देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

शेरजंग गर्ग

डॉ गर्ग का जन्म 29 मई, 1937 को देहरादून में हुआ। हिन्दी में व्यंग्य-ग़ज़लें और इनका शोध-प्रबंध 'स्वातंत्र्‌योत्तर हिन्दी-कविता में व्यंग्य' चर्चित रहे।

'बाज़ार से गुज़रा हूं', 'दौरा अंतर्यामी का', 'क्या हो गया कबीरों को' और 'रिश्वत-विषवत' डॉ गर्ग की प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं।

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देश

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश

देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान
देश नहीं होता है कोई सजी हुई ऊँची दूकान

देश नहीं क्लब जिसमें बैठ करते रहें सदा हम मौज
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सीधा-सादा 

सीधा-सादा सधा सधा है 
इसी जीव का नाम गधा है
इसपर कितना बोझ लदा है 
पर रहता खामोश सदा है 
ढेंचू ढेंचू कह खुश रहता 
नहीं शिकायत में कुछ कहता 
काम करो पर नहीं गधे-सा
नाम करो पर नहीं गधे-सा

-शेरजंग गर्ग 
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