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Literature Under This Category | ||
मैंने लिखा कुछ भी नहीं | ग़ज़ल - डॉ सुधेश | ||
मैंने लिखा कुछ भी नहीं |
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है |
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फिर तेरी याद - त्रिलोचन | ||
फिर तेरी याद जो कहीं आई |
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वसीम बरेलवी की ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा |
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भूल कर भी न बुरा करना | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
भूल कर भी न बुरा करना |
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झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं |
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तमाम घर को .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था बुरे दिनों के लिए तुमने गुल्लक्कें भर लीं, वो तितलियों को सिखाता था व्याकरण यारों- न जाने कौन चला आए वक़्त का मारा, हमेशा बात वो करता था घर बनाने की मेरे फिसलने का कारण भी है यही शायद, -ज्ञानप्रकाश विवेक |
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हो गई है पीर पर्वत-सी | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए |
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राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें - राजगोपाल सिंह | ||
राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें भी उनके गीतों व दोहों की तरह सराही गई हैं। यहाँ उनकी कुछ ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं। |
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इन चिराग़ों के | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
इन चिराग़ों के उजालों पे न जाना, पीपल |
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यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है - त्रिलोचन | ||
यह दिल क्या है देखा दिखाया हुआ है |
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खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
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मैं आपसे कहने को ही था | ग़ज़ल - शमशेर बहादुर सिंह | ||
मैं आपसे कहने को ही था, फिर आया खयाल एकायक |
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अदम गोंडवी की ग़ज़लें - अदम गोंडवी | ||
अदम गोंडवी को हिंदी ग़ज़ल में दुष्यन्त कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला शायर माना जाता है। राजनीति, लोकतंत्र और व्यवस्था पर करारा प्रहार करती अदम गोंडवी की ग़ज़लें जनमानस की आवाज हैं। यहाँ उन्हीं की कुछ गज़लों का संकलन किया जा रहा है। |
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आँख पर पट्टी रहे | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे |
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उदयभानु हंस की ग़ज़लें - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
उदयभानु हंस का ग़ज़ल संकलन |
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हमने अपने हाथों में - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है, |
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कुंअर बेचैन ग़ज़ल संग्रह - कुँअर बेचैन | ||
कुंअर बेचैन ग़ज़ल संग्रह - यहाँ डॉ० कुँअर बेचैन की बेहतरीन ग़ज़लियात संकलित की गई हैं। विश्वास है आपको यह ग़ज़ल-संग्रह पठनीय लगेगा। |
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अपना जीवन.... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
अपना जीवन निहाल कर लेते |
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निराला की ग़ज़लें - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
निराला का ग़ज़ल संग्रह - इन पृष्ठों में निराला की ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं। निराला ने विभिन्न विधाओं में साहित्य-सृजन किया है। यहाँ उनके ग़ज़ल सृजन को पाठकों के समक्ष लाते हुए हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है। |
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भगत सिंह को पसंद थी ये ग़ज़ल - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
उन्हें ये फिक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है |
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माँ | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ |
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अपना ग़म लेके | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये |
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घर से निकले .... - निदा फ़ाज़ली | ||
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे |
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परदे हटा के देखो - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar | ||
ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो, |
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कभी कभी यूं भी हमने - निदा फ़ाज़ली | ||
कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है |
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तुम्हारे जिस्म जब-जब | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
तुम्हारे जिस्म जब-जब धूप में काले पड़े होंगे |
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सुनाएँ ग़म की किसे कहानी - अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ | ||
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सूनापन रातों का | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है |
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यूँ तो मिलना-जुलना - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता है |
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चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल - अंजुम रहबर | ||
चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है, |
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झूठों ने झूठों से - राहत इंदौरी | ||
झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो |
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छोटी सी बिगड़ी बात को - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया | ||
छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग |
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सामने गुलशन नज़र आया | ग़ज़ल - डॉ सुधेश | ||
सामने गुलशन नज़र आया |
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas | ||
क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है: |
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ताज़े-ताज़े ख़्वाब | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
ताज़े-ताज़े ख़्वाब सजाये रखता है |
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किसी के दुख में .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
किसी के दुख में रो उट्ठूं कुछ ऐसी तर्जुमानी दे |
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इस नदी की धार में | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है |
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मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा |
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हिन्दू या मुस्लिम के | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए |
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सीता का हरण होगा - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
कब तक यूं बहारों में पतझड़ का चलन होगा? |
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कोई फिर कैसे.... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
कोई फिर कैसे किसी शख़्स की पहचान करे |
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भटकता हूँ दर-दर | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
भटकता हूँ दर-दर कहाँ अपना घर है |
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दर्द के पैबंद | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
मखमली चादर के नीचे दर्द के पैबंद हैं |
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
फिर नये मौसम की हम बातें करें |
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दिन में जो भी प्यारा | ग़ज़ल - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
दिन में जो भी प्यारा मंज़र लगता है |
