एक भाषा सिर्फ़ शब्दों और व्याकरण से बहुत आगे है। यह संस्कृति का प्राण है और उसका शरीर भी। यह वह प्रकाश है जो हमारे ज्ञान के सफ़र को न सिर्फ़ प्रकाशित करता है बल्कि विस्तृत भी करता है।
हज़ारों वर्षों से भी अधिक समय से कई भारतीय शब्द जिनकी उत्पत्ति का स्रोत संस्कृत, अरबी और फ़ारसी है, मलय भाषा में अपने अस्तित्व की ओर इशारा करते रहे हैं। भारत से चलकर ये शब्द मलाया क्षेत्र में न सिर्फ़ पहुँच गए बल्कि धीरे-धीरे उसका हिस्सा हो गए। संस्कृत-हिंदी के अलावा, तमिल, तेलगु, मलयालम भाषा के शब्दों ने भी मलय भाषा को प्रभावित किया है।
ये तो हम सभी जानते हैं कि भारत-चीन व्यापार एक समय पर अपने चरम पर था पर क्या इस बात से भी अवगत हैं कि वह व्यापारिक मार्ग मलाया प्रायद्वीप को पार करके ही जाना होता था। शायद यही कारण है कि धीरे-धीरे मलाया क्षेत्रों में भारतीय राज्य, भारतीय मूल्य, भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं ने अपना गढ़ बना लिया।
श्री विजया और मजापहित साम्राज्य के विस्तार के साथ ही भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विस्तार भी हुआ। दक्षिण पूर्वी एशिया के लोगों के जीवन, संस्कृति और परम्पराओं पर हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म ने काफ़ी गहरी छाप छोड़ी है। साम्राज्य की बात हो या कानूनी परम्पराओं की या चाहे न्याय देने की, कई चीज़ों में आज भी मलय संस्कृति और भारतीय संस्कृति एक सी ही है। राजा या श्री महाराजा जैसी पदवी आज भी दोनों संस्कृतियों में दिखती है।
ब्रितानी सरकार मलाया क्षेत्र में राज करने के लिए भारत से ही होकर आई और अपने साथ भारत में प्रचलित कई ऐसे शब्दों, प्रथाओं और संस्कृतियों को साथ लेकर आई जिनका प्रयोग कई स्थानों पर , कानून व्यवस्थाओं में भी किया जाने लगा और ये तो स्पष्ट ही है कि कानून के कई नियम जो ब्रितानियों ने भारत में लागू किए थे वे मलाया क्षेत्र में भी हैं।
भारत में शिशु के जन्म के बाद उसे शहद खिलाया जाता है ताकि उसका जीवन-सफ़र मधुर रहे और यही रिवाज़ मलय संस्कृति में भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। भारतीय वैवाहिक रिवाज़ों की तरह ही मलय शादियों में भी नारियल, सुपारी, फूल आदि महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शब्दों की बात करें तो एक लम्बी सूची बनती है जैसे गुरु और परी शब्द दोनों ही भाषाओं में समान अर्थ के लिए प्रयुक्त होते हैं| इसी तरह दर्जी, सिपाही या धोबी ये सभी शब्द मलय भाषा में विदेशी शब्दों की श्रेणी में प्रयुक्त हो रहे हैं।
यद्यपि मलय भाषा में संस्कृत भाषा जैसी कोई समानता नहीं है, न लिंग है न लिपि समान है (हाँ, पहले पालवान लिपि से कावी अक्षरों की उत्पत्ति हुई थी) पर इस भाषा में भारतीय भाषाओं के कई शब्द मिल जाएँगे जो राजनीति से लेकर दर्शन शास्त्र या खाने-पीने तक फैले होंगे। कई शब्द हैं जो मलय और हिन्दी में समान हैं।
