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Literature Under This Category | ||
नदियाँ और समुद्र - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar | ||
एक ऋषि थे, जिनका शिष्य तीर्थाटन करके बहुत दिनों के बाद वापस आया। |
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सुधार - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai | ||
एक जनहित की संस्था में कुछ सदस्यों ने आवाज उठाई, 'संस्था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए। |
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हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
हिंदी के कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का समारोह चल रहा था। बाहर मेज पर एक पंजीकरण-पुस्तिका रखी थी। जो भी आता उसे उस पुस्तिका में हस्ताक्षर करने थे। सभी आगंतुक ऐसा कर रहे थे। मैं भी पंक्ति में खड़ा था। अपना नम्बर आने पर मैं हस्ताक्षर करने लगा तो पुस्तिका में दर्ज सैंकड़ों हिंदी कवियों, लेखकों व साहित्याकारों के हस्ताक्षरों पर मेरी दृष्टि पड़ी - एक भी हस्ताक्षर हिंदी में नहीं था। हिंदी में रचना करने वाले कवियों, लेखकों व साहित्यकारों का यह कर्म मेरी समझ से परे था। |
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बिल और दाना - रांगेय राघव | ||
एक बार एक खेत में दो चींटियां घूम रही थीं। एक ने कहा, 'बहन, सत्य क्या है ?' दूसरी ने कहा ‘सत्य? बिल और दाना !' |
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मर्द - चित्रा मुद्गल | ||
आधी रात में उठकर कहां गई थी?" |
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चुनौती - रामकुमार आत्रेय | Ramkumar Atrey | ||
वृन्दावन गया था। बाँके बिहारी के दर्शन करने के पश्चात् मन में आया कि यमुना के पवित्र जल में भी डुबकी लगाता चलूँ। पवित्र नदियों में स्नान करने का अवसर रोज-रोज थोड़े ही मिलता है। |
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परिचित | लघु-कथा - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
बस में छूट जाने के कारण, पुलिस ने उसका सामान, अपने कब्ज़े में ले लिया था। अब, किसी परिचित आदमी की ज़मानत के बाद ही, वह सामान उसे मिल सकता था। |
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प्रेमचंद की लघुकथाएं - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
प्रेमचंद के लघुकथा साहित्य की चर्चा करें तो प्रेमचंद ने लघु आकार की विभिन्न कथा-कहानियां रची हैं। इनमें से कुछ लघु-कथा के मानक पर खरी उतरती है व अन्य लघु-कहानियां कही जा सकती हैं। प्रेमचंद की लघु-कथाओं में - कश्मीरी सेब, राष्ट्र का सेवक, देवी, बंद दरवाज़ा, व बाबाजी का भोग प्रसिद्ध हैं। यह पृष्ठ प्रेमचंद की लघु-कथाओं को समर्पित है। |
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गालियां - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
एक गांव में बारात जीमने बैठी । उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ । वहग्राम के एक वृद्ध से कह बैठा, "बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहाँ इतनीतरक्की हो गई है।" |
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फंदा - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी | ||
[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा] |
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रिश्ता - चित्रा मुद्गल | ||
लगभग बाईस दिनों तक 'कोमा' में रहने के बाद जब उसे होश आया था तो जिस जीवनदायिनी को उसने अपने करीब, बहुत निकट पाया था, वे थी, मारथा मम्मी। अस्पताल के अन्य मरीजों के लिए सिस्टर मारथा। वह पुणे जा रहा था... खंडाला घाट की चढ़ाई पर अचानक वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ज़ख्मी अवस्था में नौ घंटे तक पड़े रहने के बाद एक यात्री ने अपनी गाड़ी से उसे सुसान अस्पताल में दाखिल करवाया...पूरे चार महीने बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। चलते समय वह मारथा मम्मी से लिपटकर बच्चे की तरह रोया। उन्होंने उसके माथे पर ममत्व के सैकड़ों चुंबन टांक दिए - 'गॉड ब्लेस यू माय चाइल्ड...।' डॉ कोठारी से उसने कहा भी था, ''डॉक्टर साहब ! आज अगर मैं इस अस्पताल से मैं जिंदा लौट रहा हूँ तो आपकी दवाइयों और इंजेक्शनों के बल पर नहीं, मारथा मम्मी के प्यार के बल पर। '' |
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मेजबान - खलील जिब्रान | ||
'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा। |
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गुलिस्तां की कथायें - शेख़ सादी | ||
'गुलिस्तां' शेख़ सादी की उपदेशात्मक कथाओं का संग्रह है। अधिकतर उपदेश-कथाएँ शुष्क मानी जाती हैं लेकिन सादी ने ये उपदेश बड़े सरस व सुबोध ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। सादी की कथा-प्रस्तुति स्वयं उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है। वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं कि आप मंत्र-मुग्ध हो जाएँ। |
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उत्तम उपासना - शेख़ सादी | ||