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मैं अपनी ज़िन्दगी से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ |
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मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ |
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अजनबी नज़रों से | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
अजनबी नज़रों से अपने आप को देखा न कर |
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काजू भुने पलेट में | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में |
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सपने अगर नहीं होते | ग़ज़ल - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
मन में सपने अगर नहीं होते, |
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तुमने हाँ जिस्म तो... | ग़ज़ल - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
तुमने हाँ जिस्म तो आपस में बंटे देखे हैं |
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते |
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कुछ न किसी से कहें जनाब | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
कुछ न किसी से कहें जनाब |
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कलम इतनी घिसो, पुर तेज़--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए |
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वही टूटा हुआ दर्पण - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi | ||
वही टूटा हुआ दर्पण बराबर याद आता है |
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भरोसा इस क़दर मैंने | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
भरोसा इस क़दर मैंने तुम्हारे प्यार पर रक्खा |
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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
मौज-मस्ती के पल भी आएंगे |
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घर में ठंडे चूल्हे पर | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है |
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जी रहे हैं लोग कैसे | ग़ज़ल - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
जी रहे हैं लोग कैसे आज के वातावरण में, |
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ |
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पुराने ख़्वाब के फिर से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
पुराने ख़्वाब के फिर से नये साँचे बदलती है |
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जिस्म क्या है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये |
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काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहे |
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तुम मेरी बेघरी पे... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
तुम मेरी बेघरी पे बड़ा काम कर गए |
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दिल पे मुश्किल है.... - कुँअर बेचैन | ||
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना |
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किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकता |
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ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं |
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मुहब्बत की जगह--- | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं |
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आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख | ग़ज़ल - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख |
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जो डलहौज़ी न कर पाया | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे |
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बदलीं जो उनकी आँखें - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
बदलीं जो उनकी आँखें, इरादा बदल गया । |
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जितने पूजाघर हैं | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये |
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वो कभी दर्द का... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
वो कभी दर्द का चर्चा नहीं होने देता |
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दो-चार बार... | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
दो-चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए |
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लम्हा इक छोटा सा फिर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया |
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कलम इतनी घिसो... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए |
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किनारा वह हमसे - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' | ||
किनारा वह हमसे किये जा रहे हैं। |
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लूटकर ले जाएंगे | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
लूटकर ले जाएंगे सब देखते रह जाओगे |
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करो हम को न शर्मिंदा.. - कुँअर बेचैन | ||
करो हम को न शर्मिंदा बढ़ो आगे कहीं बाबा |
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कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते हो |
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तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है | ग़ज़ल - अदम गोंडवी | ||
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है |
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बड़े साहिब तबीयत के... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बड़े साहिब तबीयत के ज़रा नासाज़ बैठे हैं |
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मेरी औक़ात का... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
मेरी औक़ात का ऐ दोस्त शगूफ़ा न बना |
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बग़ैर बात कोई | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
बग़ैर बात कोई किसका दुख बँटाता है |
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ये सारा जिस्म झुककर - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा |
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में |
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धूप से छाँव की.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
धूप से छाँव की कहानी लिख |
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खयालों की जमीं पर... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
खयालों की जमीं पर मैं हकीकत बो के देखूंगी |
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जिस तिनके को ... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
जिस तिनके को लोगों ने बेकार कहा था |
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आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे |
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स्वप्न सब राख की... - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
स्वप्न सब राख की ढेरियाँ हो गए, |
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किसी की आँख में आँसू | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
किसी की आँख में आँसू, किसी की आँख में सपने |
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मेरे इस दिल में.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन | ||
मेरे इस दिल में क्या है क्या नहीं है |
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तू इतना कमज़ोर न हो - राजगोपाल सिंह | ||
तू इतना कमज़ोर न हो |
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अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया | ||
अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिए |
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बैठे हों जब वो पास - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans | ||
बैठे हों जब वो पास, ख़ुदा ख़ैर करे |
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ऐसे कुछ और सवालों को | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
ऐसे कुछ और सवालों को उछाला जाये |
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धरती मैया | ग़ज़ल - राजगोपाल सिंह | ||
धरती मैया जैसी माँ |
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वो मेरे घर नहीं आता - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता |
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चांद कुछ देर जो ... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
चांद कुछ देर जो खिड़की पे अटक जाता है |
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सबके अपने-अपने ग़म - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया | ||
सबके अपने-अपने ग़म |
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कोई बारिश पड़े ऐसी... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
कोई बारिश पड़े ऐसी, जो रिसते घाव धो जाए |
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बात छोटी थी... | ग़ज़ल - संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया | ||
बात छोटी थी, मगर हम अड़ गए |
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यह चिंता है | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
यह चिंता है वह चिंता है |
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बदन पे जिसके... - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
बदन पे जिसके शराफत का पैरहन देखा |
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अपनी छत को | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
अपनी छत को उनके महलों की मीनारें निगल गयीं |
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झेप अपनी मिटाने निकले हैं - विजय कुमार सिंघल | ||
झेप अपनी मिटाने निकले हैं |
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तुम्हारे पाँव के नीचे---- - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं |
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बिस्तरा है न चारपाई है - त्रिलोचन | ||
बिस्तरा है न चारपाई है |
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दुख में नीर बहा देते थे - निदा फ़ाज़ली | ||
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे |
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अब के सावन में - गोपालदास ‘नीरज’ | ||
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई |
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सफ़र में धूप तो होगी | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली | ||
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो |
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गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में |
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया । |
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एक ऐसी भी घड़ी आती है | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
एक ऐसी भी घड़ी आती है |
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दुख में भी परिचित मुखों को - त्रिलोचन | ||
दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या |
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चुप क्यों न रहूँ | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
चुप क्यों न रहूँ हाल सुनाऊँ कहाँ कहाँ |
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मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल - त्रिलोचन | ||
मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है |
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उसे यह फ़िक्र है हरदम - भगत सिंह | ||
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi | ||
कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है |
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ये जो शहतीर है | ग़ज़ल - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो |
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कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं |
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कहाँ तो तय था चराग़ाँ - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये |
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आज जो ऊँचाई पर है... - कुँअर बेचैन | ||
आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े |
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कृष्ण सुकुमार की ग़ज़लें - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar | ||
कृष्ण सुकुमार की ग़ज़लें |
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दर्द की सारी लकीरों.... | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
दर्द की सारी लकीरों को छुपाया जाएगा |
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इसको ख़ुदा बनाकर | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर |
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बड़ी नाज़ुक है डोरी | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
बड़ी नाज़ुक है डोरी साँस की यह |
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प्रेम देश का... | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
प्रेम देश का ढूंढ रहे हो गद्दारों के बीच |
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दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar | ||
दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें - इस पृष्ठ पर दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें संकलित की गई हैं। हमारा प्रयास है कि दुष्यंत कुमार की सभी उपलब्ध ग़ज़लें यहाँ सम्मिलित हों। |
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तेरे भीतर अगर नदी होगी | ग़ज़ल - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi | ||
तेरे भीतर अगर नदी होगी |
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जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है |
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प्रतिपल घूंट लहू के पीना | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
प्रतिपल घूँट लहू के पीना, |
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बात हम मस्ती में ऐसी कह गए | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
बात हम मस्ती में ऐसी कह गए, |
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सामने आईने के जाओगे - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' | ||
सामने आईने के जाओगे? |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल | ||
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल | ||
जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को |
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इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ | ग़ज़ल - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk | ||
इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ |
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डॉ सुधेश की ग़ज़लें - डॉ सुधेश | ||
डॉ सुधेश दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से हिन्दी के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त हैं। आप हिंदी में विभिन्न विधाओ में सृजन करते हैं। यहाँ आपकी ग़ज़लेंसंकलित की गई हैं। |
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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
लोग क्या से क्या न जाने हो गए |
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बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या |
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नहीं कुछ भी बताना चाहता है | ग़ज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
नहीं कुछ भी बताना चाहता है |
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हौसले मिटते नहीं - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद |
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कौन यहाँ खुशहाल बिरादर - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर |
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उलझे धागों को सुलझाना - डॉ शम्भुनाथ तिवारी | ||
उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल है |
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ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek | ||
प्रस्तुत हैं ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़लें ! |
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