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नागार्जुन | Nagarjuna
नागार्जुन (30 जून, 1911 - 5 नवंबर, 1998)
जीवन परिचय
नागार्जुन का जन्म 30 जून, 1911 को मधुबनी ज़िले के सतलखा गाँव में हुआ था। नागार्जुन का वास्तविक नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था। हिंदी में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से साहित्य सृजन किया।
नागार्जुन का साहित्य सृजन
फक्कड़पन और घुमक्कड़ी प्रवृति नागार्जुन के जीवन की प्रमुख विशेषता रही है। व्यंग्य नागार्जुन के व्यक्तित्व में स्वाभवत: सम्मिलित था। चाहे सरकार हो, समाज हो या फिर मित्र - उनके व्यंग्यबाण सबको बेध डालते थे। कई बार संपूर्ण भारत का भ्रमण करने वाले इस कवि को अपनी स्पष्टवादिता और राजनीतिक कार्यकलापों के कारण कई बार जेल भी जाना पड़ा।
काँग्रेस द्वारा गांधीजी के नाम के दुरूपयोग पर नागार्जुन प्रश्न उठाते हैं -
"गांधी जी का नाम बेचकर, बतलाओ कब तक खाओगे?
यम को भी दुर्गंध लगेगी, नरक भला कैसे जाओगे?" ( नागार्जुन की कविता - झंडा)
देश की स्वतंत्रता के दशक बीत जाने पर भी जब देश की परिस्थितियां बेहतर नहीं होती तो देश की दशा पर नागार्जुन की कलम सिसक उठती है -
"अंदर संकट, बाहर संकट, संकट चारों ओर
जीभ कटी है, भारतमाता मची न पाती शोर
देखो धँसी-धँसी ये आँखें, पिचके-पिचके गाल
कौन कहेगा, आज़ादी के बीते तेरक साल?"
(नागार्जुन की कविता -बीते तेरह साल)
कवि न किसी से डरता है, न पथ से डिगता वह कहता है -
जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?जनकवि हूँ मैं स़ाफ कहूंगा, क्यों हकलाऊँ?
नेहरू को तो मरे हुए सौ साल हो गये
अब जो हैं वो शासन के जंजाल हो गये
गृह-मंत्री के सीने पर बैठा अकाल है
भारत-भूमि में प्रजातंत्र का बुरा हाल है!
(नागार्जुन की कविता -भारत-भूमि में प्रजातंत्र का बुरा हाल है)
1935 में दीपक (मासिक) तथा 1942-43 में विश्वबंधु (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। अपनी मातृभाषा मैथिली में वे यात्री नाम से रचना करते थे। मैथिली में नवीन भावबोध की रचनाओं का प्रारंभ उनके महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह, 'चित्र' से माना जाता है। नागार्जुन ने संस्कृत तथा बांग्ला में भी काव्य-रचना की है।
लोकजीवन, प्रकृति और समकालीन राजनीति उनकी रचनाओं के मुख्य विषय रहे हैं। विषय की विविधता और प्रस्तुति की सहजता नागार्जुन के रचना संसार को नया आयाम देती है। छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं जिनकी रचनाएँ ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों की बैठक तक में समान रूप से आदर पाती हैं। जटिल से जटिल विषय पर लिखी गईं उनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली होती हैं कि पाठकों के मानस लोक में तत्काल बस जाती हैं। नागार्जुन की कविता में धारदार व्यंग्य मिलता है। जनहित के लिए प्रतिबद्धता उनकी कविता की मुख्य विशेषता है।
नागार्जुन ने छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों प्रकार की कविताएँ रचीं। उनकी काव्य-भाषा में एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि है तो दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की रवानी और जीवंतता भी। पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली कविता संग्रह) पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें उत्तर प्रदेश के भारत-भारती पुरस्कार, मध्य प्रदेश के मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और बिहार सरकार के राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें दिल्ली की ̄हदी अकादमी का शिखर सम्मान भी मिला।
उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं -
युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या: ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, भस्मांकुर ।
बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, वरुण के बेटे जैसे उपन्यास भी विशेष महत्त्व के हैं।
आपकी समस्त रचनाएँ नागार्जुन रचनावली (सात खंड) में संकलित हैं।
निधन
5 नवंबर, 1998 को आपका निधन हो गया।
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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बाबा नागार्जुन का जीवन परिचय
Biography of Baba Nagarjuna in Hindi
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इनाम
हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया।
बेचारे का गला सूज आया। न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था। तकलीफ के मारे छटपटा रहा था। भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था। इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था।
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अकाल और उसके बाद
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आए घर के अन्दर कई दिनों के बाद
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भूले स्वाद बेर के
सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपनखा
वचन बिसर गए देर के सबेर के
बन गया साहूकार लंकापति विभीषण
पा गए अभयदान शावक कुबेर के
जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगण
हावी हुआ स्वर्णमरिग कंधों पर शेर के
बुढ़भस की लीला है, काम के रहे न राम
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पीपल के पत्तों पर | गीत
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े, बोतल के टुकड़ों पर---
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्ज़ी पर उछल रही चाँदनी।
आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चार
चार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
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लोगे मोल? | कविता
लोगे मोल?
लोगे मोल?
यहाँ नहीं लज्जा का योग
भीख माँगने का है रोग
पेट बेचते हैं हम लोग
लोगे मोल?
लोगे मोल?
बेचेंगे हम सेवाग्राम
सस्ता है गांधी का नाम
रघुपति राघव राजाराम
लोगे मोल?
लोगे मोल?
आज़ादी के नोचे बाल
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तीनों बंदर बापू के | कविता
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू के
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू के
ज्ञानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू के
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कालिदास! सच-सच बतलाना ! | कविता
कालिदास! सच-सच बतलाना !
इंदुमती के मृत्यु शोक से
अज रोया या तुम रोये थे ?
कालिदास! सच-सच बतलाना ?
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला से
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
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बापू महान | कविता
बापू महान, बापू महान!
ओ परम तपस्वी परम वीर
ओ सुकृति शिरोमणि, ओ सुधीर
कुर्बान हुए तुम, सुलभ हुआ
सारी दुनिया को ज्ञान
बापू महान, बापू महान!!
बापू महान, बापू महान
हे सत्य-अहिंसा के प्रतीक
हे प्रश्नों के उत्तर सटीक
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तेरे दरबार में क्या चलता है ? | कविता
तेरे दरबार में
क्या चलता है ?
मराठी-हिन्दी
गुजराती-कन्नड़ ?
ताता गोदरेजवाली
पारसी सेठों की बोली ?
उर्दू—गोआनीज़ ?
अरबी-फारसी....
यहूदियों वाली वो क्या तो
कहलाती है, सो, तू वो भी
भली भाँति समझ लेती
तेरे दरबार में क्या नहीं
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