देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

भाग्य विधाता (काव्य)

Print this

Author: मोहित नेगी मुंतज़िर 

कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं,
भाग्य विधाता लोकतंत्र के सड़कों पर रात बिताते हैं।

अफ़सोस नहीं हो रहा उन्हें जो कद्दावर बन बैठे
इन्हीं के पोषित देश भूमि के जो सत्ताधर बन बैठे
इन मक्कारों के खेल में हिंदुस्तानी ऐसे ही रह जाते हैं।
भाग्य विधाता..............।

अट्टहास आकाश कर रहा, धरती धारण दुख करती
यह पवन छूकर ज़ख्मों को और अधिक पीड़ा भरती
इस दुख से दो मुक्ति हमें हे देव! तुम्हें बुलाते हैं।
भाग्य विधाता...................।

महिमा मंडित मत करो तुम अपने कामों के नाम को
दिग्भ्रमित मत करो तुम, सीधी-सादी आवाम को
अपनी भूमि अपना राजा हाय फिर भी दुख पाते हैं
भाग्य विधाता................।

दुष्टों की चीखों से जब गूंजा धरती आसमान
धारण किया था तब तुमने ही रणचंडी का रूप महान
आज देश के क्रांतिवीरों तुम्हें शक्ति याद दिलाते हैं
भाग्य विधाता..................।

--मोहित नेगी मुंतज़िर 
  ई-मेल: mohitnegimuntazir@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश