देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

अच्छा है कि दिल पास में नहीं था

 (विविध) 
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रचनाकार:

 प्रो. राजेश कुमार

हैप्पी जी को दिल का दौरा पड़ गया, और उन्हें दो स्टंट लगवाने पड़े। हैप्पी जी विदेश में रहते हैं, इसलिए उनकी चिकित्सा देखभाल तत्काल हो गई। अगर हमारी तरह भारत में रहते, तो उन्हें चिकित्सा तक पहुँचने के लिए भी बहुत सारे स्टंट करने पड़ते हैं, और फिर आगे तो खैर भगवान ही मालिक रहता ही है।

दिल के दौरे पड़ना तो आजकल हमारी जीवन-शैली का जैसे अभिन्न अंग ही हो गया है, और अभिन्न मित्र की तरह कभी भी आ धमकता है। बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि एक तरह से यह हमारी समृद्धि का सूचक है। दिल का दौरा पड़ने से लगता है कि इंसान की कोई वकत है, कोई आलतू-फालतू आदमी नहीं है। दिल का दौरा पड़ने से आदमी की समाज में इज़्ज़त बढ़ जाती है। उधर अगर किसी इज़्ज़तदार को समय रहते दिल का दौरा न पड़े, तो फिर लोग उसकी इज़्ज़त को संदेह की नज़र से देखने लगते हैं। इसलिए हमें कोशिश करके दिल के दौरे का इंतज़ाम कर लेना चाहिए। कुछ और नहीं, तो इसका भुलावा ही लोगों में रहना चाहिए। अगर आप जुकाम के लिए भी डॉक्टर के पास जाएँ, तो आपको घोषित कर देना चाहिए कि आपको दिल का दौरा पड़ा है।

वैसे तो इस ढोंग को करने की भी कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हम लोगों ने भी इसे बुलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हम अनाप-शनाप खाते रहते हैं, घंटों बैठे-बैठे काम करते रहते हैं, लक्ष्मी (मतलब पैसे) के पीछे भागते रहते हैं, हर समय चिंता में डूबे रहते हैं, अगर कोई चिंता नहीं होती, तो इसी बात की चिंता करने लगते हैं कि आज कोई चिंता क्यों नहीं है, और अपनी नहीं तो दूसरों की चिंता करने लगते हैं। ऐसे में जैसा कि प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट कबीर दास ने कहा है कि दिल का दौरा पड़ जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए, और अगर न पड़े तभी अचरज होना चाहिए।
 
और इस जन-हितैषी काम में भला सरकार के योगदान को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, जो समय-समय पर क़ीमतें बढ़ाकर, चंदा लेकर नकली दवाएँ बिकवाकर, नकली खाद्य सामग्री को टैक्स की छूट देकर, या हिंदू-मुसलमान करके पूरा इंतज़ाम रखती है कि लोगों को एक नहीं, कई-कई दिल के दौरे पड़ते रहें। इस संबंध में उसके भोंपुओं यानी न्यूज़ चैनलों का योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता।

बहुत दिनों से हैप्पी जी से संपर्क नहीं हो रहा था। उनका फ़ोन बंद आता था, और वे संदेशों के जवाब भी नहीं दे रहे थे, बल्कि नीली रेखा न होने से पता चलता था कि वे संदेश देख भी नहीं रहे थे। ऐसा वे करते नहीं थे, इसलिए चिंता के मारे महाकवि के खुद के दिल की हालत ऊपर-नीचे हो रही थी। फिर हैप्पी जी का संदेश आया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया है, और अब स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। मज़ाकिया स्वभाव के हैं, इसलिए उन्होंने कहा कि अच्छा है कि दिल मेरे पास में नहीं था, तो दिल के दौरे का बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़ा।

जब महाकवि ने उनसे पूछा, "भाई आखिर तुम्हें दिल का दौरा क्यों पड़ा? तुम्हारा तो खाने-पीने पर भी नियंत्रण है और शरीर की खूब देखभाल भी करते रहते हो।"

तब हैप्पी जी ने बताया, "इस बारे में शोध कार्य जारी है। डॉक्टर कहता है कि इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे बचपन में कोई समस्या हुई हो और तब से यह सोया पड़ा हो और अब जाग गया हो, या हो सकता है कि यह आनुवंशिक हो और माता-पिता आदि ने इसे आपके जीन्स में रख दिया हो, या हो सकता है कि कोरोना का कोई असर रह गया हो जिसकी वजह से यह प्रकट हो गया। कुल मिलाकर उन्होंने यह बताया कि डॉक्टर को भी नहीं पता है कि यह क्यों हुआ।"

इस पर महाकवि ने माहौल की ग़मगीनियत को थोड़ा कम करने के इरादे से कहा, "खैर, यह अच्छा हुआ कि ज़्यादा असर नहीं हुआ, पर ये तो बताओ कि दिल आखिर किसको दिया हुआ था?"
इस पर हैप्पी जी हँसने लगे, मानों कहना चाहते हों कि ये बात भी किसी को बताई जाती है क्या?

लेकिन महाकवि को यह आइडिया बहुत पसंद आया कि अगर हमें दिल की बीमारियों से बचना है, तो भूलकर भी अपना दिल अपने पास नहीं रखना चाहिए, क्योंकि अगर दिल अपने पास होगा, तो दिल की कोई समस्या होने पर इसका असर सीधा हम पर ही होगा। और क्यों न ऐसी किसी स्थिति में इसका असर उन्हीं लोगों पर हो, जिन्हें हमने अपना दिल दिया हुआ है। आखिर जो हमारा दिल लेते हैं, जिनसे हम प्रेम करते हैं, जिनका हम ध्यान रखते हैं, जिनकी हम चिंता करते हैं, जो हमारे लिए ख़ास होते हैं, उनका भी तो कोई फ़र्ज़ है कि वे हमारे दिल को संभालकर रखें। और अगर हम दूसरों को दिल देंगे, तो हो सकता है कि दिल की परेशानियाँ भी कुछ कम होंगी।

- आचार्य राजेश कुमार

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