एक अत्याचारी बादशाह ने किसी साधु से पूछा कि मेरे लिए कौन-सी उपासना उत्तम है? |
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मूर्ति - खलील जिब्रान | ||
दूर पर्वत की तलहटी में एक आदमी रहता था। उसके पास प्राचीन कलाकारों की बनाई हुई एक मूर्ति थी, जो उसके द्वार पर औंधी पड़ी रहती थी। उसे उसका कोई गुण मालूम न था। |
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इतिहास गवाह है - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
उसकी निगाह अलमारी पर गई, तो देखा, रवि ने उसकी सारी किताबों तथा कई दूसरी ज़रूरी चीजों को, बेतरह एक ओर खिसका कर, वहां अपना बस्ता जँचा दिया है। उसे बच्चे की इस हरकत पर ग़ुस्सा तो नहीं आया, पर पूछ लिया, "रवि महाशय, तुमने मेरी चीज़ें उधर क्यों खिसका दी हैं?" |
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ज़हर की जड़ें - बलराम अग्रवाल | ||
दफ़्तर से लौटकर मैं अभी खाना खाने के लिए बैठा ही था कि डॉली ने रोना शुरू कर दिया। |
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उलाहना - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto | ||
"देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।" |
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जयशंकर प्रसाद की लघुकथाएं - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
जयशंकर प्रसाद की अनेक लघु गद्य रचनाएं हैं जो लघुकथाएं ही कही जयशंकर प्रसाद की अनेक लघु गद्य रचनाएं हैं जो लघुकथाएं ही कही जाएंगी। उस समय लघुकथा अस्तित्व में नहीं थी यथा इन्हें लघुकथा परिभाषित नहीं किया गया। आज जब लघुकथा की विधा पर शोध हो रहा है तो जयशंकर प्रसाद की इन लघु रचनाओं को भी 'हिन्दी की पहली लघुकथा' की दौड़ में सम्मिलित किया गया है। निसंदेह जब 'पर्सड ने इन रचनाओं की लिखा तो उस समय इन्हें 'लघुकथा' का नाम देना संभव नहीं था। |
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संस्कृति - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai | ||
भूखा आदमी सड़क के किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुँचा और उसे दे ही रहा था कि एक दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था। |
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पानी की जाति - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
बी.ए. की परीक्षा देने वह लाहौर गया था। उन दिनों स्वास्थ्य बहुत ख़राब था। सोचा, प्रसिद्ध डॉ॰ विश्वनाथ से मिलता चलूँ। कृष्णनगर से वे बहुत दूर रहे थे। सितम्बर का महीना था और मलेरिया उन दिनों यौवन पर था। वह भी उसके मोहचक्र में फँस गया। जिस दिन डॉ॰ विश्वनाथ से मिलना था, ज्वर काफी तेज़ था। स्वभाव के अनुसार वह पैदल ही चल पड़ा, लेकिन मार्ग में तबीयत इतनी बिगड़ी कि चलना दूभर हो गया। प्यास के कारण, प्राण कंठ को आने लगे। आसपास देखा, मुसलमानों की बस्ती थी। कुछ दूर और चला, परन्तु अब आगे बढ़ने का अर्थ ख़तरनाक हो सकता था। साहस करके वह एक छोटी-सी दुकान में घुस गया। गांधी टोपी और धोती पहने हुए था। |
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नैतिकता का बोध - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay | ||
एक यात्री ने दूसरे से कहा, "भाई जरा हमको भी बैठने दो।" |
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फिल्म - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
फिल्म चल रही थी। जो व्यक्ति अभिनय कर रहा था, न भाव उसके थे, न स्वर और संगीत, यहाँ तक कि फिल्म की पटकथा और संवाद भी किसी और के लिखे हुए थे तथा उसे निर्देशित भी कोई और ही कर रहा था। |
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सैलाब | लघुकथा - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी | ||
पिता की मृत्यु के बाद के सारे कार्य संपन्न हो चुके थे। अब तेरहवीं होनी थी और अगले दिन मुझे नौकरी पर वापस ग्वालियर रवाना हो जाना था.. बस एक ही डर बार बार मुझे बुरी तरह परेशान कर रहा था और उस दृश्य की कल्पना मात्र से सहम उठता था मैं.. और ये दृश्य था मेरी इस बार की विदाई का ..जब दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो..हर बार ग्वालियर रवाना होने के वक्त माँ फूटफूटकर रोने लगती थीं.. और मैं दो तीन दिन अवसाद मे रहता था..मोबाइल भी नहीं थे उन दिनों..। यूं भी कोई भी रिश्तेदार आता तो बातचीत के दौरान माँ के आँसू ज़रूर निकलते। |
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सिलेंडर - गिरीश पंकज | ||
भयानक महामारी के कारण ऑक्सीजन सिलेंडर की ज़रूरत पड़ रही थी। आपदा को कमाई का ज़बरदस्त अवसर समझ कर उसने निर्धारित दर से तीन-चार गुना अधिक कीमत में सिलेंडर बेचना शुरू कर दिया। हालत यह हो गई कि दुकान का अंतिम सिलेंडर भी उसने तगड़ी कीमत पर बेच डाला और बहुत प्रसन्न हुआ। मगर अचानक सिलेंडर भरवाने का काम रुक गया क्योंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति ही नहीं हो पा रही थी । तभी उसे पता चला कि उसकी माँ संक्रमित हो गई और उन्हें ऑक्सीजन की सख्त जरूरत है। लेकिन अब बेटे के पास सिलेंडर ही नहीं था। उसने यहां-वहां संपर्क किया। मनचाही कीमत भी देनी चाही, लेकिन व्यवस्था न हो सकी। |
