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Literature Under This Category | ||
अब तो हरि नाम लौ लागी | पद - मीराबाई | Meerabai | ||
अब तो हरि नाम लौ लागी |
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मैंने लिखा कुछ भी नहीं | ग़ज़ल - डॉ सुधेश | ||
मैंने लिखा कुछ भी नहीं |
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साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu' | ||
साजन! होली आई है! |
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बापू - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
संसार पूजता जिन्हें तिलक, |
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संत दादू दयाल के पद - संत दादू दयाल | Sant Dadu Dayal | ||
पूजे पाहन पानी |
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अर्जुन की प्रतिज्ञा - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा, |
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गुणगान - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
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कलम, आज उनकी जय बोल | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
जला अस्थियाँ बारी-बारी |
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वीर | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं |
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जो तुम आ जाते एक बार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
कितनी करूणा कितने संदेश |
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अधिकार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
वे मुस्काते फूल, नहीं |
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मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
मैं नीर भरी दुःख की बदली, |
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अन्वेषण - रामनरेश त्रिपाठी | ||
मैं ढूंढता तुझे था, जब कुंज और वन में। |
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जलियाँवाला बाग में बसंत - सुभद्रा कुमारी | ||
यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, |
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आखिर पाया तो क्या पाया? - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai | ||
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा |
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कबीर दोहे -2 - कबीरदास | Kabirdas | ||
(21) |
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रहीम के दोहे - रहीम | ||
(1) |
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रहीम के दोहे - 2 - रहीम | ||
(21) |
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प्रभु ईसा - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ |
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हम पंछी उन्मुक्त गगन के - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
हम पंछी उन्मुक्त गगन के |
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मधुशाला | Madhushala - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
मृदु भावों के अंगूरों की |
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देशभक्ति | Poem on New Zealand - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
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काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार |
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वंदन कर भारत माता का | काका हाथरसी की हास्य कविता - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । |
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हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, |
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श्रमिक का गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
रहा हाड़ ना मास मेरा |
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धर्म निभा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कवि कलम का धर्म निभा |
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खिलौनेवाला - सुभद्रा कुमारी | ||
वह देखो माँ आज |
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मेरा शीश नवा दो - गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
मेरा शीश नवा दो अपनी |
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है |
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फिर तेरी याद - त्रिलोचन | ||
फिर तेरी याद जो कहीं आई |
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आज के हाइकु - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
भूख-गरीबी |
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बढ़े चलो! बढ़े चलो! - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
न हाथ एक शस्त्र हो |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
"माँ कह एक कहानी।" |
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देश - शेरजंग गर्ग | ||
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश |
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वीरांगना - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal | ||
मैंने उसको |
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स्वतंत्रता का नमूना - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर |
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विडम्बना - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया | ||
मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से |
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हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur | ||
एक डोर में सबको जो है बाँधती |
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पन्द्रह अगस्त - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur | ||
आज जीत की रात |
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हम होंगे कामयाब - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur | ||
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब |
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हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी। |
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वसीम बरेलवी की ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा |
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राजगोपाल सिंह | दोहे - राजगोपाल सिंह | ||
बाबुल अब ना होएगी, बहन भाई में जंग |
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मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत - राजगोपाल सिंह | ||
मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूर |
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हाइकु - रोहित कुमार हैप्पी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
दोस्त है कृष्ण |
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शास्त्रीजी - कमलाप्रसाद चौरसिया | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
पैदा हुआ उसी दिन, |
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मेरी कविता - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा |
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ताजमहल - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
उमड़ा करती है शक्ति, वहीं दिल में है भीषण दाह जहाँ |
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भूल कर भी न बुरा करना | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
भूल कर भी न बुरा करना |
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एक आँख वाला इतिहास - दूधनाथ सिंह | ||
मैंने कठैती हड्डियों वाला एक हाथ देखा-- |
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जयप्रकाश - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
झंझा सोई, तूफान रूका, |
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आपकी हँसी - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay | ||
निर्धन जनता का शोषण है |
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मुक्तिबोध की हस्तलिपि में कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh | ||
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दोहे और सोरठे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
है इत लाल कपोल ब्रत कठिन प्रेम की चाल। |
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राष्ट्रगीत में भला कौन वह - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay | ||
राष्ट्रगीत में भला कौन वह |
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तोड़ो - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay | ||
तोड़ो तोड़ो तोड़ो |
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झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं |
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दोहावली - तुलसीदास | Tulsidas | ||
तुलसीदास कृत 'दोहावली' मुक्तक रचना है। इसमें 573 छंद हैं जिनमें 23 सोरठे व शेष दोहे संगृहित हैं। |
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दोहावली - 1 - तुलसीदास | Tulsidas | ||
श्रीसीतारामाभ्यां नम: |
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तमाम घर को .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं, वो तितलियों को सिखाता था व्याकरण यारों- न जाने कौन चला आए वक़्त का मारा, हमेशा बात वो करता था घर बनाने की मेरे फिसलने का कारण भी है यही शायद, -ज्ञानप्रकाश विवेक |
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गीत फ़रोश - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, |
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हो गई है पीर पर्वत-सी | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए |
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राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें - राजगोपाल सिंह | ||
राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें भी उनके गीतों व दोहों की तरह सराही गई हैं। यहाँ उनकी कुछ ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं। |
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इन चिराग़ों के | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
इन चिराग़ों के उजालों पे न जाना, पीपल |
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महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविताएं - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi | ||
महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविताएं |
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कभी कभी खुद से बात करो | कवि प्रदीप की कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो । |
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सुख-दुख | कविता - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant | ||
मैं नहीं चाहता चिर-सुख, |
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आराम करो | हास्य कविता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? |
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भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
यहाँ मैथिलीशरण गुप्त की भारत-भारती को संकलित करने का प्रयास आरंभ किया है। विश्वास है पाठकों को रोचक लगेगा। |
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ठाकुर का कुआँ | कविता - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki | ||
चूल्हा मिट्टी का |
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निकटता | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
त्रास देता है जो |
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यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है - त्रिलोचन | ||
यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है |
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प्यारा वतन - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi | ||
( १) |
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मंगलाचरण | उपक्रमणिका | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
मंगलाचरण |
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मैं दिल्ली हूँ - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
'मैं दिल्ली हूँ' रामावतार त्यागी की काव्य रचना है जिसमें दिल्ली की काव्यात्मक कहानी है। |
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मैं दिल्ली हूँ | एक - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
मैं दिल्ली हूँ मैंने कितनी, रंगीन बहारें देखी हैं । |
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स्वप्न बंधन - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant | ||
बाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में |
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बाँध दिए क्यों प्राण - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant | ||
सुमित्रानंदन पंत की हस्तलिपि में उनकी कविता, 'बाँध दिए क्यों प्राण' |
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दिविक रमेश की चार कविताएँ - दिविक रमेश | ||
सुनहरी पृथ्वीसूरजरातभर मांजता रहता है काली पृथ्वी को |
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राखी | कविता - सुभद्रा कुमारी | ||
भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं |
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राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान - सुभद्रा कुमारी | ||
बहिन आज फूली समाती न मन में । |
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खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
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आशा का दीपक - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है; |
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भाई दूज - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
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प्रभु या दास? - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
बुलाता है किसे हरे हरे, |
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मैं तो वही खिलौना लूँगा - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
'मैं तो वही खिलौना लूँगा'
मचल गया दीना का लाल -
'खेल रहा था जिसको लेकर
राजकुमार उछाल-उछाल ।'
व्यथित हो उठी माँ बेचारी -
'था सुवर्ण - निर्मित वह तो !
