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उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans
उदयभानु हंस हरियाणा के राज्य-कवि हैं और हिंदी में 'रुबाई' के प्रवर्तक कवि हैं जो 'रुबाई सम्राट' के रूप में लोकप्रिय हैं। 1926 में पैदा हुए उदयभानु हंस की 'हिंदी रुबाइयां' 1952 में प्रकाशित हुई थीं जो नि:संदेह हिंदी में एक 'नया' और निराला प्रयोग था। आपने हिंदी साहित्य को अपने गीतों, दोहों, कविताओं व ग़ज़लों से समृद्ध किया है।
प्रसिद्ध गीतकार 'नीरज' तो हंस को मूल रूप से गीतकार मानते हैं, वे कहते हैं, "नि:संदेह हंस की रुबाइयाँ हिंदी साहित्य में बेजोड़ कही जा सकती हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति का प्रमुख क्षेत्र गीत ही है।"
सुप्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन 'हंस' जी को को हिंदी कविता की एक विशेष प्रवृति का पोषक मानते थे।
यह 'हंस' जी की क़लम ही है, जो माटी के दर्द को भी वाणी दे सकती है:
"कौन अब सुनाएगा, दर्द हमको माटी का,
‘प्रेमचंद' गूंगा है, लापता ‘निराला' है।"
शिक्षण:
आपने मीडिल तक उर्दू-फारसी पढ़ी और घर में अपके पिताजी हिंदी और संस्कृत पढ़ाते थे। आपके पिताजी हिंदी और संस्कृत के विद्वान थे और कवि भी थे। बाद में आपने प्रभाकर और शास्त्री की, फिर हिंदी में एम. ए। आपने सनातन धर्म संस्कृत कॉलेज, मुलतान और रामजस कॉलेज, दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की।
प्रकाशन: ''उदयभानु हंस रचनावली'' दो खण्ड ( कविता), दो खण्ड ( गद्य)
साहित्यिक उपलब्धियाँ :
संस्कृत-लेखन के लिए साप्ताहिक 'संस्कृतम्' अयोध्या से 'कवि भूषणम्' तथा 'साहित्यालंकार' की दो उपलब्धियों ( 1943 - 44 )
हरियाणा सरकार द्वारा सर्वप्रथम 'राज्यकवि' का सम्मान ( 1967)
गुरु गोबिन्द सिंह पर आधारित महाकाव्य 'सन्त सिपाही' पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा 'निराला पुरस्कार' ( 1968)
हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जीवन परिचय सहित रचनाएं निर्धारित।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा दिल्ली में 'गीत गंगा' सम्मान ( 1992)
हिमाचल प्रदेश की प्रमुख संस्था 'हिमोत्कर्ष' द्वारा अखिल भारतीय 'श्रेष्ठ साहित्यकार' का सम्मान ( 1994)
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयोग द्वारा इलाहाबाद में 'विद्यावाचस्पति' की मानद उपाधि (1994)
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा महर्षि विश्वविद्यालय, रोहतक द्वारा कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर दो शोध-छात्रों को पी-एचडी की उपाधियां ( 2001)
राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी के लिए छह शोधप्रबंध स्वीकृत, जिनमें महाकाव्य 'संत सिपाही' एक आधार ग्रन्थ।
1981 और 1993 में दो बार इंग्लैड एवं अमेरिका की यात्रा। प्रथम यूरोप हिन्दी महासम्मेलन में कवि रूप में आमंत्रित ।
'दूरदर्शन ' के दिल्ली एवं जालंधर केन्द्रों द्वारा 30-30 मिनट के दो 'वृत्तचित्रों' का निर्माण एवं प्रसारण ।
हिंदी में 'रुबाई' के प्रवर्तक कवि ( 1948) 'रुबाई सम्राट' नाम से लोकप्रिय।
Author's Collection
Total Number Of Record :7हिन्दी रुबाइयां
मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते,
दुर्दिन में कभी चाँद सितारे नहीं होते।
हम पार भी जायें तो भला जायें किधर से,
इस प्रेम की सरिता के किनारे नहीं होते॥
2)
तुम घृणा, अविश्वास से मर जाओगे,
विष पीने के अभ्यास से मर जाओगे।
...
सृजन पर दो हिन्दी रुबाइयां
अनुभूति से जो प्राणवान होती है,
उतनी ही वो रचना महान होती है।
कवि के ह्रदय का दर्द, नयन के आँसू,
पीकर ही तो रचना जवान होती है॥
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सुगंध जिसमें न हो वो सुमन नहीं होता,
सुरा का घूंट कभी आचमन नहीं होता।
...
दीवाली : हिंदी रुबाइयां
सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा,
घनघोर अमावस में सवेरा देखा।
जब डाली अकस्मात नज़र नीचे को,
हर दीप तले मैंने अँधेरा देखा।।
तुम दीप का त्यौहार मनाया करते,
तुम हर्ष से फूले न समाया करते।
क्या उन्हें भी देखा है इसी अवसर पर,
...
संकल्प-गीत
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं।
कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं
क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
फूल बनकर कंटकों में, मुस्कराते ही रहेंगे,
दुख उठाए हैं, उठाएंगे, उठाते ही रहेंगे।
पर्वतों को चीर कर गंगा बहाना चाहते हैं,
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संकल्प-गीत
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं।
कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं
क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
फूल बनकर कंटकों में, मुस्कराते ही रहेंगे,
दुख उठाए हैं, उठाएंगे, उठाते ही रहेंगे।
पर्वतों को चीर कर गंगा बहाना चाहते हैं,
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उदयभानु ‘हंस' के हाइकु
युवक जागो!
अपना देश छोड़
यूँ मत भागो!
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नारी-जीवन --
कभी मिले सिन्दूर
कभी तन्दूर।
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सब हैरान
क्रिकेट का खेल है
सोने की खान!
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गुप्त व्यापार
प्रकट हो जाए तो
है भ्रष्टाचार।
#
तुम स्वतन्त्र
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