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भूगोल | लघु-कथा - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
एक शिक्षक को अपने इंस्पेक्टर के दौरे का भय हुआ और वह क्लास को भूगोल रटाने लगा। कहने लगा कि पृथ्वी गोल है । यदि इंस्पेक्टर पूछे कि पृथ्वी का आकार कैसा है और तुम्हें याद न हो तो मैं सुंघनी की डिबिया दिखाऊंगा, उसे देखकर उत्तर देना। गुरु जी की डिबिया गोल थी । |
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सोनू की बंदूक - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी | ||
सोनू की बंदूक उस तरह की बंदूक नहीं थी जैसी घर घर में बच्चे प्लास्टिक या लोहे की बंदूक से खेलते रहते हैं..। दरअसल सोनू अपनी दोनों हथेलियों को आपस मे गूंथकर दो उंगलियां बंदूक की नाल की तरह सामने रखकर जब ठॉंय करता तो देखने वाला उसकी इस अदा को देखता ही रह जाता..। उसकी इसी प्यारी अदा को देखने के लिए उसके चाचा और दूसरे घरवाले सोनू को जानबूझकर छेड़ते ताकि सोनू अपनी बंदूक से ठायँ करे। जब ठायँ करने पर सामने वाला अपने सीने या पेट पर हाथ रखकर हाय करता या लड़खड़ाता तो सोनू अपनी जीत पर खूब खिलखिलाकर हँसता। सोनू की बंदूक की प्रतिष्ठा अड़ोस पड़ोस और मोहल्ले मे भी पहुंच गयी थी। सोनू चबूतरे पर होता तो मोहल्ले वाले भी उसे छेड़ कर ठॉयँ का मज़ा लेते और लड़खड़ाकर गिरने का नाटक करते। अब सोनू को अपनी बंदूक की मारक क्षमता पर पूरा भरोसा हो गया था। |
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सुखद समाचार - शेख़ सादी | ||
एक अरब बादशाह बीमार था। उसके जीने की कोई आशा न थी। वैद्यों ने जवाब दे दिया था। इन्हीं दिनों एक सवार ने आकर उसे किसी किले की फतह का सुखद समाचार सुनाया। बादशाह ने लंबी सांस लेकर कहा, 'यह ख़बर मेरे लिए नहीं, मेरे उत्तराधिकारियों के लिए सुखदायक हो सकती है।' |
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प्रसाद - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
मधुप अभी किसलय-शय्या पर, मकरन्द-मदिरा पान किये सो रहे थे। सुन्दरी के मुख-मण्डल पर प्रस्वेद बिन्दु के समान फूलों के ओस अभी सूखने न पाये थे। अरुण की स्वर्ण-किरणों ने उन्हें गरमी न पहुँचायी थी। फूल कुछ खिल चुके थे! परन्तु थे अर्ध-विकसित। ऐसे सौरभपूर्ण सुमन सवेरे ही जाकर उपवन से चुन लिये थे। पर्ण-पुट का उन्हें पवित्र वेष्ठन देकर अञ्चल में छिपाये हुए सरला देव-मन्दिर में पहुँची। घण्टा अपने दम्भ का घोर नाद कर रहा था। चन्दन और केसर की चहल-पहल हो रही थी। अगुरु-धूप-गन्ध से तोरण और प्राचीर परिपूर्ण था। स्थान-स्थान पर स्वर्ण-शृंगार और रजत के नैवेद्य-पात्र, बड़ी-बड़ी आरतियाँ, फूल-चंगेर सजाये हुए धरे थे। देव-प्रतिमा रत्न-आभूषणों से लदी हुई थी। |
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दो फ़कीर - शेख़ सादी | ||
दो फ़कीर थे। उनकी आपस में गहरी दोस्ती थी पर दोनों की शक्ल-सूरत और खान-पान में बड़ा अन्तर था। एक मोटा-मुस्टंड़ा था व दिन में कई-कई बार खाने पर हाथ साफ़ करता था। पर दूसरा कई-कई दिन उपवास करता था, इसलिए वह दुबला-पतला था। |
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गुदड़ी में लाल - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad | ||
दीर्घ निश्वासों का क्रीड़ा-स्थल, गर्म-गर्म आँसुओं का फूटा हुआ पात्र! कराल काल की सारंगी, एक बुढिय़ा का जीर्ण कंकाल, जिसमें अभिमान के लय में करुणा की रागिनी बजा करती है। |
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जीवन-रेखा - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
छुट्टियाँ बिताकर, चलते समय उसने, बैठक की ड्योढ़ी पर गुमसुम बैठे काका के चरण छुए, तो काका ने, आशीर्वाद के लिए अपना हाथ, उसके सिर पर रख दिया-“आच्छ्यो बेट्टा ! हुंस्यारी सीं जइए। मैं तो इब तुन्नै जाता नै बी ना देख सकूँ, आँख फूटगी।” |
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निंदा - शेख़ सादी | ||
शेख़ सादी बाल्यावस्था में अपने पिता के साथ मक्का जा रहे थे। सादी सारी रात कुरान पढ़ते रहे। कई आदमी उनके पास खर्राटे ले रहे थे। सादी ने अपने पिता से कहा, इन सोने वालों को देखिये, कितने आलसी हैं! नमाज़ पढ़ना तो दूर रहा कोई सुबह उठता तक नहीं। |
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शांति और युद्ध - खलील जिब्रान | ||
तीन कुत्ते धूप में बैठे गप्प लड़ा रहे थे। |
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छोटा-सा लड़का - श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी | Shradhanjali Hajgaybee-Beeharry | ||
शून्यता में झाँकती, पथराई आँखें, प्रश्नों को सुलझाने में लगी थीं । सन्नाटा इतना कि दिल को कचोट लेती। हल्की-सी गर्म हवा बह रही थी। ऐसे ही बीती थी वो शाम, घर के पीछे वाले बरामदे में बैठे हुए, मैं और भाई। और दोनों चुप... मानो कोई जीव है ही नहीं। |
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लेनदेन - खलील जिब्रान | ||
एक आदमी था। उसके पास सुइयों का इतना भण्डार था कि एक घाटी उनसे भर जाए। |
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क्रमशः प्रगति - शरद जोशी | Sharad Joshi | ||