खेल इसी से लाल, - नहीं है
राजा के घर भी यह तो ! '
राजा के घर ! नहीं नहीं माँ
तू मुझको बहकाती है ,
इस मिट्टी से खेलेगा क्यों
राजपुत्र तू ही कह तो । '
फेंक दिया मिट्टी में उसने
मिट्टी का गुड्डा तत्काल ,
'मैं तो वही खिलौना लूँगा' -
मचल गया दीना का लाल ।
' मैं तो वही खिलौना लूँगा '
मचल गया शिशु राजकुमार , -
वह बालक पुचकार रहा था
पथ में जिसको बारबार |
' वह तो मिट्टी का ही होगा ,
खेलो तुम तो सोने से । '
दौड़ पड़े सब दास - दासियाँ
राजपुत्र के रोने से ।
' मिट्टी का हो या सोने का ,
इनमें वैसा एक नहीं ,
खेल रहा था उछल - उछल कर
वह तो उसी खिलौने से । '
राजहठी ने फेंक दिए सब
अपने रजत - हेम - उपहार ,
' लूँगा वही , वही लूँगा मैं ! '
मचल गया वह राजकुमार ।
- सियारामशरण गुप्त
[ साभार - जीवन सुधा ] |
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मैं आपसे कहने को ही था | ग़ज़ल - शमशेर बहादुर सिंह | ||
मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया खयाल एकायक |
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याचना | कविता - कन्हैयालाल नंदन (Kanhaiya Lal Nandan ) | ||
मैंने पहाड़ से माँगा : |
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कृष्ण की चेतावनी - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
वर्षों तक वन में घूम-घूम, |
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कर्त्तव्यनिष्ठ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
एक ने फेसबुक पर लिखा - |
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कबीर वाणी - नरेंद्र शर्मा | ||
हिन्दुअन की हिन्दुआई देखी |
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एक भी आँसू न कर बेकार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
एक भी आँसू न कर बेकार - |
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परशुराम की प्रतीक्षा - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
दो शब्द (प्रथम संस्करण) |
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परशुराम की प्रतीक्षा | खण्ड 1 - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ? |
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, |
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मैं और कुछ नहीं कर सकता था - विष्णु नागर | ||
मैं क्या कर सकता था |
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वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
'वन्देमातरम्' बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। इसका स्थान हमारे राष्ट्र गान, 'जन गण मन...' के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के सत्र में गाया गया था। |
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मातृ-मन्दिर - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
भारतमाता का यह मन्दिर, समता का संवाद यहाँ, |
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वन्देमातरम् | राष्ट्रीय गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! |
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फ़र्क़ - आलोक धन्वा | ||
देखना |
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माँ गाँव में है - दिविक रमेश | ||
चाहता था |
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सोचेगी कभी भाषा - दिविक रमेश | ||
जिसे रौंदा है जब चाहा तब |
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माँ - दिविक रमेश | ||
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे |
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राधा प्रेम - सपना मांगलिक | ||
मोर मुकट पीताम्बर पहने,जबसे घनश्याम दिखा |
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नाग की बाँबी खुली है आइए साहब - ऋषभदेव शर्मा | ||
नाग की बाँबी खुली है आइए साहब |
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धुंध है घर में उजाला लाइए - ऋषभदेव शर्मा | ||
धुंध है घर में उजाला लाइए |
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हैं चुनाव नजदीक सुनो भइ साधो - ऋषभदेव शर्मा | ||
हैं चुनाव नजदीक, सुनो भइ साधो |
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गरमागरम थपेड़े लू के - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है, |
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छोटी कविताएं - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
इस पृष्ठ पर रोहित कुमार हैप्पी की छोटी कविताएं संकलित की गयी हैं। |
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कवि - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
तुम्हारी कलम में |
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कुंती की याचना - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
मित्रता का बोझ |
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अदम गोंडवी की ग़ज़लें - अदम गोंडवी | ||
अदम गोंडवी को हिंदी ग़ज़ल में दुष्यन्त कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला शायर माना जाता है। राजनीति, लोकतंत्र और व्यवस्था पर करारा प्रहार करती अदम गोंडवी की ग़ज़लें जनमानस की आवाज हैं। यहाँ उन्हीं की कुछ गज़लों का संकलन किया जा रहा है। |
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आँख पर पट्टी रहे | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे |
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यह कवि अपराजेय निराला | कविता - रामविलास शर्मा | ||
यह कवि अपराजेय निराला, |
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कबीर | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
एक दिन आप |
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गुरुदेव | कबीर की साखियां - कबीरदास | Kabirdas | ||
सतगुरु सवाँ न को सगा, सोधी सईं न दाति । |
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मिट्टी की महिमा - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
निर्मम कुम्हार की थापी से |
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सत्य की महिमा - कबीर की वाणी - कबीरदास | Kabirdas | ||
साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप। |
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उदयभानु हंस की ग़ज़लें - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
उदयभानु हंस का ग़ज़ल संकलन |
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हमने अपने हाथों में - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है, |
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कलयुग में गर होते राम - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
अच्छे युग में हुए थे राम |
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जीवन की आपाधापी में - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला |
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कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती |
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दिन अच्छे आने वाले हैं - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे, |
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हरिवंशराय बच्चन की नये वर्ष पर कविताएं - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
यहाँ हरिवंशराय बच्चन की नये वर्ष पर लिखी गई कुछ कविताएं संकलित की हैं। विश्वास है पाठकों को अच्छी लगेंगी। |
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साथी, नया वर्ष आया है! - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
साथी, नया वर्ष आया है! |
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नववर्ष - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष |
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कुंअर बेचैन ग़ज़ल संग्रह - कुँअर बेचैन | ||
कुंअर बेचैन ग़ज़ल संग्रह - यहाँ डॉ० कुँअर बेचैन की बेहतरीन ग़ज़लियात संकलित की गई हैं। विश्वास है आपको यह ग़ज़ल-संग्रह पठनीय लगेगा। |
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अपना जीवन.... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
अपना जीवन निहाल कर लेते |
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, |
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निराला की ग़ज़लें - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
निराला का ग़ज़ल संग्रह - इन पृष्ठों में निराला की ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं। निराला ने विभिन्न विधाओं में साहित्य-सृजन किया है। यहाँ उनके ग़ज़ल सृजन को पाठकों के समक्ष लाते हुए हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है। |
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प्रेम के कई चेहरे - सुषम बेदी | ||
वाटिका की तापसी सीता का |
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नये बरस में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
नये बरस में कोई बात नयी चल कर लें |
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मातृ-मन्दिर में - सुभद्रा कुमारी | ||
वीणा बज-सी उठी, खुल गये नेत्र |
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पथ से भटक गया था राम | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
पथ से भटक गया था राम |
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मंजुल भटनागर की कविताएं - मंजुल भटनागर | ||
इस पृष्ठ पर मंजुल भटनागर की कविताएं संकलित की जा रही हैं। नि:संदेह रचनाएं पठनीय हैं, विश्वास है आप इनका रस्वादन करेंगे। |
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ओ उन्मुक्त गगन के पाखी - मंजुल भटनागर | ||
ओ उन्मुक्त गगन के पाखी |
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कब लोगे अवतार हमारी धरती पर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
फैला है अंधकार हमारी धरती पर |
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प्राण रहते - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
प्राण रहते |
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स्वामी विवेकानंद की कविताएं - स्वामी विवेकानंद | ||
यहाँ स्वामी विवेकानंद की कविताएं संकलित की गई हैं। |
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काली माता - स्वामी विवेकानंद | ||
छिप गये तारे गगन के, |
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खड़ा हिमालय बता रहा है - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
खड़ा हिमालय बता रहा है |
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भारतीय | फीज़ी पर कविता - जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी | ||
लम्बे सफर में हम भारतीयों को |
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कभी गिरमिट की आई गुलामी - जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी | ||
उस समय फीज़ी में तख्तापलट का समय था। फीज़ी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जोगिन्द्र सिंह कंवल फीज़ी की राजनैतिक दशा और फीज़ी के भविष्य को लेकर चिंतित थे, तभी तो उनकी कलम बोल उठी: |
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सात सागर पार - जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी | ||
सात सागर पार करके भी ठिकाना न मिला |
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गिरमिट के समय - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
दीन दुखी मज़दूरों को लेकर था जिस वक्त जहाज सिधारा |
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मुक्ता - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
ज़ंजीरों से चले बाँधने |
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ग्रामवासिनी - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड | ||
भारत माता ग्रामवासिनी, |
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चाहता हूँ देश की.... - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
मन समर्पित, तन समर्पित |
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पुरखों की पुण्य धरोहर - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
जो फूल चमन पर संकट देख रहा सोता |
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नहीं मांगता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से, |
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तुलसी बाबा - त्रिलोचन | ||
तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी प्रखर काल की धारा पर तुम जमे हुए हो । |
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आज तुम्हारा जन्मदिवस - नामवर सिंह | Namvar Singh | ||
आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्या |
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हम स्वेदश के प्राण - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा, |
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सुभाषचन्द्र - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया |
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हौसला - देवेन्द्र कुमार मिश्रा | ||
कागज की नाव बही |
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भगत सिंह को पसंद थी ये ग़ज़ल - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
उन्हें ये फिक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है |
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भगतसिंह पर लिखी कविताएं - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
इन पृष्ठों में भगतसिंह पर लिखी काव्य रचनाओं को संकलित करने का प्रयास किया जा रहा है। विश्वास है आपको सामग्री पठनीय लगेगी। |
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रंग दे बसंती चोला गीत का इतिहास - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'रंग दे बसंती चोला' अत्यंत लोकप्रिय देश-भक्ति गीत है। यह गीत किसने रचा? इसके बारे में बहुत से लोगों की जिज्ञासा है और वे समय-समय पर यह प्रश्न पूछते रहते हैं। |
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ज्ञान का पाठ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
डॉ० कलाम को समर्पित.... |
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वृन्द के नीति-दोहे - वृन्द | ||
स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं । |
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आनन्द विश्वास के हाइकु - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
1. |
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हिन्दी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते, |
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कलगी बाजरे की - अज्ञेय | Ajneya | ||
हरी बिछली घास। |
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अकाल और उसके बाद - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास |
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चंपा काले-काले अक्षर नहीं चीन्हती - त्रिलोचन | ||
चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती |
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हमारी हिंदी - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay | ||
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है |
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पहचान - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
अपनी गली |
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कुछ झूठ बोलना सीखो कविता! - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
कविते! |
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एक अदद घर - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
जब |
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जूठे पत्ते - बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin | ||
क्या देखा है तुमने नर को, नर के आगे हाथ पसारे? |
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जनतंत्र का जन्म - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, |
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हिन्दी भाषा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
छ्प्पै |
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कुण्डली - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
बोलो इस संसार में, किसको किससे प्रेम। |
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निदा फ़ाज़ली के दोहे - निदा फ़ाज़ली | ||
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान । |
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माँ | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ |
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अपना ग़म लेके | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये |
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घर से निकले .... - निदा फ़ाज़ली | ||
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे |
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परदे हटा के देखो - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो, |
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रामनरेश त्रिपाठी के नीति के दोहे - रामनरेश त्रिपाठी | ||
विद्या, साहस, धैर्य, बल, पटुता और चरित्र। |
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डिजिटल इंडिया | हास्य-व्यंग - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
वर्मा जी ने फेसबुक पर स्टेटस लिखा - |
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सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा |
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इच्छाएं - शिवनारायण जौहरी विमल | ||
दुबले पतंगी कागज़ का |
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मंदिर-दीप - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
मैं मंदिर का दीप तुम्हारा। |
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मेरे देश की आँखें - अज्ञेय | Ajneya | ||
नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं |
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तुलसीदास | सोहनलाल द्विवेदी की कविता - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
अकबर का है कहाँ आज मरकत सिंहासन? |
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प्यार ! - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | ||
प्यार! कौन सी वस्तु प्यार है? मुझे बता दो। |
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जेल में क्या-क्या है - पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' | ||
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र' 1926-27 में जेल में बंद थे लेकिन जेल में होने पर भी उनके प्राण किसी प्रकार अप्रसन्न नहीं थे। देखिए, जेल में पड़े-पड़े उनको क्या सूझी कि जेल में क्या-क्या है, पर कविता रच डाली - |
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रावण या राम - जैनन प्रसाद | फीजी | ||
रामायण के पन्नों में |
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भूले स्वाद बेर के - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपनखा |
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मुक़ाबला - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
दमदार ने |
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खेल का खेल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हार और जीत |
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पेट-महिमा - बालमुकुन्द गुप्त | ||
साधो पेट बड़ा हम जाना। |
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एकता का बल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