सिंगापुर आने वाले भारतीयों ने अंग्रेज़ी या चीनी सीखने के बजाय मलय सीखना आसान समझा तो उसका कारण यही है हिन्दी और मलय में कई शब्द समान हैं। पुतरी (पुत्री), नाड़ी, केपाल, मुख, बाहु, रोम, गुरु, खलासी, दर्ज़ी, चश्मा, परी जैसे जाने कितने शब्द दोनों भाषाओं में एक ही अर्थ के लिए मिल जाएँगे और जब हिन्दी बेल्टवाले यहाँ आए तो इन शब्दों के सहारे मलय भाषा आसानी से सीख ली। धीरे-धीरे मलय भाषा बोलनी तो कम हो गई पर उनके कुछ शब्द पुराने उत्तर भारतीय परिवारों में सिंगापुर की हिन्दी में मिलकर उसका अंग बन गए।
मलय और हिंदी में कई शब्दों को परखने पर उच्चारण की दृष्टि से देखने की जब बात आती है तो स्पष्ट होने लगता है कि हिन्दी का ‘भ’ मलय का ‘ब’ है। तो हमारी ‘भूमि’ मलय की ‘बूमि’ बन जाती है और ‘भाषा’ ‘बहासा’ बन जाती है। और यही ‘क’ से ‘ग’ के उच्चारण में भी दिखाई देता है। हिन्दी का ‘काजू’ मलय भाषा में ‘गाजू’ है। मलय में किसी को मूर्ख कहना है तो ‘बोदोह’ शब्द प्रयोग किया जाता जो ध्यान से देखा जाए तो ‘बुद्धू’ का ही रूप समझ आता है।
नीचे लिखे कुछ ऐसे शब्दों को ध्यान से देखने पर कई समानाताएँ स्वत: दिख जाती हैं। ऐसे शब्दों की लम्बी सूची है जिनकी उत्पत्ति संस्कृत, फ़ारसी या अरबी भाषासे हुई है और उनके थोड़े से बदले उच्चारण सहित मलय भाषा में सामान अर्थ के लिए प्रयोग किया जाता है| ये शब्द मलय व हिन्दी भाषा की समानता को दर्शाते हैं-
तालिका - हिंदी और मलय भाषा में मिलते-जुलते अर्थों वाले समान शब्द
मलय हिंदी अंतरा(के बीच) अंतर अगर (तो) अगर अनुग्रह (कृपा, सम्मान) अनुग्रह आलमारी अलमारी कुंजी कुंजी काता कथा गुरु गुरु चूती छुट्टी किताब किताब डाना (फंड) धन नगारा (देश) नगर नीला नीला परतामा प्रथम पटी पेटी बदाम बादाम बहास बहस मकलूम मालूम महाराजा महाराजा महर्सी महर्षि मेडान मैदान मकोता मुकुट मुसिम मौसम लाता लता सहाया सहायक सेनोपति सेनापति सुची शुचि सेगारा सागर अंगोटा (शरीर का अंग) अंगूठा अनेका अनेक आडत (प्रथा) आदत उंता ऊँट कुरसी कुरसी इस्त्री (पत्नी) स्त्री चमचा चम्मच कामार कमरा जसा (यश) जस डंडा (ज़ुर्माना) दंड नामा नाम नराका नरक पुतरी (राजकुमारी) पुत्री पंजारा (जेल) पिंजरा बाचा बाचना बेंडी भिंडी महारानी महारानी महा महा मारमर संगमरमर मुतियारा मोती माया माया मुका मुख लायाक लायक सेहात सेहत सिंहा सिंह सेलुआर सलवार शैतान शैतान
ये तो महज़ कुछ उदाहरण हैं जो हिन्दी और मलय भाषा में समान हैं। इनके अलावा भी संस्कृत, अरबी या फ़ारसी के अनेक शब्द दोनों भाषाओं में मिलते हैं।
कई हिन्दुस्तानी परिवार हैं जो हिन्दी शब्दों के बजाय मलय शब्दों का प्रयोग अपनी बातचीत में करते हैं जैसे- भोजपुरी घरों में चम्मच की जगह ‘चमचा’ शब्द ही आज भी प्रयोग किया जाता है।
ऐसा ही एक शब्द है-‘कन्ना’ जिसका मतलब होता है ‘लग जाना’ तो चाहे गाड़ी में ‘सम्मन’ लगे या चोट लगे पुराने भोजपुरी परिवार ‘कन्नाready’ ही बोलते हुए दिखाई देंगे।
ऐसे ही ‘ताहन’ शब्द पुराने भोजपुरी परिवारों की भाषा में इस प्रकार समा गया है कि कई बार लोग इसका अच्छे अंग्रेज़ी वाक्यों में भी प्रयोग करने में ज़रा नहीं हिचकिचाते। ताहन का मतलब होता है बर्दाश्त करना पर वहाँ ‘cannot ताहन’ ही सुनाई देगा चाहे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही हो या किसी का व्यवहार। इन दोनों शब्दों का उदाहरण यह दर्शाने के लिए दिया गया है कि सिंगापुर में बसे पुराने भारतीय परिवार मलय भाषा को आसानी से अपना रहे थे और उन्होंने अपनी मातृभाषा में भी उन शब्दों को इस प्रकार घुला लिया कि आज तक उसकी बानगी सुनी जा सकती है।