खरगोश का एक जोड़ा था, जिनके पाँच बच्चे थे। |
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सांप - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
तड़ातड़ तीन लाठियाँ पड़ीं, सांप तड़फकर वहीं ढेर हो गया। |
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बंद दरवाजा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से। वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी। |
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वेश - खलील जिब्रान | ||
एक दिन समुद्र के किनारे सौन्दर्य की देवी की भेंट कुरूपता की देवी से हुई। एक ने दूसरी से कहा, ‘‘आओ, समुद्र में स्नान करें।'' |
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राष्ट्र का सेवक - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
राष्ट्र के सेवक ने कहा- देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सलूक, पतितों के साथ बराबरी का बर्ताव। दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीच नहीं, कोई ऊँच नहीं। |
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वेबिनार | लघुकथा - डॉ. वंदना मुकेश | इंग्लैंड | ||
कोरोना महामारी ने सारी जीवन-शैली ही बदल डाली। विद्याजी को ऊपर से निर्देश मिला है कक्षाएँ ऑनलाइन करवाई जाएँ। चार महीने के लॉकडाउन के बाद कॉलेज खुले और ऊपर से यह आदेश। दो साल बचे हैं उनकी सेवा-निवृत्ति के लेकिन अब ऑनलाईन कक्षाओं और कार्यक्रमों के आयोजन की बात सुनकर उन्हें पसीने छूट गये। जिंदगी भर कक्षा में आमने–सामने पढ़ाया, अब अंत में यह क्या आफत आ खड़ी हुई? अपने विभाग में हर वर्ष वे अनेक कार्यक्रम आयोजित करवाती थीं लेकिन इस वर्ष हिंदी दिवस पर ऑनलाईन कार्यक्रम के फरमान ने उनकी नींद हराम कर दी थी। उनसे तो माउस तक नहीं पकड़ा जाता और यह 'कर्सर’ खुद चूहे की तरह कूद- कूद कर भाग जाता है। भला हो उनके पड़ोसी शर्माजी और उनकी इंजीनियर बेटी प्रीता का। वह लॉकडॉउन के कारण ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रही थी। उसने विद्या जी को काफी बार समझाया लेकिन जब विद्या जी ने हाथ खड़े कर दिये तो उसने विद्याजी के निर्देशानुसार कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की और तुरंत गूगल मीट पर सभी लोगों को सूचना भेज दी। |
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दो विद्वान - खलील जिब्रान | ||
एक बार एक प्राचीन नगर में दो विद्वान रहते थे। दोनों बड़े विद्वान थे लेकिन दोनों के बीच बड़ा मनमुटाव था। वे एक-दूसरे के ज्ञान को कमतर आँकने में लगे रहते। |
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देवी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खड़ा था। सामने अमीनुद्दौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था । सिर्फ एक औरत एक तकियादार बेंच पर बैठी हुई थी । पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फ़कीर खड़ा राहगीरों को दुआयें दे रहा था - खुदा और रसूल का वास्ता... राम और भगवान का वास्ता - इस अन्धे पर रहम करो । |
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कश्मीरी सेब | लघु-कथा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार,गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टमाटो को पहले कोई सेंत में भी न पूछता था। अब टमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है। गाजर भी पहले ग़रीबों के पेट भरने की चीज थी। अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी बहुत विटामिन हैं, इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है। और सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज खाइए तो आपको डाक्टरों की जरूरत न रहेगी। डाक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं। सेब तो रस और स्वाद में अगर आम से बढक़र नहीं है तो घटकर भी नहीं। हाँ, बनारस के लंगड़े और लखनऊ के दसहरी और बम्बई के अल्फाँसो की बात दूसरी है। उनके टक्कर का फल तो संसार में दूसरा नहीं है मगर; मगर उनमें विटामिन और प्रोटीन है या नहीं, है तो काफी है या नहीं, इन विषयों पर अभी किसी पश्चिमी डाक्टर की व्यवस्था देखने में नहीं आयी। सेब को यह व्यवस्था मिल चुकी है। अब वह केवल स्वाद की चीज नहीं है, उसमें गुण भी है। हमने दूकानदार से मोल-भाव किया और आध सेर सेब माँगे। |
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बँटवारा - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto | ||
एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक चुना। जब उसे उठाने लगा तो संदूक अपनी जगह से एक इंच न हिला। |
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बाबाजी का भोग - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
रामधन अहीर के द्वार एक साधू आकर बोला- बच्चा तेरा कल्याण हो, कुछ साधू पर श्रद्धा कर। रामधन ने जाकर स्त्री से कहा- साधू द्वार पर आए हैं, उन्हें कुछ दे दे। |
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यह भी नशा, वह भी नशा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
