देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

जब फागुन रंग झमकते हों | होली नज़्म

जब फागुन रंग झमकते हों 

[ नज़ीर अकबराबादी की होली नज़्म को फागुन के यादगार गीत के  रूप में छाया गांगुली की आवाज़ में सुनिए।]

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की,
और डफ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की,
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की,
खुम, शीशे जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की,
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की।

 

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