देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

वही फिर मुझे याद... (काव्य)

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Author: ख़ुमार बाराबंकवी

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

हवाएँ चलीं और न मौजें ही उट्ठीं
अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं

क़यामत यक़ीनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं

--ख़ुमार बाराबंकवी

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