होली के दिन राय साहब पण्डित घसीटेलाल की बारहदरी में भंग छन रही थी कि सहसा मालूम हुआ, जिलाधीश मिस्टर बुल आ रहे हैं। बुल साहब बहुत ही मिलनसार आदमी थे और अभी हाल ही में विलायत से आये थे। भारतीय रीति-नीति के जिज्ञासु थे, बहुधा मेले-ठेलों में जाते थे। शायद इस विषय पर कोई बड़ी किताब लिख रहे थे। उनकी खबर पाते ही यहाँ बड़ी खलबली मच गयी। सब-के-सब नंग-धड़ंग, मूसरचन्द बने भंग छान रहे थे। कौन जानता था कि इस वक्त साहब आएंगे। फुर-से भागे, कोई ऊपर जा छिपा, कोई घर में भागा, पर बिचारे राय साहब जहाँ के तहाँ निश्चल बैठे रह गये। आधा घण्टे में तो आप काँखकर उठते थे और घण्टे भर में एक कदम रखते थे, इस भगदड़ में कैसे भागते। जब देखा कि अब प्राण बचने का कोई उपाय नहीं है, तो ऐसा मुँह बना लिया मानो वह जान बूझकर इस स्वदेशी ठाट से साहब का स्वागत करने को बैठे हैं। साहब ने बरामदे में आते ही कहा-हलो राय साहब, आज तो आपका होली है? |
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पाठशाला - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
एक पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुंह पीला था, आँखें सफेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी। प्रश्न पूछे जा रहे थे। उनका वह उत्तर दे रहा था। धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण-रक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया। |
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जाति - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai | ||
कारख़ाना खुला। कर्मचारियों के लिए बस्ती बन गई। |
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गुरु मंत्र - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
‘‘घर के कलह और निमंत्रणों के अभाव से पंडित चिंतामणिजी के चित्त में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने सन्यास ले लिया तो उनके परम मित्र पंडित मोटेराम शास्त्रीजी ने उपदेश दिया--मित्र, हमारा अच्छे-अच्छे साधु-महात्माओं से सत्संग रहा है। यह जब किसी भलेमानस के द्वार पर जाते हैं तो गिड़-गिड़ाकर हाथ नहीं फैलाते और झूठ-मूठ आशीर्वाद नहीं देने लगते कि ‘नारायण तुम्हारा चोला मस्त रखे, तुम सदा सुखी रहो।' यह तो भिखारियों का दस्तूर है। संत लोग द्वार पर जाते ही कड़ककर हाँक लगाते हैं, जिससे घर के लोग चौंक पड़ें और उत्सुक होकर द्वार की ओर दौड़ें। मुझे दो-चार वाणियां मालूम हैं, जो चाहे ग्रहण कर लो। गुदड़ी बाबा कहा करते थे--‘मरें तो पांचों मरें।' यह ललकार सुनते ही लोग उनके पैरों पर गिर पड़ते थे। सिद्ध बाबा की हाँक बहुत उत्तम थी--‘खाओ, पीओ, चैन करो, पहनो गहना, पर बाबाजी के सोटे से डरते रहना।' नंगा बाबा कहा करते थे--‘दे तो दे, नहीं दिला दे, खिला दे, पिला दे, सुला दे।' यह समझ लो कि तुम्हारा आदर-सत्कार बहुत कुछ तुम्हारी हाँक के ऊपर है। और क्या कहूं। भूलना मत। हम और तुम बहुत दिनों साथ रहे, सैकड़ों भोज साथ खाए। जिस नेवते में हम और तुम दोनों पहुँचते थे, तो लाग-डांट से एक-दो पत्तल और उड़ा ले जाते थे। तुम्हारे बिना अब मेरा रंग न जमेगा, ईश्वर तुम्हें सदा सुगंधित वस्तु दिखाए। |
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जादू | प्रेमचंद की लघुकथा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
नीला--तुमने उसे क्यों लिखा? |
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हत्या - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
चौराहे पर चर्चा चल रही थी। पूर्णिमा-हत्याकांड के सभी आरोपी बरी हो गये लेकिन प्रश्न था कि जब पूर्व-आरोपियों ने उसे नहीं मारा, तो फिर मारा किसने? |
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पाठशाला | चंद्रधर शर्मा गुलेरी - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
एक पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के कोल्हू की तरह दिखाया जा रहा था। उसका मुंह पीला था, आँखें सफेद थीं, दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी। प्रश्न पूछे जा रहे थे। उनका वह उत्तर दे रहा था। धर्म के दस लक्षण सुना गया, नौ रसों के उदाहरण दे गया। पानी के चार डिग्री के नीचे शीतलता में फैल जाने के कारण और उससे मछलियों की प्राण-रक्षा को समझा गया, चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान दे गया, अभाव को पदार्थ मानने, न मानने का शास्त्रार्थ कर गया और इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनामा सुना गया। |
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कर्तव्यबोध - शरद जोशी | Sharad Joshi | ||
दोपहर के ढाई बज रहे थे। |
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चंद्रधर शर्मा गुलेरी की लघु कथाएं - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri | ||
चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' को उनकी कहानी, 'उसने कहा था' के लिए जाना जाता है। गुलेरी ने कुछ लघु-कथाएं भी लिखी जिन्हें हम यहाँ संकलित कर रहे हैं: |
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ख़ुशामद | लघुकथा - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूक़ा तुम्हें क्यों नहीं मिली।' |
