मैं बना उन्माद री सखि, तू तरल अवसाद प्रेम - पारावार पीड़ा, तू सुनहली याद तैल तू तो दीप मै हूँ, सजग मेरे प्राण। रजनि में जीवन-चिता औ' प्रात मे निर्वाण शुष्क तिनका तू बनी तो पास ही मैं धूल आम्र में यदि कोकिला तो पास ही मैं हूल फल-सा यदि मैं बनूं तो शूल-सी तू पास विँधुर जीवन के शयन को तू मधुर आवास सजल मेरे प्राण है री, सजग मेरे प्राण तू बनी प्राण! मै तो आलि चिर-म्रियमाण।