Important Links
महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा का जन्म पुस्तकों में 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ, बताया गया है। उनका जन्म 24 मार्च, 1902 को अधिक तर्कसंगत लगता है चूंकि होली 1902 में ही 24 मार्च (26 की तिथि के निकट) को सही जान पड़ती है। अन्य तिथियों को होली इस दिन के आसपास नहीं थी। दूधनाथ सिंह ने इसपर काफी शोध किया था और नामवर सिंह का भी यही मानना था कि महादेवी वर्मा का जन्म 24 मार्च, 1902 ही सही है। हमने स्वयं इसपर शोध के पश्चात दूधनाथ सिंह के शोध से सहमति बनायी है।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई। महादेवी 1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद आप समाज-सेवा में लग गईं। 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए करने के पश्चात आपने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की व उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्यरत रही। मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया।
कविता संग्रह : नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, प्रथम आयाम और अग्निरेखा थे।
गद्य साहित्य : रेखाचित्र, संस्मरण, निबन्ध, कहानियां आदि सम्मलित होते हैं। इनमें उनकी प्रमुख रचनाएँ थीं- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार, संस्मरण, संभाषण, शृंखला की कड़ियाँ, गिल्लू, नीलकंठ आदि।
11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में आपका निधन हो गया।
Author's Collection
1 | 2 [Next] [Last]Total Number Of Record :11
जो तुम आ जाते एक बार | कविता
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
...
अधिकार | कविता
वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना।
वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनन्त रितुराज, नहीं
जिसने देखी जाने की राह।
वे सूने से नयन, नहीं
...
मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता
मैं नीर भरी दुःख की बदली,
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनो में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झनी मचली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,
...
बिंदा
भीत-सी आंखों वाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर दृष्टि डाल कर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते हुए कहा- 'आपने आयु ठीक नहीं भरी है। ठीक कर दीजिए, नहीं तो पीछे कठिनाई पड़ेगी।' 'नहीं, यह तो गत आषाढ़ में चौदह की हो चुकी' सुनकर मैंने कुछ विस्मित भाव से अपनी उस भावी विद्यार्थिनी को अच्छी तरह देखा, जो नौ वर्षीय बालिका की सरल चंचलता से शून्य थी और चौदह वर्षीय किशोरी के सलज्ज उत्साह से अपरिचित।
...
चीनी भाई
मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और उनकी एकरसता दूर करने वाली, वस्त्र पर पड़ी हुई सिकुड़न जैसी नाक की गठन में भी विशेष अंतर नहीं दिखाई देता। कुछ तिरछी अधखुली और विरल भूरी वरूनियों वाली आँखों की तरल रेखाकृति देख कर भ्रांति होती है कि वे सब एक नाप के अनुसार किसी तेज धार से चीर कर बनाई गई हैं। स्वाभाविक पीतवर्ण धूप के चरणचिह्नों पर पड़े हुए धूल के आवरण के कारण कुछ ललछौंहे सूखे पत्ते की समानता पर लेता है। आकार, प्रकार, वेशभूषा सब मिल कर इन दूर देशियों को यंत्रचालित पुतलों की भूमिका दे देते हैं, इसी से अनेक बार देखने पर भी एक फेरी वाले चीनी को दूसरे से भिन्न कर के पहचानना कठिन है।
...
गिल्लू
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है।
...
बया | बाल-कविता
बया हमारी चिड़िया रानी।
तिनके लाकर महल बनाती,
ऊँची डालों पर लटकाती,
खेतों से फिर दाना लाती
नदियों से भर लाती पानी।
तुझको दूर न जाने देंगे,
दानों से आँगन भर देंगे,
और हौज में भर देंगे हम
मीठा-मीठा पानी।
फिर अंडे सेयेगी तू जब,
...
श्री सूर्यकांतजी त्रिपाठी 'निराला'
एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटाभरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी है। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से गीले हैं कि अब तक सूख भी नहीं पाए - उड़ना तो दूर की बात है।
...
प्रेमचंदजी
प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा हुआ। तब मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी!। मेरी 'दीपक' शीर्षक एक कविता सम्भवत: 'चांद' में प्रकाशित हुई। प्रेमचंदजी ने तुरन्त ही मुझे कुछ पंक्तियों में अपना आशीर्वाद भेजा। तब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि कहानी और उपन्यास लिखने वाले कविता भी पढ़ते हैं। मेरे लिए ऐसे ख्यातनामा कथाकार का पत्र जो मेरी कविता की विशेषता व्यक्त करता था, मुझे आशीर्वाद देता था, बधाई देता था, बहुत दिनों तक मेरे कौतूहल मिश्रित गर्व का कारण बना रहा।
...
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग, प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर।
सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा धुल रे मृदुतन।
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु-अणु गल।
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
सारे शीतल कोमल नूतन,
...
Total Number Of Record :11