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अंगहीन धनी - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra | ||
एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा। |
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हिंदी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'देखो, 14 सितम्बर को हिंदी डे है और उस दिन हमें हिंदी लेंगुएज ही यूज़ करनी चाहिए। अंडरस्टैंड?' सरकारी अधिकारी ने आदेश देते हुए कहा। |
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मैं हिंदोस्तान हूँ | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मैंने बड़ी हैरत से उसे देखा। उसका सारा बदन लहूलुहान था व बदन से मानों आग की लपटें निकल रही थीं। मैंने उत्सुकतावश पूछा, "तुम्हें क्या हुआ है?" |
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इश्तहार | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
"मेरा बहुत सा क़ीमती सामान जिसमें शांति, सद्भाव, राष्ट्र-प्रेम, ईमानदारी, सदाचार आदि शामिल हैं - कहीं गुम गया है। जिस किसी सज्जन को यह सामान मिले, कृपया मुझ तक पहुँचाने का कष्ट करे। |
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मदर'स डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'आप 'मदर'स डे' को क्या करते हैं?' |
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जूता - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto | ||
हजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा। लाठियां बरसाई गईं। ईंटें और पत्थर फेंके गए। एक ने मुंह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने बहुत-से पुराने जूते जमा किए और उनका हार बनाकर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा, मगर पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं। जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख़्मी हो गया। चुनांचे मरहम-पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम अस्पताल भेज दिया गया। |
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दिशा और दशा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मुझे भारत में आए हुए कई महीने हो गए थे और अब तो वापिस न्यूजीलैड लौटने का समय हो गया था। |
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लायक बच्चे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
अकेली माँ ने उन पाँच बच्चों की परवरिश करके उन्हें लायक बनाया। पांचों अपने पाँवों पर खड़े थे। |
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उलझन | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'ए फॉर एप्पल, बी फॉर बैट' एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी। |
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दूसरा रुख - लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
चित्रकार दोस्त ने भेंट स्वरूप एक तस्वीर दी। आवरण हटा कर देखा तो निहायत ख़ुशी हुई, तस्वीर भारत माता की थी। माँ-सी सुन्दर, भोली सूरत, अधरों पर मुसकान, कंठ में सुशोभित ज़ेवरात, मस्तक को और ऊँचा करता हुआ मुकुट व हाथ में तिरंगा। |
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स्वतंत्रता-दिवस | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
महानगर का एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार। |
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दीवाली - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
पखवाड़े बाद दीवाली थी, सारा शहर दीवाली के स्वागत में रोशनी से झिलमिला रहा था। कहीं चीनी मिट्टी के बर्तन बिक रहे थे तो कहीं मिठाई की दुकानों से आने वाली मन-भावन सुगंध लालायित कर रही थी। |
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दोराहा | Doraha - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मैं दोराहे के बीच खड़ा था और वे दोनों मुझे डसने को तैयार थे। एक तरफ सांप था और दूसरी तरफ आदमी। |
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कहावत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
- कैंची मत बजाओ। |
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लेखक - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
जेबकतरे ने उसकी जेब काटी तो लगा था कि काफी माल हाथ लगा है, भारी जान पड़ती थी। देखा तो सब के सब काग़ज़ निकले। काग़ज़ों पर नजर डाली तो तीन कविताएँ, एक कहानी और दो लघु-कथाएं थीं। नोट एक भी न था। |
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पागल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
शहर में सब जानते थे कि वो पागल है। जब-तब भाषण देने लगता, किसी पुलिस वाले को देख लेता तो कहने लगता, 'ये ख़ाकी वर्दी में लुटेरे हैं। ये रक्षक नहीं भक्षक हैं। गरीब जनता को लूटते हैं। सरकार ने इन्हें लूटने का लाइसेंस दे रखा है। ये लुटेरे पकड़ेंगे, चोर पकड़ेंगे...., ये तो खुद चोर हैं, लुटेरे हैं ये! |
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पारस पत्थर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