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कभी कभी यूं भी हमने - निदा फ़ाज़ली | ||
कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है |
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उपदेश : कबीर के दोहे - कबीरदास | Kabirdas | ||
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। |
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चल मन | रैदास के पद - रैदास | Ravidas | ||
चल मन! हरि चटसाल पढ़ाऊँ।। |
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कविता क्या है - केदारनाथ सिंह | ||
कविता क्या है |
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तुम्हारे जिस्म जब-जब | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
तुम्हारे जिस्म जब-जब धूप में काले पड़े होंगे |
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जय बोलो बेईमान की | हास्य-कविता - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार |
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हज़ल | हास्य ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
जा तू भी हँसता-बसता रह, अपनी कारगुज़ारी में |
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शहीद पूछते हैं - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
भोग रहे जो आज आज़ादी |
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जो बीत गई सो बात गई - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
जीवन में एक सितारा था |
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सहजो बाई के गुरु पर दोहे - सहजो बाई | ||
'सहजो' कारज जगत के, गुरु बिन पूरे नाहिं । |
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भागी हुई लड़कियां - आलोक धन्वा | ||
(एक) |
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मेरी भाषा - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
मेरी भाषा में तोते भी राम-राम जब कहते हैं, |
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घाटी के दिल की धड़कन - हरिओम पंवार | ||
काश्मीर जो खुद सूरज के बेटे की रजधानी था |
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ये गजरे तारों वाले - डॉ रामकुमार वर्मा | ||
इस सोते संसार बीच, |
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युगावतार गांधी - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
चल पड़े जिधर दो डग, मग में |
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सुनाएँ ग़म की किसे कहानी - अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ | ||
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तुलसीदास के लोकप्रिय दोहे - तुलसीदास | Tulsidas | ||
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान। |
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प्रेम पर दोहे - कबीरदास | Kabirdas | ||
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। |
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया | ||
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे |
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देश की मिट्टी | कविता - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
बेटी ने |
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अवसर नहीं मिला - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
जो कुछ लिखना चाहा था |
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चलो चलें उस पार - अमरजीत कौर कंवल | फीजी | ||
चलों चलें उस पार |
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कुछ अनुभूतियाँ - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
दूर दूर तक फैला मिला आकाश |
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गुरुदक्षिणा - जैनन प्रसाद | फीजी | ||
सायक बिकते हैं |
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पहाड़े - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आपके और मेरे |
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धूमिल की अंतिम कविता - सुदामा पांडेय धूमिल | ||
"शब्द किस तरह |
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सहेजे हैं शब्द - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
शौकिया जैसे सहेजते हैं लोग |
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डॉ रामनिवास मानव की क्षणिकाएँ - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
सीमा पार से निरन्तर |
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जीवन का अधिकार - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant | ||
जो है समर्थ, जो शक्तिमान, |
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गाँव की धरती - नरेंद्र शर्मा | ||
चमकीले पीले रंगों में अब डूब रही होगी धरती, |
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जो समर में हो गए अमर - नरेंद्र शर्मा | ||
जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में |
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सूनापन रातों का | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है |
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यूँ तो मिलना-जुलना - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता है |
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शस्य श्यामलां - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
एक पत्थर फेंका गया मेरे घर में |
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इक अनजाने देश में - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया | ||
इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ, |
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एक फूल की चाह - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
उद्वेलित कर अश्रु-राशियाँ, |
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किसने बाँसुरी बजाई - जानकी वल्लभ शास्त्री | ||
जनम-जनम की पहचानी वह तान कहाँ से आई ! |
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आशापञ्चक - बाबू गुलाबराय | Babu Gulabrai | ||
आशा वेलि सुहावनी. शीतल जाको छांहि । |
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पथ की बाधाओं के आगे | गीत - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए |
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महानगर पर दोहे - राजगोपाल सिंह | ||
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर |
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चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल - अंजुम रहबर | ||
चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है, |
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तंत्र - गोरख पाण्डेय | ||
राजा बोला रात है, |
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नये सुभाषित - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
पत्रकार |
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महामारी लगी थी - गुलज़ार | ||
घरों को भाग लिए थे सभी मज़दूर, कारीगर |
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जननी जन्मभूमि - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम, |
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चंद्रशेखर आज़ाद | गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे |
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राखी बांधत जसोदा मैया - सूरदास | Surdas | ||
राखी बांधत जसोदा मैया। |
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झूठों ने झूठों से - राहत इंदौरी | ||
झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो |
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छोटी सी बिगड़ी बात को - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया | ||
छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग |
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देखो, सोचो, समझो - भगवतीचरण वर्मा | ||
देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो |
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मेरी अभिलाषा | कविता - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया | ||
चाहती हूँ आज देना, प्यार का उपहार जग को।। |
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हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है |
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रिसती यादें - श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry | ||
दोस्तों के साथ बिताए लम्हों की |
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शिव की भूख - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
एक बार शिव शम्भू को |
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आ: धरती कितना देती है - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant | ||
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मैं अमर शहीदों का चारण - श्रीकृष्ण सरल | ||
मैं अमर शहीदों का चारण |
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एक दीया मस्तिष्क में जलाएं - दीपा शर्मा | फीजी | ||
आजकल हर समय विचारों के झंझावात चलते रहते हैं |
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कटी पतंग - डॉ मृदुल कीर्ति | ||
एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई, |
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test - बिहारी | Bihari | ||
test |
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test52 - बिहारी | Bihari | ||
test |
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काका हाथरसी की दो हास्य कविताएं - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
चोटी के कवि |
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more... | ||
मरा हूँ हज़ार मरण - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
मरा हूँ हज़ार मरण |
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more... | ||
जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने | गीत - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया |
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more... | ||
मैं कवि हूँ - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
मैं डॉक्टर नहीं हूँ |
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more... | ||
जीवन का राग - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
जीवन का ये जो राग है |
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लड़कपन - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
चित्त के चाव, चोचले मन के, |
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शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
'काफ़िर है, काफ़िर है, मारो!' |
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कवि वृन्द के दोहे - वृन्द | ||
जाही ते कछु पाइये, करिये ताकी आस। |
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हिचकियाँ कह गईं... - श्रवण राही | ||
पीर के गीत तो अनकहे रह गए |
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डॉ मानव के हाइकु - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
देखे जो छवि |
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आखिर मैं हूँ कौन? - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
एक मानव... |
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वाल्मीकि से अनुरोध - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
महाकवि वाल्मीकि |
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दो बच्चे - दिविक रमेश | ||
एक बच्चा खेल रहा है |
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नेता एकम नेता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
नेता एकम नेता |
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राम रतन धन पायो | मीराबाई के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
राम रतन धन पायो |
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कबीर के दोहे | Kabir's Couplets - कबीरदास | Kabirdas | ||
कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं। |
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फागुन के दिन चार - मीराबाई | Meerabai | ||
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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सामने गुलशन नज़र आया | ग़ज़ल - डॉ सुधेश | ||
सामने गुलशन नज़र आया |
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कबीर वाणी - कबीरदास | Kabirdas | ||
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर |
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas | ||
क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है: |
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कबीर भजन - कबीरदास | Kabirdas | ||
उमरिया धोखे में खोये दियो रे। |
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more... | ||
युग-चेतना | कविता - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki | ||
मैंने दुख झेले |
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more... | ||
बिहारी के होली दोहे - बिहारी | Bihari | ||
होली पर बिहारी के कुछ दोहे |
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more... | ||
बहुत वासनाओं पर मन से | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
बहुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर, |
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more... | ||
कबीर दोहे -3 - कबीरदास | Kabirdas | ||
(41) |
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more... | ||
ताज़े-ताज़े ख़्वाब | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
ताज़े-ताज़े ख़्वाब सजाये रखता है |
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more... | ||
किसी के दुख में .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
किसी के दुख में रो उट्ठूं कुछ ऐसी तर्जुमानी दे |
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more... | ||
जाहिल मेरे बाने - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ |
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इस नदी की धार में | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है |
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मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा |
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कड़वा सत्य | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
एक लंबी मेज |
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जै जै प्यारे भारत देश - महावीर प्रसाद द्विवेदी | Mahavir Prasad Dwivedi | ||
जै जै प्यारे देश हमारे |
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मैं दिल्ली हूँ | दो - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
जब चाहा मैंने तूफ़ानों के, अभिमानों को कुचल दिया । |
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भारत वर्ष की श्रेष्ठता | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ? |
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अँधेरे में - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh | ||
जिंदगी के... |
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कबीर की कुंडलियां - 1 - कबीरदास | Kabirdas | ||
गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पांय |
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परशुराम की प्रतीक्षा | खण्ड 2 - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
(खण्ड दो) |
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सवाल - विष्णु नागर | ||
ईश्वर से पूछा गया कि उन्हें कौन-सा मौसम अच्छा लगता है-ठंड का, गर्मी का या बरसात का? |
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माँ | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
इस धरती पर |
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स्पष्टीकरण - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हाँ, मैंने कहा था-- |
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हिन्दू या मुस्लिम के | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए |
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सीता का हरण होगा - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
कब तक यूं बहारों में पतझड़ का चलन होगा? |
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जानकी के लिए - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
मर चुका है रावण का शरीर |
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नव वर्ष - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
नव वर्ष |
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कोई फिर कैसे.... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
कोई फिर कैसे किसी शख़्स की पहचान करे |
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हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हे दयालु ईश मेरे दुख मेरे हर लीजिए |
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सागर के वक्ष पर - स्वामी विवेकानंद | ||
नील आकाश में बहते हैं मेघदल, |
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भूमण्डलीय तापक्रम वृद्धि - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड | ||
प्रश्न चिन्ह? खतरा अत्यधिक, |
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more... | ||
अरे भीरु - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार |
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भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !! - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
यदि दर्द पेट में होता हो |
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more... | ||
रैदास के पद -2 - रैदास | Ravidas | ||
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै । |
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बहरे या गहरे - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
अचानक तुम्हारे पीछे |
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more... | ||
चीरहरण - जैनन प्रसाद | फीजी | ||
हँस रहे हैं आज |
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more... | ||
भटकता हूँ दर-दर | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
भटकता हूँ दर-दर कहाँ अपना घर है |
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more... | ||
रोटी और संसद - सुदामा पांडेय धूमिल | ||
एक आदमी |
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more... | ||
मातृभाषा - केदारनाथ सिंह | ||
जैसे चींटियाँ लौटती हैं |
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गुरु महिमा | पद - सहजो बाई | ||
राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ, गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ ।। |
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बापू की विदा - डॉ रामकुमार वर्मा | ||
आज बापू की विदा है! |
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कस ली है कमर अब तो - अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ | ||
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे |
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अजनबी देश है यह - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना | ||
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है |
