देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

बचपन बीत रहा है (काव्य)

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Author: योगेन्द्र प्रताप मौर्य

नचा रही मजबूरी यहाँ
अँगुलियों पर,
ध्यान किसी का जाता नहीं
सिसकियों पर।

इतनी कच्ची वय में कितने
काम कराती है,
दुनिया जालिम हाथों में
औजार थमाती है,
खिल पायेंगे कैसे फूल
टहनियों पर?

पेट पालने खातिर रामू
कष्ट उठाता है,
सर पर इतना बोझ रखा है
हँस कब पाता है,
लगी हुई पाबंदी इसकी
खुशियों पर?

दीवारों पर श्रम-निषेध के
पोस्टर चिपके हैं,
किंतु दुर्दशा ऐसी,इनके
चिथड़े लटके हैं,
बचपन बीत रहा है रोज
चिमनियों पर।

--योगेन्द्र प्रताप मौर्य
  ग्राम व पोस्ट-बरसठी, जनपद-जौनपुर, उ० प्र०- 222162, भारत
  ई-मेल: yogendramaurya198384@gmail.com

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