देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

मुकरियाँ  (काव्य)

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Author: गौतम कुमार “सागर”

चिपटा रहता है दिन भर वो
बिन उसके भी चैन नहीं तो
ऊंचा नीचा रहता टोन
ए सखि साजन? ना सखि फोन!

इसे जलाकर मैं भी जलती
रोटी भात इसी से मिलती
ये बैरी मिट्टी का दूल्हा
ए सखि साजन? ना सखि चूल्हा!

डार-डार औ' पात-पात की
खबरें रखे हजार बात की
मानों कोई जिन्न की बोतल
ए सखि साजन? ना सखि गूगल!

उसके बिन है जीवन मुश्किल
चलो बचाएं उसको हम मिल
जीवन की रसमय वो निशानी
ए सखि साजन? ना सखि पानी। 

-गौतम कुमार “सागर”
 ई-मेल: gsagar6@gmail.com

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