'एक बहुत गरीब आदमी था। अचानक उसे कहीं से पारस-पत्थर मिल गया। बस फिर क्या था! वह किसी भी लोहे की वस्तु को छूकर सोना बना देता। देखते ही देखते वह बहुत धनवान बन गया।' बूढ़ी दादी माँ अक्सर 'पारस पत्थर' वाली कहानी सुनाया करती थी। वह कब का बचपन की दहलीज लांघ कर जवानी में प्रवेश कर चुका था किंतु जब-तब किसी न किसी से पूछता रहता, "आपने पारस पत्थर देखा है?" |
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विडम्बना | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड | ||
मेरे एक मित्र को जब भी अवसर मिलता है अँग्रेज़ी भाषा व अँग्रेज़ी बोलने वालों को आड़े हाथों लेना नहीं भूलते । |
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रामकुमार अत्रेय की लघुकथाएं - रामकुमार आत्रेय | Ramkumar Atrey | ||
रामकुमार आत्रेय हिंदी लघु-कथा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएं दैनिकपत्रों व पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। हम यहाँ आत्रेयजी की लघु-कथाएं प्रकाशित कर रहे हैं और हमें विश्वास है कि पाठकों को इनकी रचनाएं सदैव की भांति पसंद आएंगी। |
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यह भी नशा, वह भी नशा | लघुकथा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
होली के दिन राय साहब पण्डित घसीटेलाल की बारहदरी में भंग छन रही थी कि सहसा मालूम हुआ, जिलाधीश मिस्टर बुल आ रहे हैं। बुल साहब बहुत ही मिलनसार आदमी थे और अभी हाल ही में विलायत से आये थे। भारतीय रीति-नीति के जिज्ञासु थे, बहुधा मेले-ठेलों में जाते थे। शायद इस विषय पर कोई बड़ी किताब लिख रहे थे। उनकी खबर पाते ही यहाँ बड़ी खलबली मच गयी। सब-के-सब नंग-धड़ंग, मूसरचन्द बने भंग छान रहे थे। कौन जानता था कि इस वक्त साहब आएंगे। फुर-से भागे, कोई ऊपर जा छिपा, कोई घर में भागा, पर बिचारे राय साहब जहाँ के तहाँ निश्चल बैठे रह गये। आधा घण्टे में तो आप काँखकर उठते थे और घण्टे भर में एक कदम रखते थे, इस भगदड़ में कैसे भागते। जब देखा कि अब प्राण बचने का कोई उपाय नहीं है, तो ऐसा मुँह बना लिया मानो वह जान बूझकर इस स्वदेशी ठाट से साहब का स्वागत करने को बैठे हैं। साहब ने बरामदे में आते ही कहा-हलो राय साहब, आज तो आपका होली है? |
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राष्ट्र का सेवक | लघु-कथा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand | ||
राष्ट्र के सेवक ने कहा- देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सलूक, पतितों के साथ बराबरी का बर्ताव। दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीच नहीं, कोई ऊँच नहीं। |
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डा रामनिवास मानव की लघु-कथाएं - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
डॉ० 'मानव' लघु-कथा के अतिरिक्त दोहा, बालकाव्य, हाइकु इत्यादि विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं। उनकी कुछ लघु-कथाएं यहाँ संकलित की जा रही हैं। पढ़िए डा 'मानव' की लघु-कथाएं। |
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नियति - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav | ||
चक्की के पाट का चनों के प्रति व्यवहार बड़ा निर्मम था। अतः एक दिन कुछ चनों ने मिलकर उसे फोड़ दिया। चने चाहते थे कि पाट ऐसा हो, जो उनके दर्द को समझे और उनकी भावनाओं की कद्र करे। |
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स्वामी का पता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore | ||
गंगा जी के किनारे, उस निर्जन स्थान में जहाँ लोग मुर्दे जलाते हैं, अपने विचारों में तल्लीन कवि तुलसीदास घूम रहे थे। |
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मेरी बड़ाई | लघुकथा - सुदर्शन | Sudershan | ||
जिस दिन मैंने मोटरकार ख़रीदी, और उसमें बैठकर बाज़ार से गुज़रा, उस दिन मुझे ख्याल आया, "यह पैदल चलने वाले लोग बेहद छोटे हैं, और मैं बहुत बड़ा हूँ।" |
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भारी नहीं, भाई है | लघुकथा - सुदर्शन | Sudershan | ||
मैंने कांगड़े की घाटी में एक लड़की को देखा, जो चार साल की थी, और दुबली-पतली थी। और एक लड़के को देखा, जो पांच साल का था, और मोटा ताज़ा था। यह लड़की उस लड़के को उठाए हुए थी, और चल रही थी। |
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फ़र्क | लघुकथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
उस दिन उसके मन में इच्छा हुई कि भारत और पाक के बीच की सीमारेखा को देखा जाए, जो कभी एक देश था, वह अब दो होकर कैसा लगता है? दो थे तो दोनों एक-दूसरे के प्रति शंकालु थे। दोनों ओर पहरा था। बीच में कुछ भूमि होती है जिस पर किसी का अधिकार नहीं होता। दोनों उस पर खड़े हो सकते हैं। वह वहीं खड़ा था, लेकिन अकेला नहीं था-पत्नी थी और थे अठारह सशस्त्र सैनिक और उनका कमाण्डर भी। दूसरे देश के सैनिकों के सामने वे उसे अकेला कैसे छोड़ सकते थे! इतना ही नहीं, कमाण्डर ने उसके कान में कहा, "उधर के सैनिक आपको चाय के लिए बुला सकते हैं, जाइएगा नहीं। पता नहीं क्या हो जाए? आपकी पत्नी साथ में है और फिर कल हमने उनके छह तस्कर मार डाले थे।" |
