सफ़र की पिछली रात
हरिया को नींद नहीं आई,
उठ गया, अहले सुबह
भर लिया, सारा कपड़ा
अपनी पुरानी थैली में,
खा लिया, भात और चटनी।
माँ ने डाल दिया, बोतल में पानी
पत्नी ने बना दी रोटियाँ,
जाना है, सफ़र में आज
लगा लिया, दही का टीका,
छू लिया, बाबू जी का पैर
चल पड़ा, सफ़र की ओर।
माँ, पत्नी, बहन सड़क तक आईं
संग में आया, बेटा भी,
गाड़ी में चढ़ने से पहले
चूमा बेटा के गाल को, कई बार
पता नहीं, कितने महीने बाद
लौटेगा वह, घर-द्वार।
उधर ड्राइवर बजा रहा था
अपनी गाड़ी का हॉर्न,
जैसे ट्रेन चलने से पहले
बजाती है, जोरों से सिटी।
उदासी को छिपाता हुआ, चढ़ा बस में
एक हाथ में टिकट है,
दूसरे में गठरी है
कन्धे पर जिम्मेदारी का बोझ।
मन में भरी हैं उम्मीदें
उम्मीदों में, बच्चों की पढ़ाई
बुजुर्गों की दवाई
लेकर चला है, घर से दूर
कल पहुँचते ही, पहले की तरह
लग जाना है, उसी चौराहे पर
नून-तेल की खोज में।
-नेतलाल यादव
ई-मेल: netlaly@gmail.com