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ज़िम्मेदारी - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
सामाजिक असंगति |
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दर्द के पैबंद | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
मखमली चादर के नीचे दर्द के पैबंद हैं |
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गिनती - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आपको नहीं लगता कि |
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
फिर नये मौसम की हम बातें करें |
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दिन में जो भी प्यारा | ग़ज़ल - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
दिन में जो भी प्यारा मंज़र लगता है |
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मुझे देखा ही नहीं - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
देखतीं है आँखें बहुत कुछ |
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सुजीवन - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt | ||
हे जीवन स्वामी तुम हमको |
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एक वाक्य - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
चेक बुक हो पीली या लाल, |
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सच्चाई - गोरख पाण्डेय | ||
मेहनत से मिलती है |
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भूखे-प्यासे - देवेन्द्र कुमार मिश्रा | ||
वे भूखे प्यासे, पपड़ाये होंठ |
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मज़दूर - गुलज़ार | ||
कुछ ऐसे कारवां देखे हैं सैंतालिस में भी मैने |
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नेता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
नेता ! नेता ! नेता ! |
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दूर गगन पर | गीत - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया | ||
दूर गगन पर सँध्या की लाली |
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साबरमती के सन्त | कवि प्रदीप - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल |
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तेरी हैवानियत - श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry | ||
हैवानियत तेरी |
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क्या तुमने उसको देखा है - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
वो भटक रहा था यहाँ - वहाँ |
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श्रम का वंदन | जन-गीत - गिरीश पंकज | ||
जिस समाज में श्रम का वंदन, केवल वही हमारा है। |
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जै-जै कार करो - अजातशत्रु | ||
ये भी अच्छे वो भी अच्छे |
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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान - श्रीकृष्ण सरल | ||
आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है |
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गुरु महिमा - संत पलटूदास | ||
संत पलटूदास गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं: |
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राम - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड | ||
लिखने को कुछ और चला था |
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काश! मुझे कविता आती - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड | ||
काश! मुझे कविता आती |
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हिंद को सलाम करें, शान के लिये - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड | ||
तीन रंग से बना है, ध्वज यहाँ खड़ा |
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टेलीपैथी - अलका सिन्हा | ||
ऐन उसी वक्त |
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गिरमिटिया की पीर - डॉ मृदुल कीर्ति | ||
मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में |
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हरि बिन कछू न सुहावै | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
हरि बिन कछू न सुहावै |
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नर हो न निराश करो मन को - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
नर हो न निराश करो मन को |
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मुक्तिबोध की कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh | ||
मैं बना उन्माद री सखि, तू तरल अवसाद |
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मैं अपनी ज़िन्दगी से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ |
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ऋतु फागुन नियरानी हो - कबीरदास | Kabirdas | ||
ऋतु फागुन नियरानी हो, |
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मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ |
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अजनबी नज़रों से | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
अजनबी नज़रों से अपने आप को देखा न कर |
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चीन्हे किए अचीन्हे कितने | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
हुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर, |
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शब्द और शब्द | कविता - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
समा जाता है |
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हमारा उद्भव | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
शुभ शान्तिमय शोभा जहाँ भव-बन्धनों को खोलती, |
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अंतर्द्वंद्व - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया | ||
ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है? |
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मैं दिल्ली हूँ | तीन - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
गूंजी थी मेरी गलियों में, भोले बचपन की किलकारी । |
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हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम ! - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम ! |
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माँ पर दोहे | मातृ-दिवस - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान। |
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परशुराम की प्रतीक्षा | खण्ड 3 - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
(खण्ड तीन) |
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प्राण वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
हम भारतीयों का सदा है, प्राण वन्देमातरम्। |
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काजू भुने पलेट में | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में |
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लौटना | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
बरसों बाद लौटा हूँ |
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सपने अगर नहीं होते | ग़ज़ल - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
मन में सपने अगर नहीं होते, |
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उठो धरा के अमर सपूतो - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
उठो धरा के अमर सपूतो |
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राम का नाम बड़ा सुखदाई | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
राम का नाम बड़ा सुखदाई |
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मैं तटनी तरल तरंगा, मीठे जल की निर्मल गंगा - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड | ||
मैं तटनी तरल तरंगा |
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अनसुनी करके - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
अनसुनी करके तेरी बात |
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कवि - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
कलम अपनी साध |
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भगत सिंह - गीत - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
फांसी का झूला झूल गया मर्दाना भगत सिंह । |
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तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं |
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हम दीवानों की क्या हस्ती - भगवतीचरण वर्मा | ||
हम दीवानों की क्या हस्ती, |
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दो मिनट का मौन - केदारनाथ सिंह | ||
भाइयो और बहनो |
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उतने सूर्यास्त के उतने आसमान - आलोक धन्वा | ||
उतने सूर्यास्त के उतने आसमान |
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हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हिंदी उनकी राजनीति है |
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फीजी कितना प्यारा है - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी | ||
प्रशांत महासागर से घिरा |
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते |
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उपलब्धि - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
मैं क्या जिया ? |
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जवाब - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
दोहराता रहेगा इतिहास |
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कुछ न किसी से कहें जनाब | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
कुछ न किसी से कहें जनाब |
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वे डरते हैं - गोरख पाण्डेय | ||
किस चीज़ से डरते हैं वे |
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तुम्हारे रक्त में बहूं मैं - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
मेरी ख़ामोशी का |
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आ जा सुर में सुर मिला - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया | ||
आ जा सुर में सुर मिला ले, यह मेरा ही गीत है, |
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कलयुग के ब्रह्म-ऋषि - बालेश्वर अग्रवाल | ||
यह कविता अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद् के भूतपूर्व उपाध्यक्ष, 'बी एल गौड़' ने बालेश्वर जी के जन्मदिवस पर लिखी थी। |
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भटका हुआ भविष्य - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना, |
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आम आदमी तो हम भी हैं - श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry | ||
नहीं आती हँसी अब हर बात पर |
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सो गई है मनुजता की संवेदना - डॉ. जगदीश व्योम | ||
सो गई है मनुजता की संवेदना |
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कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए |
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शहीद - श्रीकृष्ण सरल | ||
देते प्राणों का दान देश के हित शहीद |
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
जब भी देखूं, आतप हरता। |
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अपील - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी | ||
दुनिया भर की सारी धार्मिक किताबों ने, |
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जिंदगी की चादर - अलका सिन्हा | ||
जिंदगी को जिया मैंने |
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मुझे थाम लेना - डॉ मृदुल कीर्ति | ||
महाकाल से भी प्रबल कामनाएं, |
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सृजन पर दो हिन्दी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
अनुभूति से जो प्राणवान होती है, |
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वही टूटा हुआ दर्पण - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
वही टूटा हुआ दर्पण बराबर याद आता है |
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झूठी जगमग जोति | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
झूठी जगमग जोति |
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भरोसा इस क़दर मैंने | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
भरोसा इस क़दर मैंने तुम्हारे प्यार पर रक्खा |
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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
मौज-मस्ती के पल भी आएंगे |
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विपदाओं से मुझे बचाओ, यह न प्रार्थना | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
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हमारे पूर्वज | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
उन पूर्वजों की कीर्ति का वर्णन अतीव अपार है, |
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मैं दिल्ली हूँ | चार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
क्यों नाम पड़ा मेरा 'दिल्ली', यह तो कुछ याद न आता है । |
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छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
छीन सकती है नहीं सरकार वन्देमातरम् । |
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यथार्थ - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया | ||
आँखें बरबस भर आती हैं, |
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खोजिए - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
भीड़ है |
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घर में ठंडे चूल्हे पर | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है |
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एक ठहरी हुई उम्र | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
मैं था तब इक्कीस का |
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जी रहे हैं लोग कैसे | ग़ज़ल - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
जी रहे हैं लोग कैसे आज के वातावरण में, |
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जग में अजब है तेरा नाम | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
जग में अजब है तेरा नाम |
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उर्मिला - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
टिमटिमाते दियों से |
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रात भर का वह गहरा अँधेरा - शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड | ||
रात भर का वह गहरा अँधेरा, |
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शहीद भगत सिंह - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह । |
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सरकार कहते हैं - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं, |
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फ़क़ीराना ठाठ | गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आ तुझको दिखाऊँ मैं अपने ठाठ फ़क़ीराना |
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लीक पर वे चलें - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना | ||
लीक पर वे चलें जिनके |
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ |
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आज ना जाने क्यों - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
आज ना जाने क्यों फिर से |
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ग्राम चित्र - नरेंद्र शर्मा | ||
मक्का के पीले आटे-सी |
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उत्तर नहीं हूँ - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
उत्तर नहीं हूँ |
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मेरा दिल मोम सा | कविता - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
खिड़की दरवाजे लोहे के बना |
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कौन है वो? - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
कोई है |
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ऐ मातृभूमि - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो, सदा विजय हो। |
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सुहाना सहाना लगे | गीत - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया | ||
सुहाना सहाना लगे |
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घर - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
शाम होते ही |
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नंगोना - सुभाष मुनेश्वर | न्यूज़ीलैंड | ||
जहाँ नंगोने की थारी |
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आरजू - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी | ||
इंतजार की आरजू अब नहीं रही |
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सन्नाटा - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको, |
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माँ - डॉ. जगदीश व्योम | ||
माँ कबीर की साखी जैसी माँ वेदों की मूल चेतना |
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बस...या ख़ुदा | कविता - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
बेच रहे थे वह पानी |
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काँटे अनियारे लिखता हूँ - श्रीकृष्ण सरल | ||
अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे |
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दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर - भगवतीचरण वर्मा | ||
दोस्त एक भी नहीं जहाँ पर, सौ-सौ दुश्मन जान के, |
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त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया - त्रिलोक सिंह ठकुरेला | ||
कुण्डलिया |
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दहशत - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी | ||
सुबह-सुबह जब पढ़ रहा होता हूँ अख़बार |
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more... | ||
उलहना - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | ||
कहो तो यह कैसी है रीति? |
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कबीर दोहे -4 - कबीरदास | Kabirdas | ||
4 |
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अब तो मेरा राम | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
अब तो मेरा राम |
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संगीत पार्टी - सुषम बेदी | ||
तबले पर कहरवा बज रहा था। सुनीता एक चुस्त-सा फिल्मी गीत गा रही थी। आवाज़ मधुर थी पर मँजाव नहीं था। सो बीच-बीच में कभी ताल की गलती हो जाती तो कभी सुर ठीक न लगता। |
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समंदर की उम्र - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
लहर ने |
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कबीर दोहे -4 - कबीरदास | Kabirdas | ||
समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । |
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दिवाली के दिन | हास्य कविता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
''तुम खील-बताशे ले आओ, |
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पुराने ख़्वाब के फिर से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
पुराने ख़्वाब के फिर से नये साँचे बदलती है |