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ईश्वर का चेहरा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
प्रभा जानती है कि धरती पर उसकी छुट्टी समाप्त हो गयी है। उसे दुख नहीं है। वह तो चाहती है कि जल्दी से जल्दी अपने असली घर जाए। उसी के वार्ड में एक मुस्लिम खातून भी उसी रोग से पीड़ित है। न जाने क्यों वह अक्सर प्रभा के पास आ बैठती है। सुख-दुख की बातें करती है। नई-नई पौष्टिक दवाइयां, फल तथा अण्डे आदि खाने की सलाह देती है। प्रभा सुनती है, मुस्करा देती है। सबीना बार-बार जोर देकर कहती है, ''ना बहन! मैंने सुना है यह दवा खाने से बहुत फायदा होता है और अमुक चीज खाने से तो तुम्हारे से खराब हालत वाले मरीज भी खुदा के घर से लौट आए हैं।'' |
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अन्तर दो यात्राओं का - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
अचानक देखता हूँ कि मेरी एक्सप्रेस गाड़ी जहाँ नहीं रुकनी थी वहाँ रुक गयी है। उधर से आने वाली मेल देर से चल रही है। उसे जाने देना होगा। कुछ ही देर बाद वह गाड़ी धड़ाधड़ दौड़ती हुई आयी और निकलती चली गयी लेकिन उसी अवधि में प्लेटफार्म के उस ओर आतंक और हताशा का सम्मिलित स्वर उठा। कुछ लोग इधर-उधर भागे फिर कोई बच्चा बिलख-बिलख कर रोने लगा। |
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वह बच्चा थोड़े ही न था - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
वह एक लेखक था। उसके कमरे में दिन-रात बिजली जलती थी। एक दिन क्या हुआ कि बिजली रानी रूठ गई। |
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मुक्ति - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar | ||
उसे रह-रहकर बीते दिनों की याद आ जाती थी। उसका गला भर आता था और आँखों से आँसू टपकने लगते थे। उसे मुक्त हुए अभी बहुत दिन नहीं बीते थे। उसकी मुक्ति किसी एक की मुक्ति नहीं, बल्कि सारी जाति की मुक्ति थी। |
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पहचान | लघु-कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊंगा!' यह एक ने कहा। |
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जैसी करनी वैसी भरनी | बोध -कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह। |
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ग़नीमत हुई | बोध -कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा। |
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सेठजी | लघु-कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
''महात्मा गान्धी आ रहे हैं, उनकी 'पर्स' के लिए कुछ आप भी दीजिये सेठजी!'' |
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आहुति | लघु-कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया। |
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तीन दृष्टियाँ | बोधकथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
चंपू, गोकुल और वंशी एक महोत्सव में गये। |
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बड़ा और छोटा | बोधकथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | ||
विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।" |
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करामात - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto | ||
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए। |
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ख़बरदार | लघु-कथा - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto | ||
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए। |
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शुभ दीपावली - अनिल चन्द्रा | Anil Chandra | ||
जितेन्द्र राणा को जब टेलीफोन पर बताया गया कि उसका बेटा गुवाहाटी में बीमार है ओर उसके जीने की कोई आशा नहीं तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह कहाँ से इतना पैसा जुटाए कि वह और उसकी पली वहाँ जा सके। जितेन्द्र राणा ने जीवन-भर ट्रक ड्राइवर के रूप में काम किया था, लेकिन वह कभी कोई बचत नहीं कर पाया था। अपने अहंकार को वश में करते हुए उसने अपने कुछ निकटतम सम्बंधियों को सहायता के लिए कहा, लेकिन उनकी भी हालत उससे कुछ अच्छी नहीं थी। सो लज्जित और निराश होकर जितेन्द्र राणा अपने घर से एक किलोमीटर दूर एक टेलीफोन बूथ पर गया और उसने मालिक से कहा, ''मेरा बेटा काफी बीमार है और मेरे पास नकद देने के लिए पैसा नहीं है। क्या आप मुझ पर भरोसा करके मुझे गुवाहाटी फोन करने देंगे? मैं इसके पैसे बाद में दे दूंगा।'' |
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ओछी मानसिकता - मीरा जैन - भारत-दर्शन संकलन | Collections | ||
ढेर सारे माटी के दीयों को देखते ही सावित्री पति पर बरस पड़ी, ‘दीपावली में वैसे ही मुझे घर के काम से फुर्सत नहीं है और ऊपर से ये ढेर सारे दीये उठा लाए। अपनी इस ओछी मानसिकता को त्याग दो कि ज्यादा दीपक जलाने से ज्यादा लक्ष्मी आएगी। अरे, जितना किस्मत में होगा उतना ही मिलेगा। मैं आखिर कब तक खटती फिरूं?' |
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