देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

अमरकांत | Amarkant

अमरकांत का जन्म 1 जुलाई 1925, बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ।

आपने हिंदी साहित्य में  कहानी, उपन्यास, संस्मरण व बाल साहित्य विधाओं में लेखन किया।

मुख्य कृतियाँ:

उपन्यास :
सूखा पत्ता, आकाश पक्षी, सुखजीवी, बीच की दीवार, ग्रामसेविका, सुन्नर पांडे की पतोहू, कंटीली राह के फूल, इन्हीं हथियारों से, लहरें, बिदा की रात

बाल उपन्यास : वानर सेना, नेउर भाई, मँगरी, सच्चा दोस्त, बाबू का फैसला, खूंटों में दाल है

कहानी संग्रह : जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, कुहासा, तूफान, कला प्रेमी, एक धनी व्यक्ति का बयान, दुख और दुख का साथ, जाँच और बच्चे, औरत का क्रोध

संस्मरण : कुछ यादें कुछ बातें, दोस्ती

अन्य : सुग्गी चाची का गाँव, एक स्त्री का सफर, झगडूलाल का फैसला

सम्मान:  सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त  शिखर पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार, साहित्य अकादमी सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार, संस्थान पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा), महात्मा गांधी सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा)

17 फरवरी 2014, इलाहाबाद में आपका निधन हो गया।

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दोपहर का भोजन | Dophar Ka Bhojan

सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रख कर शायद पैर की उँगलियाँ या जमीन पर चलते चीटें-चीटियों को देखने लगी।

अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास नहीं लगी हैं। वह मतवाले की तरह उठी ओर गगरे से लोटा-भर पानी ले कर गट-गट चढ़ा गई। खाली पानी उसके कलेजे में लग गया और वह हाय राम कह कर वहीं जमीन पर लेट गई।

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डिप्टी कलक्टरी

शकलदीप बाबू कहीं एक घंटे बाद वापस लौटे। घर में प्रवेश करने के पूर्व उन्होंने ओसारे के कमरे में झाँका, कोई भी मुवक्किल नहीं था और मुहर्रिर साहब भी गायब थे। वह भीतर चले गए और अपने कमरे के सामने ओसारे में खड़े होकर बंदर की भाँति आँखे मलका-मलकाकर उन्होंने रसोईघर की ओर देखा। उनकी पत्नी जमुना, चौके के पास पीढ़े पर बैठी होंठ-पर-होंठ दबाए मुँह फुलाए तरकारी काट रही थी। वह मंद-मंद मुस्कराते हुए अपनी पत्नी के पास चले गए। उनके मुख पर असाधारण संतोष, विश्वास एवं उत्साह का भाव अंकित था। एक घंटे पूर्व ऐसी बात नही थी।

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