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कोई नहीं होगा साक्षी - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
पत्थर के नहीं हैं |
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टूट गयी खटिया - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
हे वोटर महाराज, |
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विकसित करो हमारा अंतर | गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
विकसित करो हमारा अंतर |
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आदर्श | भारत-भारती - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
आदर्श जन संसार में इतने कहाँ पर हैं हुए ? |
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शब्द वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
फ़ैला जहाँ में शोर मित्रो! शब्द वन्देमातरम्। |
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जिस्म क्या है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये |
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हर बार | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
हर बार |
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काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहे |
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मैं दिल्ली हूँ | पाँच - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
प्राणों से हाथ पड़ा धोना, मेरे कितने ही लालों को । |
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more... | ||
कबीर की ज्ञान, भक्ति और नीति साखियाँ - कबीरदास | Kabirdas | ||
यहाँ कबीर की ज्ञान, भक्ति और नीति के विषयों से सम्बद्ध साखियाँ संकलित हैं। इनमें आत्मा की अमरता, संसार की असारता, गुरु की महिमा तथा दया, सन्तोष और विनम्रता जैसे सद्गुणों पर बल दिया गया है। |
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more... | ||
तुम मेरी बेघरी पे... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
तुम मेरी बेघरी पे बड़ा काम कर गए |
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दिल पे मुश्किल है.... - कुँअर बेचैन | ||
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना |
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किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकता |
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अविष्ट - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
दुख आया |
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हे मातृभूमि - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ। |
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सुनीता शर्मा के हाइकु - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
भाव ही भाव |
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हिंदी देश की शान - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
एकता की सूचक हिदी भारत माँ की आन है, |
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ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं |
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रणनीति - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
छुपा लेता हूँ |
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दीवाली : हिंदी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
सब ओर ही दीपों का बसेरा देखा, |
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मुहब्बत की जगह--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं |
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कविता ज़िन्दाबाद हमारी कविता ज़िन्दाबाद - अजातशत्रु | ||
कविता ज़िन्दाबाद हमारी कविता ज़िन्दाबाद! |
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कहो नहीं करके दिखलाओ - श्रीकृष्ण सरल | ||
कहो नहीं करके दिखलाओ |
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मूलमंत्र - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
केवल मन के चाहे से ही |
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सब शत्रुभाव मिट जाएँगे - सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati | ||
भारत देश नाम भयहारी, जन-जन इसको गाएँगे। |
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संकेतों की भाषा - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी | ||
वे चार पांच के समूह में… |
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कृतघ्नता - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | ||
चन्द्र हरता है |
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तलाश जारी है... - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
स्वदेस में बिहारी हूँ, परदेस में बाहरी हूँ |
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श्याम सुंदर पर दोहे - बिहारी | Bihari | ||
मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय। |
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म्हारे तो गिरधर गोपाल | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
म्हारे तो गिरधर गोपाल |
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कबीर दोहे -5 - कबीरदास | Kabirdas | ||
दया कौन पर कीजिये, का पर निर्दय होय । |
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कवि फ़रोश | पैरोडी - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ |
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आर्य-स्त्रियाँ - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
केवल पुरुष ही थे न वे जिनका जगत को गर्व था, |
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आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख | ग़ज़ल - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख |
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग। |
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सत्य की जीत - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी | ||
"अरे ओ दुर्योधन निर्लज्ज! |
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जो डलहौज़ी न कर पाया | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे |
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छटपटाहट भरे कुछ नोट्स | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
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बदलीं जो उनकी आँखें - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया । |
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जितने पूजाघर हैं | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये |
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गीता का सार - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
तू आप ही अपना शत्रु है |
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more... | ||
मक़सद - राजगोपाल सिंह | ||
उनका मक़सद था |
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वो कभी दर्द का... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
वो कभी दर्द का चर्चा नहीं होने देता |
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दो-चार बार... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
दो-चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए |
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लम्हा इक छोटा सा फिर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया |
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प्रगीत कुँअर के मुक्तक - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
वो समय कैसा कि जिसमें आज हो पर कल ना हो |
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कबीर दोहे -6 - कबीरदास | Kabirdas | ||
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर । |
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जीवन - नरेंद्र शर्मा | ||
घडी-घड़ी गिन, घड़ी देखते काट रहा हूँ जीवन के दिन |
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ज़िंदगी तुझे सलाम - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है |
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आदिम स्वप्न - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया | ||
तुम मन में, तुम धड़कन में |
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हममें फ़र्क़ है - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
तुम्हारा नजरिया भले ही समान हो |
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मातृ-वंदना - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
कंठ तेरे हैं अनेकों, स्वर तुम्हारा एक है, |
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बेटी को उसके अठाहरवें जन्मदिन पर पत्र - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
आशा है तुम सकुशल होगी |
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प्रार्थना - सुभाष मुनेश्वर | न्यूज़ीलैंड | ||
हे मेरे ईश्वर, दे दे त्राण |
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वंदे मातरम् - सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati | ||
जय भारत, जय वंदे मातरम्॥ |
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नमन करें इस देश को - सुब्रह्मण्य भारती | Subramania Bharati | ||
इसी देश में मातु-पिता जनमे पाए आनंद अपार, |
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ये बिछा लो आँचल में - आशीष मिश्रा | इंग्लैंड | ||
भर कर लाया फूल हथेली, प्रिये बिछा लो आँचल में |
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कलम इतनी घिसो... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए |
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रंग भरी राग | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री। |
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मेरो दरद न जाणै कोय - मीराबाई | Meerabai | ||
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। |
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हमारी सभ्यता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे, |
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कबीर की कुंडलियां - कबीरदास | Kabirdas | ||
कबीर ने कुंडलियां भी कही हों इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन कबीर की कुंडलियां भी प्रचलित हैं। ये कुंडलियां शायद उनके प्रशंसकों या उनके शिष्यों ने कबीर की साखियों को आधार बना लिखी हों। यदि आपके पास इसकी और जानकारी हो या आपने इसपर शोध किया हो तो कृपया जानकारी साझा करें। |
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कोई और | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
एक सुबह |
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किनारा वह हमसे - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
किनारा वह हमसे किये जा रहे हैं। |
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लूटकर ले जाएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
लूटकर ले जाएंगे सब देखते रह जाओगे |
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कुछ दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आँखों से रूकता नहीं बहता उनके नीर । |
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आज के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हमने चुप्पी तान ली, नहीं करेंगे जंग । |
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सत्ता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
सत्ता अंधी है |
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जीवन और संसार पर दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आँखों से बहने लगी, गंगा-जमुना साथ । |
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करो हम को न शर्मिंदा.. - कुँअर बेचैन | ||
करो हम को न शर्मिंदा बढ़ो आगे कहीं बाबा |
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तुम' से 'आप' - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
तुम भी जल थे |
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चलो मन गंगा-जमना-तीर - मीराबाई | Meerabai | ||
गंगा-जमना निरमळ पाणी सीतल होत सरीर । |
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कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते हो |
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तुझ बिन कोई हमारा - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर; |
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अर्थहीन - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया | ||
कटु वचनों से आहत कर |
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सफाई - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
पूछा हमसे किसी ने |
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देश पीड़ित कब तक रहेगा - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
अगर देश आँसू बहाता रहा तो, |
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विडम्बना | अब्बास रज़ा अल्वी की कविता - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया | ||
आज मैं पीटी नहीं मार डाली गयी हूँ |
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तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है |
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जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया |
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बड़े साहिब तबीयत के... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बड़े साहिब तबीयत के ज़रा नासाज़ बैठे हैं |
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मेरी औक़ात का... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
मेरी औक़ात का ऐ दोस्त शगूफ़ा न बना |
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मैं करती हूँ चुमौना - अलका सिन्हा | ||
कोहरे की ओढ़नी से झांकती है |
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चिड़िया | कविता - शरद जोशी | Sharad Joshi | ||
'च' ने चिड़िया पर कविता लिखी। |
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फागुन के दिन चार | मीरा के पद - मीराबाई | Meerabai | ||
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया - मीराबाई | Meerabai | ||
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।। टेर ।। |
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सीखा पशुओं से | व्यंग्य कविता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
कुत्ते से सीखी चापलूसी |
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मन्त्र वन्देमातरम् - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
हर घड़ी हर बार हो हर ठाम वन्द्देमातरम्। |
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जब दुख मेरे पास बैठा होता है | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
जब दुख मेरे पास बैठा होता है |
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कबीर की साखियां | संकलन - कबीरदास | Kabirdas | ||
कबीर की साखियां बहुत लोकप्रिय हैं। यह पृष्ठ कबीर का साखी संग्रह है। |
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बग़ैर बात कोई | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
बग़ैर बात कोई किसका दुख बँटाता है |
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होली - मैथिलीशरण गुप्त - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
जो कुछ होनी थी, सब होली! |
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ये सारा जिस्म झुककर - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा |
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में |
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यदि देश के हित मरना पड़े - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्त्रों बार भी, |
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ये देश है विपदा में - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
देश हमारा है विपदा में, साथी तुम उठ जाओ। |
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अपनों की बातें - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
बातें उन बातों की हैं |
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क्षणिकाएँ - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
कहा-सुनी |
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कला कौ अंग | दोहे - प्रो. राजेश कुमार | ||
लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय। |
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माँ अमर होती है, माँ मरा नहीं करती - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
माँ अमर होती है, |
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धूप से छाँव की.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
धूप से छाँव की कहानी लिख |
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खयालों की जमीं पर... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
खयालों की जमीं पर मैं हकीकत बो के देखूंगी |
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जिस तिनके को ... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
जिस तिनके को लोगों ने बेकार कहा था |
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कब निकलेगा देश हमारा - कुँअर बेचैन | ||
पूछ रहीं सूखी अंतड़ियाँ |
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आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे |
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होरी खेलत हैं गिरधारी - मीराबाई | Meerabai | ||
होरी खेलत हैं गिरधारी। |
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संजय भारद्वाज की दो कविताएं - संजय भारद्वाज | ||
जाता साल(संवाद 2018 से) |
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गुजरात : 2002 | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
जला दिए गए मकान में |
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पांच कविताएं | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
विडम्बना |
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खेलो रंग अबीर उड़ावो - होली कविता - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो । |
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स्वप्न सब राख की... - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
स्वप्न सब राख की ढेरियाँ हो गए, |
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ओम ह्रीं श्री लक्ष्म्यै नमः - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
हमारे घर में पुस्तकें ही पुस्तकें थीं |
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किसी की आँख में आँसू | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
किसी की आँख में आँसू, किसी की आँख में सपने |
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हम दुनिया की शान - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
हिदुभूमि के निवासी, हम दुनिया की शान हैं। |
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कवि हूँ प्रयोगशील - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
गलत न समझो, मैं कवि हूँ प्रयोगशील, |
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तुझे पाती हूं तो जी जाती हूं - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
बादल ही क्यों ना फट जाएँ |
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मेरे देश का एक बूढ़ा कवि - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया | ||
