देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

डॉ दिविक रमेश की पाँच कविताएं  (काव्य)

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Author: दिविक रमेश 

दो बच्चे


दो बच्चे 

  
एक बच्चा खेल रहा है 
दूसरा 
खिला रहा है। 

एक 
ले रहा है मजा, 
दूसरा 
घर चला रहा है।


#


नहीं आया 

   
अब जो नहीं भाया तो नहीं भाया।
मतलब औरों की गिराकर अपनी लगाना
सीढ़ी।
अब जो नहीं आया तो नही आया।

#


ईंट और ईंट 

उसने ईंट को 
ईंट कहा 
और बुनियाद में चिन दिया।

उसने ईंट को 
हथियार कहा 
और 
किसी के सिर पर 
जड़ दिया।

#


ऐसी-तैसी 

कसम खाने से ही अगर
आना है यकींन 
तो ऐसी-तैसी ऐसे यकींन की। 

#

लपक ही लेता
     
आकर्षक तो बहुत हैं फल
कि लपक लूं सारे।

लपक ही लेता
अगर नहीं पढ़ी होती
दैत्यों की कहानियां, किस्से चुडैलों के
बावजूद इस शक के
कि होते भी हैं कि नहीं वे।

--दिविक रमेश 
[ बुरी खबर के बावजूद ]

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