संभवतः यही कारण था कि पुराने उत्तर भारतीय परिवारों में मलय भाषा जल्दी सीखी गयी। मलय उस समय बाज़ार की भाषा भी थी और उसे सीखना उत्तर भारतीयों के लिए तुलनात्मक रूप से अधिक सहज था। काफी बाद के समय तक भारत से विवाह कर आने वाली महिलाएँ जिन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं, या बहुत कम होता था, वे मलय भाषा सीखकर अपना काम चलाती रहीं। सिंगापुर में जब द्वितीय भाषा का शिक्षण आवश्यक हुआ तो प्रारंभ में उत्तर भारतीयों द्वारा मलय ही दूसरी भाषा के रूप में चुनी गई। मलय भाषा में हिंदी के कई शब्द अरबी-फ़ारसी स्रोतों के कारण मौजूद हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिन्दुस्तानी सुमदाय ने मलय के प्रति अपना आकर्षण रखा बल्कि मलय लोगो में हिंदी फ़िल्मों के प्रति गहरा आकर्षण रहा है उसका कारण भी संभवतः कई शब्दों का समान होना हो सकता है। सिंगापुर में हिंदी फ़िल्मों के प्रति मलय जनसंख्या में काफी दिलचस्पी पहले से रही है| मलय शादियों में बजने वाले संगीत आज भी हिंदी भाषा के प्रति प्रेम को दिखा रहे हैं| कुछ शब्दों और कुछ रिवाजों का सम्बन्ध इस भाषाई सम्बन्ध को अधिक मज़बूत ही करता रहा है| सिंगापुर में हिन्दुस्तानी लोगों पर हिन्दी का प्रभाव दिखना लाज़मी है पर मलय प्रजाति पर यह रंग इस कदर चढ़ा है कि मलय जाति के लोग इसमें रँगे नज़र आते हैं। मलय शादियाँ ज़्यादातर आवासीय इमारतों के निचले भूतल वाले क्षेत्र में सम्पन्न होती हैं। अत: बिना निमंत्रण विवाह-समारोह का दर्शन किया जा सकता है। इन शादियों में मलय रिवाज़ों के साथ एक चीज़ बड़ी सामान्य दिखती है-गाने बजना व ‘काराओके’ पर गाने गाना। गीत-संगीत का यह माहौल शुरू ही हिन्दी गानों से होता है और बीच-बीच में मलय गानों के साथ खूब हिन्दी गाने सुनाई देते हैं।
मलय भाषा सिंगापुर, मलेशिया जैसे देशों में मुस्लिम समुदाय द्वारा बोली जाती है और इस भाषा में हिंदी के संस्कृत से आए हुए शब्दों का अभी तक उपस्थित रहना इस बात को दर्शाता है कि ये जड़ें इतनी गहरी और पुरानी हैं कि इन्हें इतनी आसानी से नहीं हटाया जा सकता है। हज़ार- दो हज़ार साल पहले से जिन शब्दों ने समाज में अपनी जगह बनाई धीरे-धीरे भले ही उनका प्रयोग कम हो गया हो और अन्य शब्दों ने उन शब्दों का स्थान ग्रहण करना शुरू कर दियाहो लेकिन वे शब्द आज भी पुराने ग्रंथों से लेकर औपचारिक रूप से कई जगह प्रयोग किए जाते हैं | विनीता, इस्त्री, पुत्री , गुरु , जैसे शब्द आम रूप से प्रयुक्त होते हैं| कई शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत न होकर अरबी, फ़ारसी या अन्य विदेशी भाषाएं हैं लेकिन वे हिंदी और मलय में समान रूप से प्रयुक्त हो रही हैं जैसे साबुन, दुनिया सब्र आदि| इस तरह के भाषाई संबंध से दोनों भाषाओं को दृढ़ता ही मिल रही है।
--डॉ संध्या सिंह सिंगापुर |