फटे हुए लिबास में क़तार में खड़ा हुआ |
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क्षणिका - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
ना तुमने कुछ कहा, ना हमने कुछ कहा। |
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मेरे इस दिल में.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
मेरे इस दिल में क्या है क्या नहीं है |
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जैसे मेरे हैं... - अनिल जोशी | Anil Joshi | ||
जैसे मेरे हैं, वैसे सबके हों प्रभु |
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कर्मवीर - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं |
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आज का आदमी | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
मैं ढाई हाथ का आदमी हूँ |
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तू इतना कमज़ोर न हो - राजगोपाल सिंह | ||
तू इतना कमज़ोर न हो |
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अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिए |
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तेरे नाम | गीत - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
जाने कितनी बातें लिख दीं तेरे नाम |
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देश की ख़ातिर - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर हो। |
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व्यंग्य कोई कांटा नहीं - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
व्यंग्य कोई कांटा नहीं- |
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बैठे हों जब वो पास - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
बैठे हों जब वो पास, ख़ुदा ख़ैर करे |
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एक पगले नास्तिक की प्रार्थना - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
मुझे क्षमा करना ईश्वर |
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एक बूँद - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से |
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अहसास | सुशांत सुप्रिय की कविता - सुशांत सुप्रिय | ||
जब से मेरी गली की कुतिया |
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कृतज्ञ हूँ महामाया - राजेश्वर वशिष्ठ | ||
अपनी कक्षाओं में घूम रहे हैं |
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शब्द - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
जो बगीचे में उडती तितलियों से |
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ऐसे कुछ और सवालों को | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
ऐसे कुछ और सवालों को उछाला जाये |
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डॉ. संध्या सिंह की चार कविताएं - डॉ संध्या सिंह | सिंगापुर | ||
नयापन ज़िंदगी है |
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प्रो. राजेश कुमार के दोहे - प्रो. राजेश कुमार | ||
नव पल्लव इठलात हैं हर्ष न हिये समात। |
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प्रवासी भारतीय तू... | कविता - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
प्रवासी भारतीय तू |
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas | ||
सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें। |
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प्रार्थना - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
दुख दूर कर हमारे, संसार के रचैया! |
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धरती मैया | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
धरती मैया जैसी माँ |
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हिसाब बराबर - दिव्या माथुर | ||
हम फूलों पर सोए |
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आराधना झा श्रीवास्तव के हाइकु - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
वृत्त में क़ैद |
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कसौटी - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड | ||
वो मेरे लिए ला सकता है |
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दीवानी सी | कविता - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड | ||
एक औरत जो दफन बरसों से |
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मन न भए दस-बीस - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas | ||
मन न भए दस-बीस |
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चना जोर गरम - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
चना जोर गरम। |
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वो मेरे घर नहीं आता - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता |
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यहीं धरा रह जाए सब | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब |
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लोहे के पेड़ हरे होंगे - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल, |
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चांद कुछ देर जो ... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
चांद कुछ देर जो खिड़की पे अटक जाता है |
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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas | ||
हरि संग खेलति हैं सब फाग। |
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हिन्दी-भक्त - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद । |
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भलि भारत भूमि - तुलसीदास | Tulsidas | ||
भलि भारत भूमि भले कुल जन्मु समाजु सरीरु भलो लहि कै। |
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बेटी-युग - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
सतयुग, त्रेता, द्वापर बीता, बीता कलयुग कब का, |
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सबके अपने-अपने ग़म - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
सबके अपने-अपने ग़म |
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वो राम राम कहलाते हैं - आराधना झा श्रीवास्तव | ||
अवधपुरी से जनकपुरी तक |
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कोई बारिश पड़े ऐसी... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कोई बारिश पड़े ऐसी, जो रिसते घाव धो जाए |
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बात छोटी थी... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बात छोटी थी, मगर हम अड़ गए |
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क्या मैं परदेसी हूँ ? - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
धवल सिन्ध-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता |
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गति का कुसूर - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
क्या होता है कार में |
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डॉ भावना कुँअर के हाइकु - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
अकेला बीज |
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तू, मत फिर मारा मारा - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
निविड़ निशा के अन्धकार में |
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बापू - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
विश्व को हिंसा से |
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झाँसी की रानी - सुभद्रा कुमारी | ||
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, |
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सुखी आदमी - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh | ||
आज वह रोया |
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मुरझाया फूल | कविता - सुभद्रा कुमारी | ||
यह मुरझाया हुआ फूल है, |
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हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य। |
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अकबर और तुलसीदास - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
अकबर और तुलसीदास, |
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गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | ||
गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी |
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डॉ॰ सुधेश के मुक्तक - डॉ सुधेश | ||
प्राण का पंछी सवेरे क्यों चहकता है |
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खौफ़ - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
जाने-पहचाने पेड़ से |
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यह चिंता है | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
यह चिंता है वह चिंता है |
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संकल्प-गीत - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं। |
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आत्म-दर्शन - श्रीकृष्ण सरल | ||
चन्द्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूँ मैं, |
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निवेदन - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
राम, तुम्हें यह देश न भूले, |
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व्यंग्यकार से - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा |
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संकल्प-गीत - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं। |
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तुलसी की चौपाइयां - तुलसीदास | Tulsidas | ||
किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।। |
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ठुकरा दो या प्यार करो | सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - सुभद्रा कुमारी | ||
देव! तुम्हारे कई उपासक |
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कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh | ||
मेरे बेटे |
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जगमग जगमग - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर, |
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अंततः - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
बाहर से लहूलुहान |
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काँटों की गोदी में - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
काँटों की शैया में जिसने |
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अशेष दान - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
किया है तुमने मुझे अशेष, तुम्हारी लीला यह भगवान! |
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भिखारी ठाकुर - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh | ||
विषय कुछ और था |
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स्वतंत्रता का दीपक - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
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वंदना के इन स्वरों में - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi | ||
वंदना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो। |
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पीर - डॉ सुधेश | ||
हड्डियों में बस गई है पीर। |
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साथ लिए जा - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
दुर्गम और भीषण |
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नन्ही सचाई - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
एक डॉक्टर मित्र हमारे |
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कवि की बरसगाँठ - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
उन्तीस वसन्त जवानी के, बचपन की आँखों में बीते |
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मेरा नया बचपन - सुभद्रा कुमारी | ||
बार-बार आती है मुझको |
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कसौटी - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
जो चटटानों से न टकराए |
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मेरा धन है स्वाधीन कलम - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम |
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विजयादशमी - सुभद्रा कुमारी | ||
विजये ! तूने तो देखा है, |
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मुकाम - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
हमेशा छोटी-छोटी |
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दर्द के बोल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
उसको मन की क्या कहता मैं? |
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बदन पे जिसके... - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
बदन पे जिसके शराफत का पैरहन देखा |
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गोपालदास नीरज के गीत | जलाओ दीये | Neeraj Ke Geet - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना |
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बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
बरस-बरस पर आती होली, |
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अपनी छत को | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
अपनी छत को उनके महलों की मीनारें निगल गयीं |
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जीवन और मौसम - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
छँटने लगे हैं बादल |
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अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए |
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झेप अपनी मिटाने निकले हैं - विजय कुमार सिंघल | ||
झेप अपनी मिटाने निकले हैं |
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लेखक पर दोहे - प्रो. राजेश कुमार | ||
लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय। |
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जितना कम सामान रहेगा | नीरज का गीत - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
जितना कम सामान रहेगा |
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तुम दीवाली बनकर - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो, |
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कौरव कौन, कौन पांडव - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
कौरव कौन |
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डॉ सुधेश के दोहे - डॉ सुधेश | ||
हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार। |
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गोपालदास नीरज के दोहे - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
(1) |
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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा, |
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झुक नहीं सकते | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते। |
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मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जायेगा! |
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तुम्हारे पाँव के नीचे---- - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं |
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बिस्तरा है न चारपाई है - त्रिलोचन | ||
बिस्तरा है न चारपाई है |
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दुख में नीर बहा देते थे - निदा फ़ाज़ली | ||
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे |
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कवि आज सुना वह गान रे - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
कवि आज सुना वह गान रे, |
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रैदास के पद - रैदास | Ravidas | ||
अब कैसे छूटे राम रट लागी। |
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सोऽहम् | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
करके हम भी बी० ए० पास |
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खिड़की बन्द कर दो - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
खिड़की बन्द कर दो |
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सुनीति | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
निज गौरव को जान आत्मआदर का करना |
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अब के सावन में - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई |
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सफ़र में धूप तो होगी | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो |
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गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में |
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रैदास के दोहे - रैदास | Ravidas | ||
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात। |
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कार सरकार | हास्य - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
नए-नए मंत्री ने |
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रैदास की साखियाँ - रैदास | Ravidas | ||
हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस । |
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लेन-देन - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
एक महानुभाव हमारे घर आए |
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हिंदी है भारत की बोली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali | ||
दो वर्तमान का सत्य सरल, |
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। |
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मीरा के पद - Meera Ke Pad - मीराबाई | Meerabai | ||
दरद न जाण्यां कोय |
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मीरा के पद - Meera Ke Pad - मीराबाई | Meerabai | ||
अब तो हरि नाम लौ लागी |
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai | ||
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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भारतेन्दु की मुकरियां - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
सब गुरुजन को बुरो बतावै । |
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मीरा के भजन - मीराबाई | Meerabai | ||
मीरा के भजनों का संग्रह। |
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया । |
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कोरोना पर दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
गली-मुहल्ले चुप सभी, घर-दरवाजे बन्द। |
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दोहे | रसखान के दोहे - रसखान | Raskhan | ||
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ। |
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रवि - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
अस्त हो गया है तप-तप कर प्राची, वह रवि तेरा। |
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रसखान की पदावलियाँ | Raskhan Padawali - रसखान | Raskhan | ||
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। |
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan | ||
मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै। |
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उपस्थिति - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas | ||
व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं |
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संदेश - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मुझे याद है वह संदेश - |
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ज़िंदगी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
लाचारी है, |
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जन्म-दिन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
यूँ तो जन्म-दिन मैं यूँ भी नहीं मनाता |
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रिश्ते - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कुछ खून से बने हुए |
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रोहित कुमार 'हैप्पी' के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
रोहित कुमार 'हैप्पी' के दोहों का संकलन। |
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होली - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो । |
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तुम वाकई गधे हो - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
एक गधा |
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एक प्रार्थना - सुभाष मुनेश्वर | न्यूज़ीलैंड | ||
हे मेरे ईश्वर, दे दे त्राण |
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मायने रखता है ज़िंदगी में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
किसी का आना |
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दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को - रामप्रसाद बिस्मिल | ||
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एक ऐसी भी घड़ी आती है | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
एक ऐसी भी घड़ी आती है |
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दुख में भी परिचित मुखों को - त्रिलोचन | ||
दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या |
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कबीर के कालजयी दोहे - कबीरदास | Kabirdas | ||
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय |
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चतुष्पदियाँ - त्रिलोचन | ||
स्वर के सागर की बस लहर ली है |
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प्रश्न - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
प्रश्न था - " नाम ?" |
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कबीर के पद - कबीरदास | Kabirdas | ||
हम तौ एक एक करि जांनां। |
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मुझको याद किया जाएगा - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा |
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कुछ उलटी सीधी बातें - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
जला सब तेल दीया बुझ गया है अब जलेगा क्या । |
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पीपल के पत्तों पर | गीत - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी |
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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! |
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चुप क्यों न रहूँ | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
चुप क्यों न रहूँ हाल सुनाऊँ कहाँ कहाँ |
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हिन्दी–दिवस नहीं, हिन्दी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हिन्दी दिवस पर |
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मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है |
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हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को॥ |
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सब बुझे दीपक जला लूं - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma | ||
सब बुझे दीपक जला लूं |
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा |
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बिहारी के दोहे | Bihari's Couplets - बिहारी | Bihari | ||
रीति काल के कवियों में बिहारी सर्वोपरि माने जाते हैं। सतसई बिहारी की प्रमुख रचना हैं। इसमें 713 दोहे हैं। बिहारी के दोहों के संबंध में किसी ने कहा हैः |
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हंसों के वंशज | गीत - राजगोपाल सिंह | ||
हंसों के वंशज हैं लेकिन |
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नीरज के हाइकु - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
जन्म मरण |
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उसे यह फ़िक्र है हरदम - भगत सिंह | ||
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कही गुब्बारे सिर पर फूटे |
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श्रमिक हाइकु - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
ये मज़दूर |
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है |
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दादू दयाल की वाणी - संत दादू दयाल | Sant Dadu Dayal | ||
इसक अलाह की जाति है, इसक अलाह का अंग। |
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झुकी कमान - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
आए प्रचंड रिपु, शब्द सुना उन्हीं का, |
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सदुपदेश | दोहे - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
बात सँभारे बोलिए, समुझि सुठाँव-कुठाँव । |
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हिन्दी - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी ! |
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हैं खाने को कौन - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को |
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स्वदेश - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही | ||
वह हृदय नहीं है पत्थर है, |
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मुस्कान - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड | ||
उन्होंने कहा-- |
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ये जो शहतीर है | ग़ज़ल - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो |
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कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं |
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कहाँ तो तय था चराग़ाँ - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये |
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सीते! मम् श्वास-सरित सीते - राजगोपाल सिंह | ||
सीते! मम् श्वास-सरित सीते |
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ज़िंदगी - राजगोपाल सिंह | ||
ज़िंदगी इक ट्रेन है |
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कलयुग | मुक्तक - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कलयुग में पाई है बस यही शिक्षा |
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आज जो ऊँचाई पर है... - कुँअर बेचैन | ||
आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े |
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फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम! |
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दिव्य दोहे - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
अपने अपने काम से है सब ही को काम। |
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तर्ज़ बदलिए - कृष्णा सोबती | ||
गुमशुदा घोड़े पर सवार |
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भारति, जय विजय करे ! - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
भारति, जय विजयकरे! |
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रमेश पोखरियाल 'निशंक' की क्षणिकाएँ - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक | ||
रिश्ते |
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हिंदी पर दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल। |
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काका हाथरस्सी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार |
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हिंदी-प्रेम - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त |
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काका हाथरसी की कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ। |
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महंगाई - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
जन-गण मन के देवता, अब तो आंखें खोल |
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राष्ट्रीय एकता - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
कितना भी हल्ला करे, उग्रवाद उदंड, |
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डॉ. रामनिवास मानव के दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
डॉ. 'मानव' दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। उनके कुछ दोहे यहां दिए जा रहे हैं: |
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डॉ रामनिवास मानव के हाइकु - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
डॉ. 'मानव' हाइकु, दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। उनके कुछ हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं: |
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पत्रकारिता : तब और अब | डॉ रामनिवास मानव के दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
पत्रकारिता थी कभी, सचमुच मिशन पुनीत। |
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गांव पर हाइकु - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
डॉ. 'मानव' हाइकु, दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। गांव पर लिखे उनके कुछ हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं: |
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कृष्ण सुकुमार की ग़ज़लें - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
कृष्ण सुकुमार की ग़ज़लें |
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गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
यहाँ हम रवीन्द्रनाथ टैगोर (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) की सुप्रसिद्ध रचना 'गीतांजलि'' को श्रृँखला के रूप में प्रकाशित करने जा रहे हैं। 'गीतांजलि' गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) की सर्वाधिक प्रशंसित रचना है। 'गीतांजलि' पर उन्हें 1910 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था। |
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दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है। |
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चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला, |
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रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं - गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं का संकलन। |
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अकेला चल | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
अनसुनी करके तेरी बात, न दे जो कोई तेरा साथ |
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नारी के उद्गार - सुदर्शन | Sudershan | ||
'माँ' जब मुझको कहा पुरुष ने, तु्च्छ हो गये देव सभी। |
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मन की आँखें खोल - सुदर्शन | Sudershan | ||
बाबा, मन की आँखें खोल! |
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi | ||
होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता |
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वो था सुभाष, वो था सुभाष - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
वो भी तो ख़ुश रह सकता था |
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कार-चमत्कार | कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
[इसमें 64 कार हैं, सरकार] |
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माँ की भाषा - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
जब खेलते-खेलते |
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स्त्रीलिंग पुल्लिंग - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंह |
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कुर्सी पर काका की कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
कुरसीमाई |
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श्रोताओं की फब्तियां - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi | ||
कवियों की पंक्तियां, श्रोताओं की फब्तियां : |
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तेरी मरज़ी में आए जो - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है |
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उदयभानु ‘हंस' के हाइकु - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
युवक जागो! |
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कोई नहीं पराया - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है। |
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बीज - संजय भारद्वाज | ||
जलती सूखी जमीन |
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विडम्बना - संजय भारद्वाज | ||
ऐसा लबालब |
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दे, मैं करूँ वरण - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
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दर्द की सारी लकीरों.... | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
दर्द की सारी लकीरों को छुपाया जाएगा |
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इसको ख़ुदा बनाकर | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर |
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पुष्प की अभिलाषा | कविता - माखनलाल चतुर्वेदी | ||
चाह नहीं मैं सुरबाला के, |
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मेंहदी से तस्वीर खींच ली - माखनलाल चतुर्वेदी | ||
मेंहदी से तस्वीर खींच ली किसकी मधुर! हथेली पर । |
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दीप से दीप जले - माखनलाल चतुर्वेदी | ||
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें, |
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मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय तुम आते तब क्या होता? - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
मौन रात इस भांति कि जैसे, कोई गत वीणा पर बज कर, |
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दिन जल्दी-जल्दी ढलता है - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
हो जाय न पथ में रात कहीं, |
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एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए, |
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मरण काले - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
निराला के देहांत के पश्चात् उनके मृत शरीर का चित्र देखने पर हरिवंशराय बच्चन की लिखी कविता - |
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साथी, घर-घर आज दिवाली! - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
साथी, घर-घर आज दिवाली! |
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दो बजनिए | कविता - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
"हमारी तो कभी शादी ही न हुई, |
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आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ |
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स्वतंत्रता दिवस - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
आज से आजाद अपना देश फिर से! |
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नव वर्ष - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
नव वर्ष |
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दीपक जलाना कब मना है - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था |
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बाक़ी बच गया अंडा | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार |
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लोगे मोल? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
लोगे मोल? |
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तीनों बंदर बापू के | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के |
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कालिदास! सच-सच बतलाना ! | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
कालिदास! सच-सच बतलाना ! |
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बापू महान | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
बापू महान, बापू महान! |
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तेरे दरबार में क्या चलता है ? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
तेरे दरबार में |
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घिन तो नहीं आती है ? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
पूरी स्पीड में है ट्राम |
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मंत्र - नागार्जुन | Nagarjuna | ||
ॐ शब्द ही ब्रह्म है.. |
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भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएं - भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra | ||
यहाँ भवानी प्रसाद मिश्र के समृद्ध कृतित्व में से कुछ ऐसी कविताएं चयनित की गई हैं जो समकालीन समाज ओर विचारधारा का समग्र चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम होंगी। |
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बड़ी नाज़ुक है डोरी | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
बड़ी नाज़ुक है डोरी साँस की यह |
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स्वयं से - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
आजकल |
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प्रेम देश का... | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
प्रेम देश का ढूंढ रहे हो गद्दारों के बीच |
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दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें - इस पृष्ठ पर दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें संकलित की गई हैं। हमारा प्रयास है कि दुष्यंत कुमार की सभी उपलब्ध ग़ज़लें यहाँ सम्मिलित हों। |
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एक आशीर्वाद | कविता - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
जा तेरे स्वप्न बड़े हों। |
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काश! मैं भगवान होता - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
काश! मैं भगवान होता |
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मैं सूने में मन बहलाता - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
मेरे उर में जो निहित व्यथा |
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चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
