देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

जयप्रकाश मानस का जन्म 2 अक्टूबर 1965 को रायगढ़, छतीसगढ़ में हुआ।

आपकी मातृभाषा ओडिया है। आप हिंदी, उड़िया व छत्तीसगढी में लिखते हैं।

कविता संग्रहः तभी होती है सुबह, होना ही चाहिए आँगन तथा अबोले के विरूद्ध

ललित निबंधः दोपहर में गाँव (पुरस्कृत)

आलोचना: साहित्य की सदाशयता

साक्षात्कार: बातचीत डॉट कॉम

बाल साहित्यः बाल-गीत-चलो चलें अब झील पर, सब बोले दिन निकला, एक बनेगें नेक बनेंगे

मिलकर दीप जलायें, जयप्रकाश मानस की बाल कविताएँ

नवसाक्षरोपयोगीः यह बहुत पुरानी बात है, छत्तीसगढ के सखा

लोक साहित्यः लोक-वीथी, छत्तीसगढ़ की लोक कथायें (10 भाग), हमारे लोकगीत

विज्ञान: इंटरनेट, अपराध और कानून

संपादन: विष्णु की पाती राम के नाम (विष्णु प्रभाकर के पत्र), हिंदी का सामर्थ्य, साहित्य की पाठशाला, छत्तीसगढीः दो करोड़ लोगों की भाषा, बगर गया वसंत (बाल कवि श्री वसंत पर एकाग्र), एक नई पूरी सुबह कवि विश्वरंजन पर एकाग्र), विंहग 20 वीं सदी की हिंदी कविता में पक्षी), महत्वः डॉ.बल्देव, महत्वः स्वराज प्रसाद त्रिवेदी, प्रमोद वर्मा समग्र(सहयोग)

छत्तीसगढ़ीः कलादास के कलाकारी (छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रथम व्यंग्य संग्रह)

पत्रिका संपादन एवं सहयोग
बाल पत्रिका ‘बालबोध' (मासिक)के 13 अकों का संपादक
लघुपत्रिका ‘प्रथम पंक्ति' (मासिक) के 2 अंको का संपादक
लघुपत्रिका ‘पहचान-यात्रा' (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
लघु पत्रिका ‘छत्तीसगढ़-परिक्रमा'(त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
अनुवाद पत्रिका ‘सद्-भावना दर्पण' (त्रैमासिक) में संपादन सहयोग
साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका पांडुलिपि का संपादन (6 अंक)

एलबम
आडियो एलबम ‘तोला बंदौं' (छत्तीसगढी)
आडियो एलबम ‘जय मां चन्द्रसैनी' (उड़िया)
वीडियो एलबम ‘घर-घर मां हावय दुर्गा'(छत्तीसगढ़ी)

आपकी रचनाएँ मुख्य हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं। कई वर्षों से 'हिंदी के अंतरराष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन' का नियमित आयोजन करते आ रहे हैं। यह सम्मेलन भारत के अतिरिक्त विश्वभर के विभिन्न देशों में आयोजित किया जा चुका है।

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स्कूल में लग जाये ताला | बाल कविता

अब से ऐसा ही हो जाये
भले किसी को पसंद न आये ...

स्कूल में लग जाये ताला
दें बस्तों को देश निकाला
होमवर्क जुर्म घोषित हो,
कोई परीक्षा ले न पाये ...

दिन भर केवल खेलें खेल
...

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कुछ झूठ बोलना सीखो कविता!

कविते!
कुछ फरेब करना सिखाओ कुछ चुप रहना
वरना तुम्हारे कदमों पर चलनेवाला कवि मार दिया जाएगा खामखां
महत्वपूर्ण यह भी नहीं कि तुम उसे जीवन देती हो

अमरत्व भी
पर मरने के बाद

कविता फिलहाल उसे
तुम जरा-सा झूठ दे दो
...

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एक अदद घर

जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
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नया साल आया

नया साल आया
स्वागत में मौसम ने
नया गीत गाया
डाल-डाल झुकी हुई
महक उठे फूल-फूल
पवन संग पत्ते भी
देखो रहे झूल झूल
ईर्ष्या को त्याग दें
सबको अनुराग दें
सुख-दुख में साथ रहें
हाथों में हाथ में दें
आओ नए साल में
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खौफ़

जाने-पहचाने पेड़ से
फल के बजाय टपक पड़ता है बम
काक-भगोड़ा राक्षस से कहीं ज्यादा खतरनाक

अपना ही साया पीछा करता दीखता
किसी पागल हत्यारे की तरह
नर्म सपनों को रौंद-रौंद जाती हैं कुशंकाएँ
वालहैंगिंग की बिल्ली तब्दील होने लगती है बाघ में

इसके बावजूद
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अंततः

बाहर से लहूलुहान
आया घर
मार डाला गया
अंततः

-जयप्रकाश मानस
[ अबोले के विरुद्ध, शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली ]

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जयप्रकाश मानस की दो बाल-कविताएं

एक बनेंगे

हम हैं बच्चे
मन के सच्चे
आगे कदम बढ़ाएंगे,
भूले भटके
राह में अटके
सबको राह दिखाएंगे
नहीं लड़ेंगे
एक बनेंगे
मिलकर 'जन गण' गाएंगे
नहीं डरेंगे
टूट पड़ेंगे
न संकट से घबराएंगे।

-जयप्रकाश मानस


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पंछी का मन दुखता | बाल-कविता

कुआं है गांव में
कुएं में घटता पानी।
सोचकर मछली को
है बड़ी हैरानी।

घास है जंगल में
घास भी मुरझाई।
सोचकर गायों की
आँखें भर आईं।

पेड़ है पर्वत में
पेड़ भी लो सूखता।
सोचकर पंछी का
मन बहुत दुखता।

-- जयप्रकाश मानस

[जयप्रकाश मानस की बाल कविताएं, यश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली]

 

 


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जंगल में पढ़ाई | बाल-कविता

एक दिन सभी पंछी ने सोचा
हम भी करें पढ़ाई।
सुख-दुःख की कथा बांच लें
बूझें शब्द अढ़ाई।

मोर पपीहा सुग्गा मैना
तीतर बटेर भी आए।
बरगद पर लग गई शाला
"अ" से अनार गाए।

सबसे बुद्धिमान समझ
कौआ को चुना गुरुजी।
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उपस्थिति

व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं 
कोशकारों के चेले बनकर भी नहीं 
इतिहास से भीख माँगकर तो कतई नहीं

नए शब्दों के लिए 
नापनी होंगी दिशाएँ 
फाँकने पड़ेंगे धूल 
सहने पड़ेंगे शूल

अभी
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