देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin

पंडित बालकृष्ण शर्मा "नवीन" का जन्म 8 दिसम्बर, 1897 को में ग्वालियर राज्य के भयाना नामक ग्राम में हुआ था।

आपके पिता श्री जमनालाल शर्मा वैष्णव धर्म के प्रसिद्द तीर्थ श्रीनाथ द्वारा में रहते थे। वहाँ शिक्षा की समुचित व्यवस्था न होने के कारण आपकी माँ आपको ग्वालियर राज्य के शाजापुर ले आईं। आपकी प्रारंभिक शिक्षा यहीं हुई और इसके उपरांत आपने उज्जैन से दसवीं और कानपुर से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की।

1916 मे आप लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन देखने के लिए गए। इसी अधिवेशन में संयोगवश आपकी भेंट माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त एवं गणेशशंकर विद्यार्थी से हुई। 1917 ई. में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करके बालकृष्ण शर्मा गणेशशंकर विद्यार्थी के आश्रम में कानपुर आकर क्राइस्ट चर्च कॉलेज में पढ़ने लगे।

आप लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, श्रीमती एनी बेसेंट व श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में रहे।

बालकृष्ण शर्मा जब बी.ए. अंतिम वर्ष में थे तो गांधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन के आवाहन पर कॉलेज छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में आ गए।

1952 से भारतीय संसद के सदस्य रहे हैं। 1955 में स्थापित राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण कार्य रहा है।
भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य के रूप में हिन्दी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार कराने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

जहाँ तक उनके लेखक-कवि व्यक्तित्व का प्रश्न है, लेखन की ओर उनकी रुचि इंदौर से ही थी, परन्तु व्यवस्थित लेखन 1917 ई. में गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पर्क में आने के बाद प्रारम्भ हुआ। गणेशशंकर विद्यार्थी से सम्पर्क का सहज परिणाम था कि वे उस समय के महत्त्वपूर्ण पत्र 'प्रताप' से जुड़े। 'प्रताप' परिवार से उनका सम्बन्ध अन्त तक बना रहा। गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु के पश्चात् कई वर्षों तक आप 'प्रताप' के प्रधान सम्पादक के रूप में भी कार्य करते रहे।

1921-1923 तक हिन्दी की राष्ट्रीय काव्य धारा को आगे बढ़ाने वाली पत्रिका 'प्रभा' का सम्पादन भी किया। इस समय में आपकी सम्पादकीय टिप्पणियाँ अपनी निर्भीकता, खरेपन और कठोर शैली के लिए हानी जाती हैं। 'नवीन' अत्यन्त प्रभावशाली और ओजस्वी वक्ता भी थे एवं उनकी लेखन शैली पर उनकी अपनी भाषण-कला का बहुत स्पष्ट प्रभाव है। राजनीतिक कार्यकर्ता के समान ही पत्रकार के रूप में भी आपने सम्पूर्ण जीवन कार्य किया।

कृतियाँ: उर्मिला, कुंकुम,रश्मिरेखा, 'अपलक' और 'क्वासि' आपकी प्रमुख कृतियां हैं।

निधन : 29 अप्रैल, 1960 बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का निधन हो गया।

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जूठे पत्ते

क्या देखा है तुमने नर को, नर के आगे हाथ पसारे?
क्या देखे हैं तुमने उसकी, आँखों में खारे फ़व्वारे?
देखे हैं? फिर भी कहते हो कि तुम नहीं हो विप्लवकारी?
तब तो तुम पत्थर हो, या महाभयंकर अत्याचारी।

अरे चाटते जूठे पत्ते, जिस दिन मैंने देखा नर को
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विप्लव-गान | बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,
बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जाये,
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