गति प्रबल पैरों में भरी |
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गीत गाने को दिए पर स्वर नहीं - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
दे दिए अरमान अगणित |
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चुप्पियाँ | लघु कविता संग्रह - संजय भारद्वाज | ||
1) |
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वरदान माँगूँगा नहीं - शिवमंगल सिंह सुमन | ||
यह हार एक विराम है |
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विष्णु प्रभाकर की कविताएं - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
कहानी, कथा, उपन्यास, यात्रा-संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा, रूपक, फीचर, नाटक, एकांकी, समीक्षा, पत्राचार आदि गद्य की सभी संभव विधाओं के लिए प्रसिद्ध विष्णुजी ने कविताएं भी लिखी हैं। |
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जब सुनोगे गीत मेरे... - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ, |
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सुशांत सुप्रिय की कविताएं - सुशांत सुप्रिय | ||
सुशांत सुप्रिय की कविताएं का संकलन। |
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फेसबुक बनाम फेकबुक - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'फेसबुक' में |
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कुछ कर न सका - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan | ||
मैं जीवन में कुछ कर न सका |
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सुशांत सुप्रिय की तीन कविताएं - सुशांत सुप्रिय | ||
पड़ोसी |
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भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
वह आता -- |
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प्राप्ति | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
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तोड़ती पत्थर | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
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वसन्त आया - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
सखि, वसन्त आया । |
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ख़ून की होली जो खेली - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
रँग गये जैसे पलाश; |
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बापू, तुम मुर्गी खाते यदि | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
बापू, तुम मुर्गी खाते यदि |
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जूही की कली - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
[निराला की प्रथम काव्य कृति] |
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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! |
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स्नेह-निर्झर बह गया है | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
स्नेह-निर्झर बह गया है |
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ओमप्रकाश बाल्मीकि की कविताएं - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki | ||
ओमप्रकाश वाल्मीकि उन शीर्ष साहित्यकारों में से एक हैं जिन्होंने अपने सृजन से साहित्य में सम्मान व स्थान पाया है। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। आपने कविता, कहानी, आ्त्मकथा व आलोचनात्मक लेखन भी किया है। |
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भारत माता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
(राष्ट्रीय गीत) |
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कंकड चुनचुन - कबीरदास | Kabirdas | ||
कंकड चुनचुन महल उठाया |
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जल, रे दीपक, जल तू - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt | ||
जल, रे दीपक, जल तू। |
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भारत की जय | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, क्रिस्ती, मुसलमान |
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सपना - स्वरांगी साने | ||
खुली आँखों से |
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पीहर - स्वरांगी साने | ||
कविता में जाना |
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प्याज़ - स्वरांगी साने | ||
बहुत सारा |
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कछुआ - स्वरांगी साने | ||
बचपन में कछुए को देखती |
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प्रतीक्षा - स्वरांगी साने | ||
बेटी आने वाली है |
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कागज़ - स्वरांगी साने | ||
उन पीले ज़र्द कागज़ों के पास |
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बीस साल बाद - सुदामा पांडेय धूमिल | ||
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बाजार का ये हाल है | हास्य व्यंग्य संग्रह - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
बाज़ार का ये हाल है - हास्य-व्यंग्य-संग्रह |
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सौदागर ईमान के - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
आँख बंद कर सोये चद्दर तान के, |
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तेरे भीतर अगर नदी होगी | ग़ज़ल - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
तेरे भीतर अगर नदी होगी |
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फूल और काँटा | Phool Aur Kanta - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh | ||
हैं जनम लेते जगह में एक ही, |
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खूनी पर्चा - वंशीधर शुक्ल | ||
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, |
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ओ शासक नेहरु सावधान - वंशीधर शुक्ल | ||
ओ शासक नेहरु सावधान, |
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ओ शासक नेहरु सावधान - वंशीधर शुक्ल | ||
ओ शासक नेहरु सावधान, |
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उठो सोने वालों - वंशीधर शुक्ल | ||
उठो सोने वालों सबेरा हुआ है। |
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उठ जाग मुसाफिर भोर भई - वंशीधर शुक्ल | ||
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है |
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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है |
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प्रतिपल घूंट लहू के पीना | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
प्रतिपल घूँट लहू के पीना, |
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बात हम मस्ती में ऐसी कह गए | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
बात हम मस्ती में ऐसी कह गए, |
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सामने आईने के जाओगे - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
सामने आईने के जाओगे? |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल | ||
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को |
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कवि प्रदीप की कविताएं - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
कवि प्रदीप का जीवन-परिचय व कविताएं |
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साँप! - अज्ञेय | Ajneya | ||
साँप! |
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जो पुल बनाएँगें - अज्ञेय | Ajneya | ||
जो पुल बनाएँगें |
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योगफल - अज्ञेय | Ajneya | ||
सुख मिला : |
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लक्षण - अज्ञेय | Ajneya | ||
आँसू से भरने पर आँखें |
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यह दीप अकेला - अज्ञेय | Ajneya | ||
यह दीप अकेला स्नेह भरा |
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सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ - अज्ञेय | Ajneya | ||
सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान! |
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रोते-रोते रात सो गई - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
झुकी न अलकें |
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आओ फिर से दीया जलाएं | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
आओ फिर से दिया जलाएं |
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एक बरस बीत गया | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
एक बरस बीत गया |
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यक्ष प्रश्न - अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
जो कल थे, |
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पंद्रह अगस्त की पुकार - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
पंद्रह अगस्त का दिन कहता - |
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कैदी कविराय की कुंडलिया - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
गूंजी हिन्दी विश्व में स्वप्न हुआ साकार, |
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गीत नहीं गाता हूँ | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
बेनकाब चेहरे हैं, |
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ऊँचाई | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
ऊँचे पहाड़ पर, |
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दूध में दरार पड़ गई | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
खून क्यों सफेद हो गया? |
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कदम मिलाकर चलना होगा | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
बाधाएं आती हैं आएं |
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पहचान | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी |
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गूंजी हिन्दी - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee | ||
गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार; |
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ज़िन्दगी - अभिषेक गुप्ता | ||
अधूरे ख़त |
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डूब जाता हूँ मैं जिंदगी के - अभिषेक गुप्ता | ||
डूब जाता हूँ मैं ज़िंदगी के |
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मेरे देश की माटी सोना | गीत - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना, |
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विप्लव-गान | बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ - बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin | ||
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये, |
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खूनी हस्ताक्षर - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
वह खून कहो किस मतलब का, |
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नेताजी का तुलादान - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas | ||
देखा पूरब में आज सुबह, |
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आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk | ||
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? |
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इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ | ग़ज़ल - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk | ||
इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ |
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उसने मेरा हाथ देखा | कविता - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk | ||
उसने मेरा हाथ देखा और सिर हिला दिया, |
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सड़कों पे ढले साये | कविता - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk | ||
सड़कों पे ढले साये |
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रो उठोगे मीत मेरे - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ, |
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मुक्तिबोध की कविताएं - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh | ||
यहाँ मुक्तिबोध के कुछ कवितांश प्रकाशित किए गए हैं। हमें विश्वास है पाठकों को रूचिकर व पठनीय लगेंगे। |
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सजनवा के गाँव चले - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
सूरज उगे या शाम ढले, |
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मैंने जाने गीत बिरह के - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है, |
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नानी वाली कथा-कहानी - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी। |
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आया मधुऋतु का त्योहार - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर बहे बयार, |
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कुछ हाइकु - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
1) |
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चलो कहीं पर घूमा जाए | गीत - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) | ||
चलो कहीं पर घूमा जाए, |
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होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
बरसते हो तारों के फूल |
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आँसू के कन - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
वसुधा के अंचल पर - जयशंकर प्रसाद [ हंस, जनवरी १९३३] |
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झरना - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी |
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महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal | ||
महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति |
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क्योंकि सपना है अभी भी - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
...क्योंकि सपना है अभी भी |
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उत्तर नहीं हूँ - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
उत्तर नहीं हूँ |
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पूजा गीत - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti | ||
जिस दिन अपनी हर आस्था तिनके-सी टूटे |
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डॉ सुधेश की ग़ज़लें - डॉ सुधेश | ||
डॉ सुधेश दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त हैं। आप हिंदी में विभिन्न विधाओ में सृजन करते हैं। यहाँ आपकी ग़ज़लेंसंकलित की गई हैं। |
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आज भी खड़ी वो... - सपना सिंह ( सोनश्री ) | ||
निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं: |
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छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री ) | ||
निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता |
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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
लोग क्या से क्या न जाने हो गए |
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बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या |
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नहीं कुछ भी बताना चाहता है | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
नहीं कुछ भी बताना चाहता है |
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परिंदे की बेज़ुबानी - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है! |
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नहीं है आदमी की अब | हज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
नहीं है आदमी की अब कोई पहचान दिल्ली में |
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हौसले मिटते नहीं - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद |
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कौन यहाँ खुशहाल बिरादर - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर |
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उलझे धागों को सुलझाना - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल है |
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माँ की ममता जग से न्यारी ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
माँ की ममता जग से न्यारी ! |
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माँ की याद बहुत आती है ! - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
माँ की याद बहुत आती है ! |
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कलम गहो हाथों में साथी - हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha | ||
कलम गहो हाथों में साथी |
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लिखना बाकी है - हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha | ||
शब्दों के नर्तन से शापित |
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मण्डी बनाया विश्व को - हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha | ||
लुढ़कता पत्थर शिखर से, क्यों हमें लुढ़का न देगा । |
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मदिरा ढलने पर | कविता - हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha | ||
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दीवाली का सामान - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का |
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ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
प्रस्तुत हैं ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें ! |
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हम भी काट रहे बनवास - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हम भी काट रहे बनवास |
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बाबा | हास्य कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
दूर बस्ती से बाहर |
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उसे कुछ मिला, नहीं ! - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कूड़े के ढेर से |
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भिखारी| हास्य कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
एक भिखारी दुखियारा |
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संवाद | कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
"अब तो भाजपा की सरकार आ गई ।" |
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रोहित कुमार हैप्पी के भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
रोहित कुमार हैप्पी का भजन संग्रह। |
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दो क्षणिकाएं - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
कवि |
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आज़ादी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
भोग रहे हम आज आज़ादी, किसने हमें दिलाई थी! |
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बहुत वासनाओं पर मन से - गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
बहुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर, |
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