neeraj Ke Geet
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।
नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
...
अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए
आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए
मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए
...
जितना कम सामान रहेगा | नीरज का गीत
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
...
तुम दीवाली बनकर
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा!
सूनी है मांग निशा की चंदा उगा नहीं
हर द्वार पड़ा खामोश सवेरा रूठ गया,
है गगन विकल, आ गया सितारों का पतझर
तम ऐसा है कि उजाले का दिल टूट गया,
...
गोपालदास नीरज के दोहे
(1)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
(2)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीन
जब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन
(3)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
(4)
...
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ
दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा,
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ !
बहुत बार आई-गई यह दिवाली
मगर तम जहाँ था वहीं पर खड़ा है,
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक
कफन रात का हर चमन पर पड़ा है,
न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे
...
मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा
मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा!
रोज रात को नींद चुरा ले जायेगी पपिहों की टोली,
रोज प्रात को पीर जगाने आयेगी कोयल की बोली,
रोज दुपहरी में तुमसे कुछ कथा कहेंगी सूनी गलियाँ,
रोज साँझ को आँख भिगो जायेंगी कुछ मुरझाई कलियाँ,
...
खिड़की बन्द कर दो
खिड़की बन्द कर दो
अब सही जाती नहीं यह निर्दयी बरसात-खिड़की बन्द कर दो।
यह खड़ी बौछार, यह ठंडी हवाओं के झकोरे,
बादलों के हाथ में यह बिजलियों के हाथ गोरे
कह न दें फिर प्राण से कोई पुरानी बात - खिड़की बन्द कर दो।
वो अकेलापन कि अपनी साँस लगती फाँस जैसी,
...
अब के सावन में
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुजरी
था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहाँ रात हुई
ज़िंदगी-भर तो हुई गुफ़्तगू ग़ैरों से मगर
आज तक हमसे हमारी न मुलाक़ात हुई
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